tag:blogger.com,1999:blog-88312091079613414632024-03-08T14:56:38.284-08:00Tisari-AnkhDr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.comBlogger60125tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-16249897262659793662010-09-06T05:15:00.000-07:002010-09-06T05:23:53.822-07:00उन्होंने अब भी अपनी मानसिकता नहीं बदली है !उन्होंने अब भी अपनी मानसिकता नहीं बदली है !<br />आज से बहुत बरस पहले भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जगन्नाथपुरी के मंदिर में देव विग्रहों के दर्शनार्थ गईं। मंदिर के पुजारियों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। पुजारियों के अनुसार केवल हिन्दू धर्मावलम्बियों को ही मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार था जबकि एक पारसी से विवाह करने के कारण, पुजारियों की दृष्टि में वे हिन्दू नहीं रही थीं, पारसी हो गई थीं। वे देश की प्रधानमंत्री थीं, फिर भी उन्होंने किसी से कोई वाद–विवाद नहीं किया। वे मंदिर के बाहर से शांतिपूर्वक दिल्ली लौट गईं। श्रीमती गांधी ने कभी इस घटना की आलोचना नहीं की, न कहीं इस बात की चर्चा तक की।<br /><br />कुछ बरसों बाद उनके प्रिय पुत्र संजय गांधी का दुखद निधन हुआ। संजय की अस्थियाँ विसर्जन के लिये प्रयागराज इलाहाबाद ले जाई गईं। गंगाजी में अस्थि विसर्जन के अधिकार एवं अस्थि विसर्जन के बाद मिलने वाली दान–दक्षिणा की राशि को लेकर पण्डों ने झगड़ा किया। एक ओर भारत की प्रधानमंत्री शोक के सागर में गोते लगा रही थीं और दूसरी ओर पण्डे अस्थि विसर्जन की दक्षिणा में बड़ी राशि के लिये लड़ रहे थे! पण्डों का यह आचरण देखकर श्रीमती इंदिरा गांधी क्षुब्ध हो गईं। उन्हें समझ में आ गया कि जो पण्डे भारत की प्रधानमंत्री के पुत्र की अस्थि विसर्जन पर इतना बड़ा वितण्डा खड़ा कर सकते हैं, वे भारत की निरीह, भोलीभाली और धर्मप्राण जनता के साथ कितनी कठोरता करते होंगे! उस दिन तो उन्होंने पण्डों से कुछ नहीं कहा किंतु उन्होंने मन ही मन एक निश्चय किया कि वे भारत की धर्मप्राण जनता को पण्डों के इस झगड़े से बचाने के लिये कुछ करेंगी।<br /><br /><br />इस घटना के कुछ समय बाद भारत के समस्त तीर्थों पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को उनकी इच्छानुसार पूजन, अर्चन, तर्पण और पिण्डदान आदि की पूरी तरह से सैद्धांतिक और व्यवहारिक छूट को सुनिश्चित किया गया। पण्डाें से स्पष्ट कह दिया गया कि यदि जजमान न चाहे तो किसी पण्डे को उसके पास फटकने तक की आवश्यकता नहीं। कोई पण्डा किसी जजमान पर यह जोर नहीं डालेगा कि उसके पूर्वजों का वंशानुगत पण्डा कौनसा है। पूजन, तर्पण के बाद जजमान अपनी श्रद्धा, आस्था और इच्छा के आधार पर ही दान–दक्षिणा दे सकेगा। किसी पण्डे को यह अधिकार नहीं कि वह निश्चित राशि की मांग दान–दक्षिणा या शुल्क के रूप में कर सके।<br /><br />इन आदेशों की पालना पूरे देश में मजबूत इरादों के साथ की गई जिससे भारत की कोटि–कोटि धर्मप्राण जनता ने राहत की सांस लीं किंतु चार सितम्बर को पुष्कर में जो कुछ हुआ, उसने मुझे इस इतिहास का स्मरण करवा दिया। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधराराजे की उपस्थिति में पुष्कर के पण्डों ने झगड़ा किया कि पुष्करजी में श्रीमती राजे को पूजा करवाने का अधिकार किन पण्डों को है ! इस झगड़े से श्रीमती राजे इतनी क्षुब्ध हुईं कि वे बिना पूजा किये ही लौट गईं। क्या पण्डे इस बात कभी सोचते हैं कि देश की सनातन धर्म व्यवस्था ने धार्मिक तीर्थ, पण्डों की दुकानों के रूप में नहीं खोले हैं अपितु श्रद्धालुओं की आस्था की अभिव्यक्ति के लिये स्थापित किये हैं। पण्डों को चाहिये कि वे पूरे हिन्दू समाज से क्षमा मांगें कि जो कुछ उन्होंने श्रीमती राजे की उपस्थिति में किया, उसे आज के बाद किसी अन्य श्रद्धालु के साथ नहीं दोहरायेंगे।Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-40450293023402608782010-09-01T02:36:00.000-07:002010-09-01T02:37:18.665-07:00उनके भाग्य में तालिबानियों की सहायता लेना ही लिखा है !<span style="font-size:130%;color:#003300;">पाकिस्तान में बाढ़ आई। खैबर, पख्तूनिस्तान, सिंध, बलूचिस्तान और पंजाब सहित विशाल क्षेत्र इससे प्रभावित हुआ और पाकिस्तान का पांचवा हिस्सा पानी में डूब गया। अनुमान है कि 2 हजार लोग मरे, 10 लाख घर नष्ट हुए और 2 करोड़ लोग या तो घायल हो गये या घर विहीन हो गये। बाढ़ से कुल 43 बिलियन अमरीकी डॉलर अर्थात् 34,400 खरब पाकिस्तानी रुपये का नुक्सान हुआ जिससे पाकिस्तान की लगभग एक चौथाई इकॉनोमी बर्बाद हो गई। जिस समय यह सब हो रहा था, पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी यूरोप के होटलों में मौज कर रहे थे जिससे नाराज पाकिस्तानियों ने उन पर लंदन में जूता फैंककर मारा। जरदारी के स्थान पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री एस. एम. कुरैशी बाढ़ के विरुद्ध मोर्चा संभाला।<br />कुरैशी ने पाकिस्तान की बाढ़ को मानवता की सबसे बड़ी त्रासदी बताकर सारे संसार के समक्ष सहायता की गुहार लगाई। उन्होंने ओमान की राजधानी मस्कट पहुंचकर अपनी झोली फैलाई और गल्फ देशों से कहा कि मुसीबत की इस घड़ी में उदार होकर पाकिस्तान की मदद करें। एशियन डिवलपमेंट बैंक, वल्र्ड बैंक एवं यूएनडीपी जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थायें पहले से ही पाकिस्तान को बाढ़ से निबटने के लिये सहायता उपलब्ध करवा रही थीं। यह तो ज्ञात नहीं कि इस गुहार के बाद गल्फ देशों ने पाकिस्तान की कितनी सहायता की किंतु यह बात बस जानते हैं कि अमरीका और चीन पाकिस्तान की मदद के लिये बेचैन हो गये। यूनाइटेड नेशन्स ने पाकिस्तान को पहली खेप में 460 मिलियन अमरीकी डॉलर की सहायता भेजी।यूनाइटेड नेशन्स के अधिकारी यह देखकर हैरान हैं कि जनता को बहुत ही धीमी गति से सहायता प्राप्त हो रही है। जबकि पाकिस्तान में 1 करोड़ लोग बाढ़ का पानी पीने को विवश हैं जिससे वहां महामारी फैलने की आशंका है।<br />भारत ने भी पड़ौसी होने का धर्म निभाते हुए पाकिस्तान को सहायता देने का प्रस्ताव भेजा किंतु गल्फ देशों के समक्ष झोली फैलाकर गिड़गिड़ाने वाले पाकिस्तान ने भारत से सहायता लेने से मना कर दिया। भारत ने यूएनाओ से प्रार्थना की कि वह पाकिस्तान से कहे कि वह भारत से मदद ले ले। इस पर पाकिस्तान ने भारत से कह दिया कि वह अपनी मदद यूएनओ के माध्यम से भेजे।