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Monday, June 28, 2010

जिंदगी के बस स्टॉप पर भी समय नहीं रुकता !


टोकियो बसस्टॉप पर लगे एक बोर्ड पर लिखा है- यहाँ केवल बसें रुकती हैं, समय नहीं रुकता। सही बात है, संसार में केवल समय ही ऐसा ज्ञात तत्व है जो सूर्य, धरती और आकाशगांगाओं के चलना आरंभ करने से पहले भी चल रहा था। यदि सूरज अपनी समस्त ऊर्जा खोकर और धरती अपना गुरुत्वाकर्षण खोकर मिट जायें तब भी समय तो चलता ही रहेगा। हम सबने समय के पेट से जन्म लिया है और समय आने पर हम फिर इसी में चले जायेंगे। हम कुछ नहीं हैं केवल समय की शोभा हैं, फिर भी हम लोग समय की कमी का अशोभनीय रोना रोते रहते हैं। वस्तुत: समय किसी के पास कम या अधिक नहीं होता, वह तो हर आदमी को नियति ने जितना दिया है, उतना ही होता है। समय के लिये हमारा रुदन कृत्रिम है और मनुष्य जाति को अकारण दुखी करने वाला है।


संभवत: बिजनिस मैनेजमेंट पढ़ाने वाले लोगों ने सबसे पहले टाइम इज मनी कहकर लोगाें को समय की कमी का रोना रोने के लिये उकसाया। इस नारे ने लोगों का सुख और चैन छीनकर उनके मस्तिष्कों में आपाधापी भर दी। जिसने भी इस नारे को सुना वह अपने समय को धन में बदलने के लिये दौड़ पड़ा। इसी नारे की देन है कि संसार में कहीं भी तसल्ली देखने को नहीं मिलती। रेल्वे स्टेशनों, बैंकों और अस्पतालों की कतारों में खड़े लोग अपने से आगे खड़े लोगों को पीछे धकेल कर पहले अपना काम करवाना चाहते हैं।


टाइम इज मनी के नारे ने भारतीय नारियों को उनकी घरेलू भूमिकाएं अधूरी छोड़कर नौकरियों की ओर दौड़ा दिया। आखिरकार उनके पास भी कुछ तो समय है ही, जिसे धन में बदला जा सकता है। समय को धन में बदलने के लिये आदमियों ने घर के बूढ़े सदस्यों को वृध्दाश्रमों में, बच्चों को क्रैश और डे-बोर्डिंग में तथा परिवार के विक्षिप्त सदस्यों को तीर्थस्थलों और जंगलों में छोड़ दिया क्योंकि इनकी सेवा करेंगे तो समय को धन में कब बदलेंगे ! लोग बिना समय गंवाये करोड़पति बनना चाहते हैं, करोड़पतियों को अपना समय अरबपति बनने में खर्च करना है। इसी आपाधापी को देखकर गुरुदत्ता ने कहा था- ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है !


टाइम इज मनी की विचित्र व्याख्या के विपरीत संसार में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने समय को इस तरह प्रयोग करते हैं जो समय की सीमा को लांघ जाते हैं। मदनलाल धींगरा ने सन् 1909 में कर्जन वायली की सरेआम हत्या की। जज ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। इस पर धींगरा ने कहा- आज तुम मुझे फांसी पर चढ़ा दो किंतु आने वाले दिनों में हमारा भी समय आयेगा। अर्थात् वे जानते थे कि समय केवल शरीर के रहने तक साथ रहने वाली चीज नहीं है, वह तो शरीर के मरने के बाद भी रहेगा। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्ता ने पार्लियामेंट में बम फैंका था। पूरा पार्लियामेंट धुएं से भर गया, वे चाहते तो इस समय का उपयोग भागने में कर सकते थे किंतु उन्हें अपने समय को धन में नहीं बदलना था, देश की आजादी में बदलना था। इसलिये वे वहीं खड़े रहे और फांसी के फंदे तक जा पहुंचे। उन्हें ज्ञात था कि समय फांसी के फंदे के साथ समाप्त नहीं होगा, वह तो आगे भी चलता ही रहेगा। सही बात तो यह है कि समय टोकियो के बसस्टॉप पर तो क्या, जीवन के बसस्टॉप पर भी नहीं रुकता।

3 comments:

  1. टाइम इज मनी के नारे ने भारतीय नारियों को उनकी घरेलू भूमिकाएं अधूरी छोड़कर नौकरियों की ओर दौड़ा दिया।
    इस बात से सहमत नहीं उन्हें उनके शोषण और उन पर हो रहे अत्याचारों और समानाधिकार ने उन्हें इस राह पर चलाया। अगर आदमी जरा सा भी अपने अहं से ऊपर उठ कर उसे सम्मान देता तो य कभी नही होता। कौन नारी चाहती है कि वो दो पाटों के बीच पिसे। इस अन्धी दौड के और भी कई कारण हैं न कि टाईम इज़ मनी। धन्यवाद्

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  2. टाइम इज़ मनी...बिल्कुल सही!!

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  3. सारी दुनिया समय को धन में ही बदलने में लगी हुई है ....
    गंभीर चिंतन ...!

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