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Friday, February 19, 2010

दिनचर्या का वर्केबल मॉडल ढूंढा जाना चाहिये

आजकल हर घर में हर समय सिनेमा चलता है। स्कूली बच्चे, आफिस जाने वाले पति–पत्नी, बिजनिस में लगे लोग और घर के बड़े–बूढ़े अपनी दिनचर्या का काफी समय बिस्तर या सोफे पर पड़े रहकर टीवी देखने में खर्च करते हैं। महिलाओं ने कुछ खास चैनलों पर आने वाले धरावाहिक पकड़ रखे हैं, पुरुष न्यूज चैनलों को बदल–बदल कर एक ही समाचार को बार–बार देखते हैं। बच्चे काटू‍र्न नेटवर्क पर खोये हुए हैं तो कुछ लोग डिस्कवरी और नेशनल जियोग्राफी जैसे कार्यक्रमों के आदी हैं। अब हर आदमी की दिनचर्या में टी वी देखना उसी प्रकार अनिवार्य हो गया है जिस प्रकार पहले पूजा पाठ करना और लोगों से मिलना–जुलना अनिवार्य था।
टी वी को समय देने के कारण घर के सदस्याें को जीवन के गंभीर विषयों पर एक दूसरे से वार्तालाप करने तथा अपने विचारों का आदान–प्रदान करने का पर्याप्त समय नहीं बचता। रिश्तेदारों, पड़ौसियों, सहकर्मियों और सहपाठियों से सामंजस्य बैठाने के लिये भी समय नहीं मिलता। बहुत से माता–पिता को तो अपने बच्चों से बात करने का समय नहीं है। करोड़ों घरों में टेलिविजन आदमी की दिनचर्या का केन्द्र बिन्दु बन गया है। घर नौकरों के भरोसे, बच्चे कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के भरोसे और बड़े–बूढ़े वृद्धाश्रमों के भरोसे छोड़ दिये गये हैं।
यह सही है कि समाचारों, विचारों और दुनिया भर की जानकारियों को देने वाले कार्यक्रम टेलिविजन के विभिन्न चैनलों पर आते हैं जिनके कारण हमें दुनिया के कई रहस्यों, सूचनाओं और समाचारों की जानकारी रहती है किंतु यह भी सही है कि जीती जागती दुनिया अचानक ही टी वी के पर्दे पर हिलती हुई रंग–बिरंगी आकृतियां भर रह गई है। यदि लोग आपस में मिलते भी हैं तो केवल शादियों के महाभोज में जहां वे एक–दूसरे को देखकर मुस्कुराने की औपचारिकता निभाते हैं और डी जे के तेज शोर से तंग आकर अपने घरों को लौट जाते हैं।
टी वी ने दुनिया भर के नितांत मिथ्या विषयों को हमारे लिये अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया है। क्रिकेट और उसके खिलाडि़यों के बारे में विभिन्न चैनलों पर दिन रात जानकारी दी जाती है, उसका हमारे जीवन में क्या महत्व है? हमें वे जानकारियां क्यों लेनी चाहिये? उनका मानवता के लिये क्या उपयोग है? सिने कलाकारों के बारे में ऐसी बारीक जानकारियां दी जाती हैं जैसे वे अत्यंत श्रद्धास्पद और प्रेरणादायक लोग हैं तथा उनके जीवन चरित्र को जानने से हमें अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष नामक चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति हो जायेगी। एक समय था जब बच्चों को भारत की सन्नारियों और महापुरुषों की गाथायें सुनाई जाती थीं किंतु आज के बच्चों को सलमान खान, शाहरुक खान और आमिर खान तथा उनकी प्रेमिकाओं के बारे में ढेरों जानकारियां हैं किंतु वे सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, महादानी राजा शिबि, सती अनुसुईया और आज्ञाकारी पुत्र श्रवणकुमार के बारे में कुछ नहीं जानते। टी वी चैनलों की भीड़ ने इन प्रेरणास्पद पात्रों को हमसे छीन लिया।
टीवी चैनलों की ही देन है कि आज भारत के नौजवान भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु पर जानकारी एकत्रित करने की बजाय वेलेंटाइन डे पर अपनी प्रेमिका को रिझाने के नुस्खे ढूंढते फिरते हैं जबकि भारतीय संस्कृति में विद्यार्थी के लिये ब्रचर्य पालन करने का निर्देश है। टेलिविजन पर दिन रात प्रसारित होने वाले विज्ञापनों में अनावश्यक वस्तुओं का इतनी चतुराई से प्रचार किया जाता है कि करोड़ों लोग उनके झांसे में आकर अनावयश्क सामान खरीद कर अपने घरों में कबाड़ इकट्ठा कर रहे हैं। इस तरह टी वी ने भारतीय आदमी की दिनचर्या में गहरे परिवर्तन किये हैं जिनमें से कुछ बहुत हानिकारक हैं। दिन का काफी हिस्सा टी वी देखने में बिताने वालों को अपनी जीवन शैली के बारे में नये सिरे से सोचना चाहिये और अपनी दिनचर्या का वर्केबल मॉडल ढूंढना चाहिये। – डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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