<br />अब रिपोर्टें आ रही हैं कि पाकिस्तानी सरकार राहत कार्य में पूरी तरह असफल रही है। इस स्थिति का लाभ उठाकर तालिबानी लड़ाके बाढ़ पीडि़तों की सहायता के लिये आगे आये हैं। रिपोर्टें कहती हैं कि जब तालिबानी लड़ाके जनता को दवा और भोजन देते हैं तो तब उन्हें तालिबानी संगठन में सम्मिलित होने का आदेश भी देते हैं। बहुत से लोग नहीं चाहते कि तालिबान का साया भी उनके बच्चों पर पड़े किंतु भोजन और दवाएं लेना उनकी मजबूरी है इसलिये वे लड़ाकों की बात सुनने से भी इन्कार नहीं कर सकते। अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार हजारों तालिबानी बड़ी तेजी से आतंकवादियों की भर्ती कर रहे हैं और इन क्षेत्रों में कार्यरत विदेशी एजेंसियों को डण्डे के जोर पर खदेड़ा जा रहा है। पाकिस्तानी जनता को सरकारी सहायता के स्थान पर तालिबानी सहायता लेनी पड़ रही है। संभवत: उनके भाग्य में तालिबानियों की सहायता लेना ही लिखा है। </span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-90239693035652466712010-08-30T03:53:00.000-07:002010-08-30T03:55:37.267-07:00क्या इसलिये पागल हैं चीन और अमरीका, पाकिस्तान के पीछे !<span style="font-size:130%;color:#003300;">चीन और अमरीका दो ऐसे देश हैं जो हर तरह से एक दूसरे के विपरीत खड़े हैं। चीन दुनिया के धुर पूरब में तो अमरीका धुर पश्चिम में। चीन धर्म विरोधी तो अमरीका धर्म निरपेक्ष, फिर भी चीन का शासक केवल बौद्ध धर्म का अनुयायी ही हो सकता है तो अमरीका में केवल ईसाई धर्म का। चीन साम्यवादी अर्थात् श्रम आधारित सामाजिक रचना के सिद्धांत पर खड़ा है तो तो अमरीका पूंजीवादी अर्थात् भोग आधारित सामाजिक संरचना का रचयिता है। चीन में मानवाधिकार वाले प्रवेश भी नहीं कर सकते जबकि अमरीका मानवाधिकारों के नाम पर पूरी दुनिया पर धौंस जमाता है। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"></span><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">दोनों देशों में यदि कोई समानता है तो यह कि दोनों देश पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। वर्चस्व की इस दौड़ में अमरीका चीन से भयभीत है जबकि चीन के चेहरे पर भय की शिकन तक नहीं।</span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"></span><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">इतने सारे विरोधाभासों के उपरांत भी दोनों देश पाकिस्तान से विकट प्रेम करते हैं और भारत से शत्रुतापूर्ण अथवा शत्रुता जैसी कार्यवाही करने में नहीं हिचकिचाते। 1962 में चीन, चीनी हिन्दी भाई–भाई का नारा लगाते हुए अपने सेनाएं लेकर भारत पर टूट पड़ा था तो 1971 में अमरीका पाकिस्तान के पक्ष में अपनी नौसेना का सातवां बेड़ा हिन्द महासागर में ले आया था। आज भी स्थितियां न्यूनाधिक मात्रा में वैसी ही हैं। अमरीका और चीन दोनों ही पाकिस्तान में आई बाढ़ में सहायता के लिये बढ़–चढ़कर भागीदारी निभा रहे हैं। मीडिया में आ रही रिपोर्टों को सच मानें तो पाकिस्तान ने चीन को पीओके गिफ्ट कर दिया है। चीन के सात से ग्यारह हजार सैनिक पीओके में खड़े हैं और अमरीका पाकिस्तान को अरबों रुपये की युद्ध सामग्री उपलब्ध करवा रहा है। </span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"></span><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">पड़ौसी होने के नाते भारत भी पाकिस्तान में आई बाढ़ में सहायता राशि भेजना चाहता था किंतु पहले तो पाकिस्तान ने सहायता लेने से ही मना कर दिया और बाद में अमरीकी हस्तक्षेप के उपरांत उसने भारत से कहा कि भारत को सहायता सामग्री यूएनओ के माध्यम से भेजनी चाहिये। </span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"></span><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">अमरीका और चीन की पाकिस्तान के साथ विचित्र दोस्ती और पाकिस्तान के द्वारा भारत के साथ किया जा रहा उपेक्षापूर्ण व्यवहार देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई लंगड़ा सियार दो ऐसे झगड़ालू शेराें से दोस्ती करके जंगल के दूसरे जीवों पर आंखें तरेर रहा है जो शेर आपस में एक दूसरे के रक्त के प्यासे हैं। यह दोस्ती तब तक ही सुरक्षित है जब तक कि दोनों शेर अपने खूनी पंजे फैलाकर एक दूसरे पर झपट नहीं पड़ते। </span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"></span><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">अंतत: पाकिस्तान को एक दिन यह निर्णय लेना ही है कि वह पाकिस्तान में अमरीकी सैनिक अड्डों की स्थापना के लिये अपने आप को समर्पित करता है या फिर चीनी सैनिक अड्डों के लिये ! या फिर इतिहास एकदम नये रूप में प्रकट होने जा रहा है, आधे पाकिस्तान में अर्थात् अफगानिस्तान की सीमा पर अमरीकी सैनिक अड्डे होंगे और आधे पाकिस्तान में अर्थात् भारतीय सीमा पर चीनी सैनिक अड्डे होंगे और पूरा पाकिस्तान इन दोनों शेरों के खूनी पंजों की जोर आजमाइश के लिये खुला मैदान बन जायेगा जैसे पहले कभी अमरीका और रूस के बीच अफगानिस्तान बन गया था! </span></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-6044393170931161132010-08-18T04:57:00.000-07:002010-08-18T05:02:22.097-07:00जो प्राथनायें हमारे हृदय को नहीं छूतीं वे ईश्वर को कैसे झुकायेंगी !<span style="font-size:130%;color:#003300;">हम भगवान के समक्ष गिड़गिड़ाकर, रो–धोकर, हाथ में प्रसाद और मालायें लेकर प्रार्थनाएं करते हैं। अपनी और अपने घर वालों की मंगल कामना के लिये तीर्थ यात्रायें करते हैं, धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हैं, ब्रत और उपवास रखते हैं। जब–तप भी करते हैं। दान–दक्षिणा और प्रदक्षिणा करते हैं। भगवान से चौबीसों घण्टे यही मांगते रहते हैं कि हमारा और हमारे घर वालों का कोई अनिष्ट न हो किंतु क्या कभी हम यह सोचते हैं कि जो प्रार्थनायें हम ईश्वर से करते हैं, उन प्रार्थनाओं का हमारे अपने हृदय पर कितना प्रभाव पड़ता है! </span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">इम ईश्वर से दया की भीख मांगते हैं किंतु स्वयं दूसरों के प्रति कितने निष्ठुर हैं ? हम ईश्वर से अपने लिये समृद्धि मांगते हैं किंतु दूसरों की समृद्धि हमें फूटी आंख क्यों नहीं सुहाती ? हम दुर्घटनाओं को अपने जीवन से दूर रखने के लिये ईश प्रतिमाओं के समक्ष माथा रगड़ते हैं किंतु हम अपनी ओर से कितना प्रयास करते हैं कि हमारे कारण दूसरा कोई भी व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त न हो ? हम अपने बच्चे को नौकरी में लगवाने के लिये सवा–मणी करते हैं किंतु कभी भी दूसरे के बच्चे का हक मारने में क्यों नहीं हिचकिचाते ? हम अपनी पत्नी के स्वास्थ्य लाभ के लिये प्रति मंगलवार हनुमानजी की और प्रति शनिवार शनिदेव की परिक्रमा लगाते हैं किंतु हम नकली दूध, नकली घी और नकली दवायें बेचकर दूसरों की पत्नियों को बीमार करने में संकोच क्यों नहीं करते ? हम अपने बच्चे को शुद्ध दूध पिलाना चाहते हैं किंतु दूसरे के बच्चे को पानी मिला हुआ दूध बेचने में क्यों भयभीत नहीं होते ?</span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">हमारे अपने हृदय से निकली हुई जिन प्रार्थनाओं का हमारे अपने हृदय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता उन स्वार्थमयी शब्दों का ईश्वर पर कैसे असर पड़ेगा ? और जब हमारी प्रार्थनाओं का असर दिखाई नहीं देता तो हम ईश्वर को दोष देते हैं कि वह तो बहरा हो गया है या पत्थर की मूर्ति बनकर बैठ गया है या यह कि भगवान भी अमीरों का ही है, गरीबों का थोड़े ही है ! वास्तविकता यह है कि यदि हमें अपनी प्राथनाओं में असर चाहिये तो पहले उन प्रार्थनाओं को अपने हृदय पर असर करने दें। ईश्वर बहरा या निष्ठुर नहीं है, वह तो हमें अपने पास ही खड़ा हुआ मिलेगा।</span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">पिछले दिनों जोधपुर के निजी अस्पतालों में जो कुछ घटित हुआ उसने हमें सोचने पर विवश किया है कि जो मरीज और उनके परिजन डॉक्टरों को भगवान कहकर उनकी कृपा दृष्टि पाने को लालायित रहते हैं, उन्हीं मरीजों और उनके परिजनों से अपनी सुरक्षा की गुहार लगाने के लिये डॉक्टरों को सड़कों पर जुलूस क्यों निकालने पड़े ! कारण स्पष्ट है। डॉक्टर लोग, जो सम्मान और विश्वास मरीजों और उनके परिजनों से अपने लिये चाहते थे, वह सम्मान और विश्वास डॉक्टरों ने कभी भी मरीजों और उनके परिजनों को नहीं दिया। और जो चीज हम दूसरों को नहीं दे सकते, वह चीज दूसरों से हम स्वयं कैसे पा सकते हैं। डॉक्टरों ने मरे हुए मरीजों के भी इंजेक्शन लगाने का धंधा खोल लिया तो मरीजों ने भी डॉक्टरों को उसी मुसीबत में पहुंचाने की ठान ली। अब फिर ये जुलूस क्यों? यह घबराहट क्यों ? </span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">मेरा मानना है कि यदि डॉक्टरों को मरीजों और उनके परिजनों का विश्वास और आदर चाहिये तो पहले स्वयं उन्हें विश्वास और आदर प्रदान करें, इन जुलूसों से कुछ होने–जाने वाला नहीं। इस बात को समझें कि समाज स्वार्थी डॉक्टरों के साथ नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे निष्ठुर भक्त के साथ भगवान खड़ा हुआ दिखाई नहीं देता।</span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-47751576875453718622010-08-17T02:56:00.000-07:002010-08-17T02:59:49.902-07:00गाय–बछड़े तो भूखे मर जायेंगे किंतु भड़ुए भी लाडू नहीं जीम सकेंगे !<span style="font-size:130%;color:#003300;">अजमेर में राजस्थान कॉपरेटिव डेयरी फेडरेशन के अधिकारी सुरेन्द्र शर्मा के घर और लॉकरों से लगभग दस करोड़ से अधिक की सम्पत्ति मिल चुकी है। इस बेहिसाब सम्पत्ति को देखकर यह अनुमान लगाना कठिन है कि एक आदमी को अपने जीवन में कितने पैसे की भूख हो सकती है! पन्द्रह अगस्त को प्रख्यात गायिका आशा भौंसले टेलिविजन के किसी चैनल को दिये गये साक्षात्कार में ठीक ही कह रही थीं कि यह देखकर बहुत दुख होता है कि कुछ लोगों के पास तो खाने को रोटी नहीं है और कुछ लोग रोटी के स्थान पर रुपया खा रहे हैं!</span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">सुरेन्द्र शर्मा के घर और लॉकरों में से निकली सम्पत्ति वस्तुत: गायों के थनों में से दूध के रूप में प्रकट हुई है। यह दूध प्रकृति ने गायों के थनों में उनके बछड़ों के लिये दिया है और बछड़ों का पेट भरने के बाद बचा हुआ दूध मानवों के लिये दिया है किंतु मानव ने सारा का सारा दूध अपने लॉकर में भरकर न केवल बछड़ों को भूखों मरने पर विवश कर रखा है अपितु थन भर–भर कर दूध देने वाली गायों को भी सुबह शाम दूध निकालने के बाद सड़कों पर भटकने और मैला खाने के लिये छोड़ रखा है। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">मानव के लालच की गाथा बड़ी है। वह गायों से मिले दूध में बेहिसाब पानी मिलाकर अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने का षड़यंत्र करता है और अधिक से अधिक दूध पाने के लालच में गायों को सुबह शाम आॅक्सीटोसिन के इंजेक्शन लगाकर उन्हें धीमी मौत की तरफ धकेलता है। इतना करने के बाद भी उसका लालच पूरा नहीं होता। वह असली दूध के स्थान पर बाजार में यूरिया और डिटर्जेण्ट पॉउडर से बना हुआ नकली दूध बेचता है ताकि रातों रात करोड़ पति बन सके। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">यह कैसा लालच! यह कैसा अंधेर खाता! जो पशु दूध दे रहे हैं, वे आॅक्सीटोसिन के शिकार हो रहे हैं। जिन बछड़ों के लिये दूध बना है, वे भूखों मर रहे हैं। जो पशुपालक दुधारू पशुओं को पाल रहे हैं, वे गरीबी की रेखा से नीचे जी रहे हैं। जिन बच्चों के लिये माता–पिता महंगे भाव का दूध खरीद रहे हैं, वे डिटर्जेण्ट और यूरिया से बने दूध का शिकार होकर मौत के मुंह में जा रहे हैं जबकि सुरेन्द्र शर्मा जैसे डेयरी फेडरेशन के अधिकारी इस दूध के बल पर करोड़ों रुपये जमा कर रहे हैं। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#003300;">मेरी समझ में यह नहीं आता कि सुरेन्द्र शर्मा जैसे लोग इतना अधिक पैसा एकत्रित करके आखिर क्या करना चाहते हैं ? क्योंकि उनके बच्चों को भी तो दूसरों के बच्चों की तरह खाने पीने को दूध, घी, मावा, मिठाई, दही, छाछ सबकुछ नकली ही मिलेगा। अचार में फफूंदी लगी मिलेगी, टमाटर सॉस तथा कैचअप में लाल रंग का लैड आॅक्साइड मिलेगा। गेहूं सड़ा हुआ मिलेगा। इसलिये अधिक रुपये चुराकर भी क्या हो जायेगा! नकली खाद्य सामग्री तो वह कम पैसे में भी खरीद सकता है। इसीलिये मैंने लिखा है कि गाय भैंस तो भूखे मर जायेंगे किंतु भडु़ए भी लाडू नहीं जीम सकेंगे।</span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-13144876134349540152010-08-08T03:44:00.000-07:002010-08-08T03:46:22.212-07:00कड़वा और कठोर किंतु अच्छा निर्णय है नकल पर नकेल !<span style="font-size:130%;color:#330000;"></span><br /><span style="font-size:130%;color:#330000;"><p><br /> मैं उन अध्यापकों को बधाई देता हूँ जिन्होंने जोधपुर जिले में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पांच परीक्षा केन्द्रों पर इस वर्ष हुई दसवीं कक्षा की परीक्षा को निरस्त करने का कठोर और कड़वा निर्णय करवाने के लिये आगे आकर पहल की। अध्यापकों पर सचमुच बड़ी जिम्मेदारी है, समाज में दिखाई दे रही नैतिक गिरावट ; कोढ़, कैंसर या नासूर का रूप धारण करे, उससे पहले ही हमें इस तरह के प्रबंध करने होंगे। जिन अध्यापकों ने परीक्षा पुस्तिकाओं में सामूहिक नकल की दुर्गन्ध आने पर पुस्तिकाएं जांचने से मना कर दिया और बोर्ड कार्यालय को इन केन्द्रों पर जमकर हुई नकल की सूचना दी वे सचमुच प्रशंसा एवं बधाई के पात्र हैं। </p><p><br /> आज उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश एवं बिहार आदि राज्यों में परीक्षाओं के दौरान नकल करवाना एक उद्योग के रूप में पनप गया है, जबकि राजस्थान के अध्यापकों ने एक साथ पांच परीक्षा केन्द्रों पर हुई सामूहिक नकल के षड़यंत्र को विफल करके अद्भुत एवं ऐतिहासिक कार्य किया है। अन्य राज्यों के अध्यापकों को तो यह कदम मार्ग दिखाने वाला होगा ही, साथ ही राज्य के भीतर भी उन अध्यापकों, अभिभावकों एवं छात्रों को भी सही राह दिखायेगा जो नकल के भरोसे बच्चों को परीक्षाओं में उत्तीर्ण करवाना चाहते हैं। </p><p><br /> इस निर्णय से अवश्य ही उन परिश्रमी एवं प्रतिभाशाली छात्रों का भी एक वर्ष खराब हो गया है जिन्होंने परीक्षाओं के लिये अच्छी तैयारी की थी किंतु गेहूँ के साथ घुन के पिसने की कहावत यहीं आकर चरितार्थ होती है। अवश्य ही उनके साथ अन्याय हुआ है किंतु इस कठोर और कड़वे निर्णय के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। पांच परीक्षा केन्द्रों को नकल करवाने वाले केन्द्रों के रूप में चिह्नित होने से उन स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों और नकल में सम्मिलित व्यक्तियों को पूरे राज्य के समक्ष लज्जा का अनुभव होन चाहिये जिनके कारण उन विद्यालयों में सामूहिक नकल हुई और कतिपय निर्दोष छात्रों का भी साल खराब हो गया किंतु केवल यह नहीं समझना चाहिये कि राज्य के अन्य परीक्षा केन्द्रों पर नकल नहीं हो रही! आज छात्रों में नकल करने के कई तरीके प्रचलित हैं। संचार के आधुनिक साधनों ने नकल करने और करवाने के अधिक अवसर उपलब्ध करवा दिये हैं। </p><p><br /> सब जानते हैं कि दसवीं-बारहवीं कक्षा के बच्चों की समझ कम विकसित होने के कारण नकल की प्रवृत्ति को पूरी तरह नहीं रोका जा सकता किंतु सामूहिक नकल की जिम्मेदारी केवल छात्रों पर न होकर उनके शिक्षकों और अभिभावकों पर होती है। कतिपय अध्यापक ऐसे भी होते हैं जो परीक्षा केन्द्र पर अपने चहेते छात्र को अच्छे अंक दिलवाने के लिये, परीक्षा केन्द्र में बैठे प्रतिभाशाली छात्र पर दबाव बनाते हैं कि वह अमुक छात्र को नकल करवाये। जब यह दृश्य दूसरे परीक्षार्थी देखते हैं तो उनका हौंसला बढ़ता है और फिर उस केन्द्र पर जमकर नकल होती है। इस नकल का कुल मिलाकर परिणाम यह होता है कि कम प्रतिभाशाली छात्र की तो नैया पार लग जाती है किंतु प्रतिभाशाली और परिश्रमी छात्र स्वयं को ठगा हुआ अनुभव करते हैं। अत: नकल पर नकेल कसने का कदम हर तरह से उचित जान पड़ता है। </span></p>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-47565332989359398672010-08-05T02:50:00.000-07:002010-08-05T02:55:20.357-07:00वे अपना सामान ठेले पर रख कर क्यों नहीं बेचते !<span style="font-size:130%;color:#000066;">कल जब सवा सौ करोड़ भारतीयों की आंखें और कान, दिलों की धड़कनें और सांसें भारतीय संसद में महंगाई पर हो रही बहस पर, वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा दिये जा रहे प्रत्युत्तर पर अटकी हुई थीं, तब संसद में एक मोबाइल फोन की घण्टी बजी, पूरी संसद का ध्यान बंटा और वित्तमंत्री झल्लाये– नहीं, नहीं, अभी नहीं, मैं मीटिंग में हूँ और मोबाइल फोन कट गया। पूरा देश हैरान था कि ऐसे व्यस्ततम समय में वित्तमंत्रीजी के पास किसका फोन आया और वे किस बात पर झल्लाये ? जब पत्रकारों ने पूछा तो वित्तमंत्री ने बताया कि कोई मुझे होमलोन देना चाहता था। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पास ऐसे फोन दिन में चार–पांच आते हैं। देश की हैरानी का पार नहीं है। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#000066;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#000066;">समाचार पत्रों में यह भी छपा कि कुछ दिन पहले देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अम्बानी के पास भी किसी ने फोन करके उन्हें प्रस्ताव दिया था कि वे आकर्षक ब्याज दरों पर बिना कोई परेशानी उठाये, होम लोन ले लेें।पाठकों को बताने की आवश्यकता नहीं है कि मुकेश अम्बानी अपनी पत्नी को उनके आगामी जन्मदिन पर, देश में बन रहा सबसे बड़ा घर उपहार में देने वाले हैं। ऐसे घर या तो महेन्द्र धोनी जैसे क्रिकेटर बनाते हैं या अमिताभ बच्चन जैसे सिनेमाई अभिनेता या फिर मुकेश अम्बानी जैसे अरब पति व्यवसायी। पिछले जन्म दिन पर उन्होंने अपनी पत्नी को एक बहुत बड़ा हवाई जहाज उपहार में दिया था जिसके भीतर भी एक पूरा घर, दफ्तर, किचन, लाइब्रेरी आदि बने हुए थे।</span><br /><span style="font-size:130%;color:#000066;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#000066;">जिस देश के वित्तमंत्री तथा सबसे धनी व्यक्ति को भी दिन में चार पांच बार ऐसे मोबाइल फोनों से जूझना पड़ता हो तो मोबाइल फोनों द्वारा आम नागरिकों के जीवन में बरपाये जा रहे कहर का अनुमान लगाया जा सकता है। घरों में वृद्ध लोग जब दुपहरी में आराम कर रहे होते हैं तो ऐसे ही कोई फोन चला आता है जैसे कोई बेपरवाह भैंस किसी के हरे–भरे खेत में सुखचैन की हरी फसल चरने आ घुसी हो। आप रेलगाड़ी में चढ़ने के लिये हाथों में सामान और बच्चे उठाये हुए डिब्बे के हैण्डिल को पकड़ते हैं और मोबाइल बज उठता है– आप यह गाना डाउनलोड क्यों नहीं कर लेते मासिक शुल्क केवल तीस रुपये महीना! आप चिकित्सालय में भर्ती हैं, एक हाथ में ग्लूकोज की बोतल चढ़ रही है और आपके पलंग पर रखा हुआ मोबाईल बजता है– आप हमारी कम्पनी से इंश्योरेंस क्यों नहीं करवा लेते, हम आपको ईनाम भी देंगे! आप मंदिर में भगवान को जल अर्पित कर रहे होते हैं और फोन बजने लगता है– आप मनपसंद लड़कियों को दोस्त क्यों नहीं बना लेते ! उम्र उन्नीस साल! मन करता है सिर पीट लें, अपना भी और फोन करने वाले का भी। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#000066;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#000066;">कई बार लगता है कि ये लोग अपना सामान, ठेलों पर रखकर गली–गली घूम कर क्यों नहीं बेचते, ठीक वैसे ही जैसे सब्जी और रद्दी वाले घूमा करते हैं! कभी–कभी मुझे तरस आता है उन लड़के–लड़कियों पर जो प्रतिदिन ऐसे फोन करते हैं और लोगों की डांट खा–खाकर प्रताडि़त होते हैं। क्या उन्हें स्वयं पर तथा दूसरों पर तरस नहीं आता कि जब उनके द्वारा किये गये मोबाइल फोन की अवांछित घण्टी बजेगी, उस समय कोई सड़क पर मोटर साइकिल चलाता हुआ दुर्घटना का शिकार हो जायेगा या किसी वृद्ध व्यक्ति की नींद खराब होगी और कोई रोगी परेशान होकर उनपर गालियों की बौछार कर बैठेगा ! </span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-37690250391195670312010-08-04T04:50:00.001-07:002010-08-04T04:50:44.426-07:00धिक्कार है ऐसे रुपयों पर तो धिक्कार है ऐसी इज्जत पर भी !<span style="color: rgb(102, 0, 0);font-size:130%;" ><br />कल के समाचार पत्रों में जयपुर से एक समाचार छपा कि एक महिला ने अपनी सास के उपचार के लिये 500 रुपये नहीं दिये और इस बात पर पति से झगड़ा करके घर में रखे पांच लाख रुपयों के साथ जल कर मर गई। संसार में ऐसा भी कहीं होता है ! रुपये आखिर किस लिये होते हैं ! घर के सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये या फिर जलकर मरने के लिये ! यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इस प्रकरण में जो कुछ भी हुआ, वैसा कभी–कभार ही होता है। अन्यथा कौन नहीं चाहता कि उसके परिजन स्वस्थ रहें और उनका उपचार हो ! लोग तो घर की जमीनें और मकान बेचकर अपने परिजनों का उपचार करवाते हैं, जबकि इस प्रकरण में तो घर में पांच लाख रुपये रखे थे और उनमें से केवल पांच सौ रुपये पति द्वारा मांगे गये थे।<br />वस्तुत: यह कहानी रुपयों के प्रति मोह की नहीं है। यह कहानी है व्यक्तिगत स्वभाव की विकृति की। स्वभाव की यह विकृति सामान्यत: जन्मगत और व्यक्तिगत होती है किंतु संस्कार जन्य भी होती है। अच्छे संस्कारमय वातावरण में यदि लालन पालन हो तो मनुष्य की व्यक्तिगत विकृतियों को पर्याप्त सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है किंतु आज के जीवन में मनुष्य जिस आपाधापी में लग गया है उसमें संस्कार निर्माण की बात जैसे भुला ही दी गई है। ऐसे लोग इंसानों से नहीं रुपयों से प्यार करते हैं। धिक्कार है ऐसे रुपयों पर!<br />कल के ही दिन उत्तर प्रदेश में हाथरस के पास स्थित एक गांव का भी समाचार था कि एक आदमी ने अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह होने पर उसकी हत्या करके उसका रक्त अपने दोनों बच्चों को पिलाया। ऐसे जघन्य अपराध भले ही हमारे समाज का वास्तविक चेहरा नहीं हैं किंतु ये जब–तब होते ही रहते हैं। ऐसी दुर्घटनायें भी व्यक्तिगत स्वभाव की विकृति का परिणाम हैं। संस्कारों के अभाव के कारण आदमी अपने क्रोध को नियंत्रण में नहीं रख पाता और ऐसा कुछ कर बैठता है जिसे सुनकर दूसरों का भी कलेजा कांप जाये। जिस इज्जत को लेकर पति इतना क्रोधित हुआ कि इंसानियत की सीमा से नीचे गिरकर हैवान बन गया, धिक्कार है ऐसी इज्जत पर !<br />वस्तुत: इन दोनों ही प्रकरणों में दण्डित कौन हुआ? क्या केवल वह पति जिसके पांच लाख रुपये और पत्नी जल गई ? या फिर स्वयं वह पत्नी जो अपने ही क्रोध की अग्नि में जलकर भस्म हो गई ? दूसरे प्रकरण में भी वास्तविक दण्ड किसे मिला ? क्या केवल उस पत्नी को जिसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा या फिर उस पति को भी जिसने अपने ही हाथों से हंसते खेलते परिवार में आग लगा ली ?<br />एक अंग्रेज कवि ने लिखा था कि कविता में धन नहीं होता और धन में कविता नहीं होती। वस्तुत: जीवन भी एक ऐसी ही विचित्र पहेली है जिसमें यदि कविता आ जाये तो धन नहीं रहता और धन आ जाये तो कविता नहीं रहती किंतु ये दोनों प्रकरण ऐसे हैं जिनमें न कविता है और न धन है, बस संस्कारहीनता के मरुस्थल में जन्मी हुई मरीचिकाएं हैं जिनके पीछे दौड़ता हुआ मनुष्य छटपटा कर दम तोड़ देता है और तृष्णाएं अतृप्त रह जाती हैं।<br /><br /></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-53561421644737428142010-08-02T22:25:00.000-07:002010-08-02T22:29:46.708-07:00कपड़े ऐसे कि फिल्मी तारिकाएं भी शर्मा जायें !<span style="font-size:130%;color:#003300;"></span><br /><p><span style="font-size:130%;color:#003300;"></span></p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">सर्वोच्च न्यायालय ने 1978 में दिये गये एक निर्णय में एक अत्यंत महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि एक नागरिक को हाड़–मांस की तरह जीवित रहने का अधिकार नहीं है, उसके जीवन के अधिकार में यह सम्मिलित है कि उसे दोनों समय रोटी मिले और चौबीसों घण्टे सम्मान मिले। इस तरह की टिप्पणियां ऐतिहासिक होती हैं, जो लम्बे समय तक स्मरण रखी जाती हैं तथा राष्ट्रीय जन जीवन को दिशा देती हैं। कल पूना में एक महाविद्यालय के लगभग पांच सौ छात्र–छात्राओं को अर्धरात्रि में एक गांव में शराब पार्टी करते हुए पकड़ा गया तथा देश के कई महानगरों में कतिपय सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने फ्रैण्डशिप डे मना रहे युवक युवतियों को पीटा, तो मुझे सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी बरबस स्मरण हो आई। </span></span></p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;"><span class=""></span></span></span> </p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">पूना में पुलिस ने महाविद्यालयी छात्र–छात्राओं पर वाद स्थापित किया है क्योंकि उन्होंने देर रात पार्टी करने तथा निर्धारित समय के बाद माइक बजाने की पूर्वानुमति नहीं ली। पुलिस के अनुसार इन छात्र–छात्राओं का इतना ही अपराध है ! पुलिस ने कुछ सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं पर भी वाद स्थापित किये क्योंकि नागरिकों की पिटाई करना अपराध है। दोनों ही प्रकरणों में विधि सम्मत कार्यवाही की गई है किंतु जब मैं सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी पर विचार करता हूँ तो मुझे लगता है कि जहां एक ओर देश के हर नागरिक को चौबीसों घण्टे सम्मान उपलब्ध रहने की अपेक्षा की गई है, वहीं दूसरी ओर इन दोनों ही प्रकरणों में सवा सौ करोड़ नागरिकों के आत्म सम्मान को गहरी ठेस पहुंचाई गई है। </span></span></p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;"><span class=""></span></span></span> </p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">जिन अभिभावकों ने अपने संतानों को सुदूर किसी अनजान गांव में शराब पार्टी में सम्मिलित देखा होगा, उनका सिर अपने पड़ौसियों, सम्बन्धियों, मित्रों तथा परिचितों के समक्ष किस तरह से झुका होगा, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इस पार्टी में सम्मिलित महाविद्यालयी छात्राओं के परिधान ऐसे थे जिन्हें देखकर फिल्मी तारिकाएं भी लजा जायें, पूरा समाज लजा लाये। हेमामालिनी, रेखा और जयाप्रदा आदि विख्यात तारिकाएं फिल्मी पर्दे पर भले ही कैसे ही वस्त्र पहनती रही हों किंतु वे सार्वजनिक स्थलों पर अत्यंत शालीन वस्त्रों में आती हैं। नरगिस दत्त सदैव सिर पर पल्लू लेकर चलती थीं किंतु आज की छात्राओं ने फिल्मी परिधानों को जीवन की वास्तविकता समझ लिया है। </span></span></p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;"><span class=""></span></span></span> </p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">शराब की खुली बोतलें, अधनंगी युवतियां, अर्धरात्रि का समय और सुदूर ग्रामीण क्षेत्र! इस परिवेश से अनुमान लगाया जा सकता है कि पार्टी में युवक क्या कर रहे होंगे ! वहाँ व्यभिचार नहीं तो कम से कम अद्र्धव्यभिचार जैसी स्थिति अवश्य रही होगी। यह भी स्मरण दिला देना प्रासंगिक होगा कि विगत कुछ वर्षों में विद्यालयी एवं महाविद्यालीय छात्राओं में गर्भपात करवाने का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। जब पूरे समाज से अपेक्षा की जा रही हो कि वह नागरिकों को चौबीसों घण्टे सम्मान उपलब्ध करवायेगा तब यह कैसी विडम्बना है कि अपने ही बच्चे उस सम्मान को खुरच कर नष्ट करने पर तुले हुए हैं ! </span></span></p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;"><span class=""></span></span></span> </p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003300;">यह सही है कि एक नागरिक के द्वारा दूसरे नागरिक की पिटाई करना अपराध है किंतु क्या पूना की शराब पार्टी के परिप्रेक्ष्य में ऐसा नहीं लगता है कि यदि सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता, पथभ्रष्ट युवाओं को फ्रैण्डशिप डे तथा वेलेण्टाइन डे के नाम पर सार्वजनिक रूप से मर्यादाओं का उल्लंघन करने पर उन्हें प्रताडि़त करते हैं तो वे समाज के सम्मान की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं तथा युवाओं को व्यभिचार के मार्ग पर बढ़ने से रोक रहे हैं! </span></span></p>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-2603027503926693072010-07-19T05:21:00.000-07:002010-07-19T05:28:14.435-07:00एक प्रियंका चौपड़ा हैं और एक ये हैं !<span style="color:#660000;"></span><br /><span style="color:#660000;"><span style="font-size:130%;">रविवार के दिन जोधपुर में दर्दनाक दुर्घटना हुई। एक दादी अपनी पोती को लेकर चलती हुई रेल से नीचे गिर पड़ी। दादी तो सही–सलामत बच गई किंतु बच्ची का हाथ कट गया। दादी इसलिये गिरी क्योंकि उस डिब्बे में इतनी भीड़ थी कि दादी दरवाजे से आगे नहीं बढ़ सकी। दादी आगे इसलिये नहीं बढ़ सकी क्योंकि डिब्बे में क्षमता से अधिक लोग भरे हुए थे। डिब्बे में क्षमता से अधिक लोग इसलिये भरे हुए थे क्योंकि भारत की जनसंख्या आज पूरी गति से बढ़ रही है। उसे चीन से आगे निकलने की जल्दी जो पड़ी है! आज अनेक विकसित देशों में जनसंख्या स्थिरिकरण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है, वहां जनसंख्या नहीं बढ़ती। इसलिये वहां इस तरह की समस्याएं उत्पन्न नहीं होतीं। न तो हर वर्ष सड़कों की लम्बाई बढ़ाने की आवश्यकता है, न ट्रेनों की संख्या। न हर वर्ष नये स्कूल खुलते हैं, न चिकित्सालय। जो संसाधन एक बार विकसित कर लिये जाते हैं, समय बीतने के साथ–साथ उनके संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम किया जाता है। जबकि भारत में चाहे जितनी भी नई सड़कें, रेलगाडि़यां, स्कूल, चिकित्सालय, पुल, बिजलीघर, सीमेण्ट के कारखाने बना दो, अगले साल वे कम पड़ जायेंगे। भारत की जनसंख्या में हर साल एक आस्ट्रेलिया के बराबर जनसंख्या जुड़ जाती है।ढाई साल की बालिका का कटा हुआ हाथ लम्बे समय तक हमें स्मरण करवाता रहेगा कि हमने अपने देश को किस तरह ठसाठस जनसंख्या वाला देश बना दिया है कि बच्चों को भी ट्रेन में बैठने का स्थान नहीं बचा है। मैं समझता हूँ कि पूरे राष्ट्र को उन बच्चों से क्षमा मांगनी चाहिये जो अपने बड़ों की गलतियों का दण्ड भुगत रहे हैं। इस पूरे प्रकरण में यह तथ्य भी दुखदायी है कि जो दादी ट्रेन से गिरी उसकी उम्र केवल 38 साल है और जिस पोती का हाथ कटा उसकी आयु ढाई साल है। अर्थात् दादी और पोती की आयु में केवल 35–36 साल का अंतर है। क्या यह उम्र दादी बनने के लिये सही है? यदि 35 साल की उम्र में औरत दादी बनेगी तो फिर रेल के डिब्बे में बैठने के लिये जगह कैसे बचेगी? है किसी के पास इस प्रश्न का उत्तर?अभी कुछ ही दिन पहले, संभवत: इसी सप्ताह सिने अभिनेत्री प्रियंका चौपड़ा ने अपनी आइसवीं सालगिरह मनाई है। एक ओर प्रियंका चौपड़ा जैसी औरतें इस देश में रहती हैं जिन्होंने 28 साल की आयु में भी विवाह नहीं किया और दूसरी ओर रेल से नीचे गिरने वाली दादी है जो 35–36 साल की उम्र में दादी बन जाती है। संभवत: इसी को कहते हैं– दुनिया के समानान्तर एक और दुनिया! आज महिलाएं पुरुषों के कदम से कदम बढ़ाकर हर क्षेत्र में अपनी योग्यता सिद्ध कर रही हैं, फिर ऐसा क्यों है कि आज भी करोड़ों महिलाएं सोलहवीं सदी की परम्पराओं से बंधी हुई हैं और गुे–गुडि़यों से खेलने की आयु में पति, ससुराल और बच्चों की जिम्मेदारी ओढ़ लेती हैं? चीन हमसे बहुत बड़ा है, आकार में भी, जनसंख्या में भी किंतु उसने विगत कुछ दशकों से अपने नागरिकों के लिये एक बच्चे का नियम लागू कर रखा है। इसी के चलते चीन अपनी जनसंख्या को स्थिर करने का लक्ष्य शीघ्र ही प्राप्त कर लेगा किंतु मुझे भय है कि हमारे देश की रेलों के थर्ड क्लास के डिब्बे इतने ठसाठस भर जायेंगेे जिनसे गिरकर हाथ–पैर गंवाने वालों की संख्या बढ़ती ही चली जायेगी। यह दूसरी बात है कि डिब्बों के बाहर थर्ड क्लास की जगह सैकेण्ड क्लास लिखा होगा! </span></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-71045856790440166232010-06-28T20:42:00.000-07:002010-06-28T20:44:03.867-07:00दो पाटों के बीच में कौन पिसना चाहता है। !<span style="font-size:130%;color:#330099;"> </span><br /><span style="font-size:130%;color:#330099;"> अपने पिछले आलेख जिंदगी के बस स्टॉप पर भी समय नहीं रुकता ! में मैंने लिखा था कि टाइम इज मनी के नारे ने भारतीय नारियों को उनकी घरेलू भूमिकायें अधूरी छोड़कर नौकरियों की ओर दौड़ा दिया। इस पर निर्मला कपिलाजी ने मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी की है कि वे मेरी इस बात से सहमत नहीं। भारतीय नारियों को उसके शोषण और उन पर हो रहे अत्याचारों और समान अधिकार ने उन्हें इस राह पर चलाया। अगर आदमी जरा सा भी अपने अहंकार से ऊपर उठकर उसे सम्मान देता, यह कभी नहीं होता, कौन नारी चाहती है कि वह दो पाटों के बीच में पिसे। इस अंधी दौड़ के और भी कई कारण हैं न कि टाइम इज मनी। <br /> मैं निर्मलाजी की लगभग सारी बातों से सहमत हूँ। यह सही है कि भारतीय समाज में हर औरत से राजा हरिश्चंद्र की रानी तारामती की तरह व्यवहार करते रहने की अपेक्षा की गई जो हर हाल में पति की आज्ञाकारिणी बनी रहे और तरह-तरह के कष्ट पाकर पति तथा उसके परिवार की सेवा करे किंतु अधिकांश पुरुषों ने स्वयं को भारतीय नारी के सम्मुख राजा हरिश्चंद्र की तरह प्रस्तुत नहीं किया। मैंने उन पुरुषों को देखा है जिन्होंने अपनी कमाई को शराब, जुए अथवा परस्त्रीगमन जैसी बुराइयों में उड़ा दिया। उन्होंने शराब के नशे में अपनी पत्नी को पीटा और घर से निकाल दिया।<br /> जिन घरों में पुरुष ऐसे थे, उन घरों में निश्चित रूप से परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी औरतों पर आ पड़ी किंतु सवाल यह है कि भारतीय समाज में कितने पुरुष ऐसे हैं जो शराब पीकर अपनी पत्नी को पीटते हैं? कितने पुरुष ऐसे हैं जो अहंकार के कारण पत्नी को सम्मान नहीं देते? कितने पुरुष ऐसे हैं जिन्होंने अपने घरों में स्त्रियों पर अत्यार किये और उन्हें घर में अपने बराबर का सदस्य नहीं समझा? मैं समझता हूँ कि यदि प्रतिशत में बात की जाये तो ऐसे दुराचारी, अत्याचारी, अहंकारी पुरुषों की संख्या एक प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। आप दस प्रतिशत मान लीजिये ! दस प्रतिशत पुरुषों की गलती के लिये सौ प्रतिशत पुरुषों पर दोषारोपण करना वस्तुत: देश में फैलाये गये एक भ्रम का परिणाम है। मैं समझता हूँ कि जितने प्रतिशत पुरुष अपने घरों की महिलाओं पर अत्याचार करते हैं तो उतनी ही प्रतिशत औरतें भी हैं जो अपने पतियों पर अत्याचार करती हैं। फिर भी पूरी स्त्री जाति को तो कोई कटघरे में खड़ा नहीं करता ! करना भी नहीं चाहिये। मेरा यह अनुभव है कि जब भी औरतों के सम्बन्ध में कुछ कहा जाता है, एक विशेष मानसिकता से ग्रस्त लोग उसका विरोध करने के लिये आ खड़े होते हैं और मूल विषय से ध्यान भटका देते हैं। समाज न तो स्त्री के बिना चल सकता है और न पुरुष के बिना। हर पुरुष ने माँ के पेट से जन्म लिया है और हर स्त्री किसी पिता की पुत्री है। मेरा पिछला आलेख इस विषय पर नहीं था कि औरतें कमाने के लिये घर से बाहर क्यों निकलीं? मैं तो समाज का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता था कि केवल पैसे के लिये जीवन भर हाय-तौबा मचाने से व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के जीवन में समस्याएं उत्पन्न होती है। सुख-चैन तिरोहित हो जाते हैं। पैसा सबको चाहिये किंतु कितना चाहिये और किस कीमत पर चाहिये, इसके बारे में कभी तो बैठकर विचार करें। फिर भी निर्मला कपिलाजी का आभार है क्योंकि उन्होंने एक बड़े सत्य की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है कि दो पाटों के बीच में कौन पिसना चाहता है। </span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-45746735720625089742010-06-28T19:43:00.000-07:002010-06-28T19:44:45.442-07:00चींटियों को मछलियाँ बनने में देर नहीं लगती !<span style="font-size:130%;color:#003333;"> जब नदी में बाढ़ आती है तो नदी के किनारों पर रहने वाली चींटियों के झुण्ड बहकर नदी में चले आते हैं जहाँ मछलियाँ उन्हें खा जाती हैं। कुछ समय बाद जब नदी सूख जाती है तो मछलियां मरने लगती हैं और नदी के किनारों पर रहने वाली चींटियाँ उन्हीं मछलियों को खा जाती हैं जिन्हाेंने एक दिन चींटियों को खाया था। यह है काल का प्रताप! पात्र वही हैं किंतु काल के बदलते ही भक्षक भक्ष्य हो जाता है। एक और उदाहरण देखें। जब आदमी जंगल में जाता है तो उसे जानवर घेर लेते हैं किंतु जब जानवर बस्ती में आता है तो उसे आदमी घेर लेते हैं। पात्र वही हैं किंतु देश बदलते ही पात्रों की भूमिका बदल जाती है।</span><br /><br /><span style="font-size:130%;color:#003333;"> सामान्यत: देश, काल और पात्र मिलकर परिस्थितियों का निर्माण करते हैं किंतु प्राय: देश और काल, पात्रों को अधिक प्रभावित करते हैं। भारत सरकार ने समाचार पत्रों में भारत तथा उसके पड़ौसी देशों में पैट्रोलियम पदार्थों के भाव प्रकाशित करवाये हैं जिनके अनुसार एलपीजी गैस सिलैण्डर का भाव पाकिस्तान में 577 रुपये, बांगलादेश में 537 रुपये, श्रीलंका में 822 रुपये, नेपाल में 782 रुपये तथा भारत में 345 रुपये प्रति सिलैण्डर है और कैरोसिन का भाव पाकिस्तान में 36 रुपये, बांगलादेश में 29 रुपये, श्रीलंका में 21 रुपये, नेपाल में 39 रुपये तथा भारत में 12.32 रुपये प्रति लीटर है। </span><br /><br /><span style="font-size:130%;color:#003333;"> ये पांचों देश दक्षिण एशिया में स्थित हैं। इन पांचों देशों में लोकतंत्र है। पांचों देश गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से त्रस्त हैं। पांचों देश अंग्रेजों के पराधीन रहे हैं। पांचों ही देशों में जनता का अपने धर्म पर अटूट विश्वास है। पांचाें ही देशों की जलवायु गर्म है। पांचों देशों में जनसंख्या ठूंस-ठूंस कर भरी हुई है। फिर क्या कारण है कि इन पांचों देशों में पैट्रोलियम पदार्थों के भावों में इतना अंतर है! </span><br /><br /><span style="font-size:130%;color:#003333;"> सारे तत्व लगभग एक से होने पर भी देशों का अंतर समझे जाने योग्य है। भारत को हमारे ऋषियों ने अकारण ही महान नहीं कहा है। दूसरे देशों से तुलना करने पर भारत की विलक्षणता स्वत: सिध्द होती है। देश को यह महानता, राष्ट्रीय अनुशासन, सांस्कृतिक विलक्षणता और राष्ट्रप्रेम से प्राप्त होती है किंतु जैसे-जैसे प्रजा के जीवन में उच्छृंखलता आती है, लोग संस्कृति को भूलकर अपने देश की अपेक्षा पूंजी से प्रेम करने लगते हैं तो देश की महानता नष्ट हो जाती है। हमारे पड़ौसियों की महानता इसीलिये नष्ट हुई है। वहाँ की प्रजाएँ अपने देश से प्रेम नहीं करतीं और न ही राष्ट्रीय अनुशासन में बंधे रहना चाहती हैं। उनमें अशिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई और निर्धनता चरम पर है। वहाँ से जनसंख्या का पलायन भारत की ओर होता रहा है। भारत अपनी प्रजा पर गर्व कर सकता है और कहा जा सकता है कि जब तक भारत की प्रजा राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीय अनुशासन में आबध्द रहेगी, तब तक राष्ट्र हमारे लिये सुखकारी बना रहेगा। अन्यथा चींटियों को मछलियों का स्थान लेने में अधिक समय नहीं लगता। <br /> </span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-50640755662164199072010-06-28T04:36:00.000-07:002010-06-28T04:40:07.231-07:00जिंदगी के बस स्टॉप पर भी समय नहीं रुकता !<span style="font-size:130%;color:#000066;"></span><br /><p><span style="font-size:130%;color:#000066;"><span style="color:#ff0000;">टोकियो बसस्टॉप पर लगे एक बोर्ड पर लिखा है- यहाँ केवल बसें रुकती हैं, समय नहीं रुकता।</span> सही बात है, संसार में केवल समय ही ऐसा ज्ञात तत्व है जो सूर्य, धरती और आकाशगांगाओं के चलना आरंभ करने से पहले भी चल रहा था। यदि सूरज अपनी समस्त ऊर्जा खोकर और धरती अपना गुरुत्वाकर्षण खोकर मिट जायें तब भी समय तो चलता ही रहेगा। हम सबने समय के पेट से जन्म लिया है और समय आने पर हम फिर इसी में चले जायेंगे। हम कुछ नहीं हैं केवल समय की शोभा हैं, फिर भी हम लोग समय की कमी का अशोभनीय रोना रोते रहते हैं। वस्तुत: समय किसी के पास कम या अधिक नहीं होता, वह तो हर आदमी को नियति ने जितना दिया है, उतना ही होता है। समय के लिये हमारा रुदन कृत्रिम है और मनुष्य जाति को अकारण दुखी करने वाला है। </span></p><span style="font-size:130%;color:#000066;"><p><br />संभवत: बिजनिस मैनेजमेंट पढ़ाने वाले लोगों ने सबसे पहले टाइम इज मनी कहकर लोगाें को समय की कमी का रोना रोने के लिये उकसाया। इस नारे ने लोगों का सुख और चैन छीनकर उनके मस्तिष्कों में आपाधापी भर दी। जिसने भी इस नारे को सुना वह अपने समय को धन में बदलने के लिये दौड़ पड़ा। इसी नारे की देन है कि संसार में कहीं भी तसल्ली देखने को नहीं मिलती। रेल्वे स्टेशनों, बैंकों और अस्पतालों की कतारों में खड़े लोग अपने से आगे खड़े लोगों को पीछे धकेल कर पहले अपना काम करवाना चाहते हैं। </p><p><br />टाइम इज मनी के नारे ने भारतीय नारियों को उनकी घरेलू भूमिकाएं अधूरी छोड़कर नौकरियों की ओर दौड़ा दिया। आखिरकार उनके पास भी कुछ तो समय है ही, जिसे धन में बदला जा सकता है। समय को धन में बदलने के लिये आदमियों ने घर के बूढ़े सदस्यों को वृध्दाश्रमों में, बच्चों को क्रैश और डे-बोर्डिंग में तथा परिवार के विक्षिप्त सदस्यों को तीर्थस्थलों और जंगलों में छोड़ दिया क्योंकि इनकी सेवा करेंगे तो समय को धन में कब बदलेंगे ! लोग बिना समय गंवाये करोड़पति बनना चाहते हैं, करोड़पतियों को अपना समय अरबपति बनने में खर्च करना है। इसी आपाधापी को देखकर गुरुदत्ता ने कहा था- ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है !</p><p><br />टाइम इज मनी की विचित्र व्याख्या के विपरीत संसार में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने समय को इस तरह प्रयोग करते हैं जो समय की सीमा को लांघ जाते हैं। मदनलाल धींगरा ने सन् 1909 में कर्जन वायली की सरेआम हत्या की। जज ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। इस पर धींगरा ने कहा- आज तुम मुझे फांसी पर चढ़ा दो किंतु आने वाले दिनों में हमारा भी समय आयेगा। अर्थात् वे जानते थे कि समय केवल शरीर के रहने तक साथ रहने वाली चीज नहीं है, वह तो शरीर के मरने के बाद भी रहेगा। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्ता ने पार्लियामेंट में बम फैंका था। पूरा पार्लियामेंट धुएं से भर गया, वे चाहते तो इस समय का उपयोग भागने में कर सकते थे किंतु उन्हें अपने समय को धन में नहीं बदलना था, देश की आजादी में बदलना था। इसलिये वे वहीं खड़े रहे और फांसी के फंदे तक जा पहुंचे। उन्हें ज्ञात था कि समय फांसी के फंदे के साथ समाप्त नहीं होगा, वह तो आगे भी चलता ही रहेगा। सही बात तो यह है कि समय टोकियो के बसस्टॉप पर तो क्या, जीवन के बसस्टॉप पर भी नहीं रुकता। </span></p>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-35626946381234809992010-06-21T03:49:00.000-07:002010-06-21T03:52:58.999-07:00जिस बात पर विवेकानंद हँसे, उसी बात पर कबीर रो चुके थे !<span style="font-size:130%;color:#6600cc;"></span><br /><p><span style="font-size:130%;color:#6600cc;">आज मेरे मोबाइल पर एक विचित्र एस.एम.एस. आया जिसमें लिखा था– लोग मुझ पर हँसते हैं क्योंकि मैं सबसे अलग हूँ। मैं भी उन पर हँसता हूँ, क्योंकि वे सब एक जैसे हैं। –स्वामी विवेकानंद। इस छोटे से संदेश ने मुझे हिला दिया। स्वामी विवेकानंद भारत की महान विभूति हो गये हैं। उन्होंने कुल 40 साल की आयु पाई। जब 30 वर्ष की आयु में उस युवा सन्यासी ने शिकागो धर्म सम्मेलन में अमरीकियों और यूरोपवासियों को माई ब्रदर्स एण्ड सिस्टर्स कहकर पुकारा तो सम्पूर्ण संसार की आत्मा आनंद से झूम उठी थी। वह पहला दिन था जब संसार ने भारत की आत्मा के मधुर संगीत की झंकार सुनी थी। उससे पहले हिन्दुस्तान का कोई भी आदमी, दंभी अमरीकियों को भाई–बहिन कहकर नहीं पुकार सका था। तब गोरी चमड़ी वाले, काली चमड़ी वालों को अपना दास मानते थे। लेडीज और जेंटलमेन के स्थान पर भाई–बहिन का सम्बोधन उनके लिये नया था। विवेकानंद, जो भारत के गौरव को संसार में हिमालय की तरह ऊँचा स्थान दिलवा गये, उन्हें यदि यह कहना पड़ा कि मैं भी लोगों पर हँसता हूँ क्योंकि वे सब एक जैसे हैं, तो इसके निश्चय ही गंभीर अर्थ हैं। यह बात जानकर हमें रो पड़ना चाहिये कि विवेकानंद हम पर हँसते थे!</span></p><p><br /><span style="font-size:130%;color:#6600cc;">क्या भारत के लोग सचमुच ऐसे हैं जिन पर हँसा जाये। हँसे तो अंग्रेज भी थे 1947 में यह सोचकर कि देखो इन हतभागी हिन्दुस्तानियों को, जो हम जैसे योग्य शासकों को इस देश से भगा रहे हैं। हमने इन्हें कायर और षड़यंत्री राजाओं, नवाबों और बेगमों के चंगुल से आजाद करवाकर नवीन शासन व्यवस्थाएं दीं। हमने इन्हें रेलगाड़ी, सड़क, पुल, टेलिफोन, बिजली, सिनेमा, अस्पताल, बैंक और स्कूल दिये और ये हमें भगा रहे हैं ! अंग्रेजों को पूरा विश्वास था कि एक दिन हिन्दुस्तानी अपने इस अपराध के लिये पछतायेंगे और हमें हाथ जोड़कर वापस बुलायेंगे। एक–एक करके 62 साल बीत चुके। हमें आज तक अंग्रेजों की याद नहीं आई। भारत की रेलगाडि़याँ, सड़कें, पुल, टेलिफोन, बिजली, सिनेमा, अस्पताल, बैंक और स्कूल दिन दूनी, रात चौगुनी गति से बढ़कर आज देश के कौने–कौने में छा चुके हैं। देश आगे बढ़ा है। सम्पन्नता आई है, हमारी आंखों के सामने, मध्यमवर्ग बैलगाडि़यों से उतरकर कारों में आ बैठा है। आलीशान मॉल, फाइव स्टार होटलों और हवाई जहाजों में पैर धरने की जगह नहीं बची है। तो क्या फिर भी हम इसी लायक बने हुए हैं कि हम पर हंसा जाये! </span></p><p><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#6600cc;">जवाहरलाल नेहरू, जिन्होंने अपने हाथों से हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान बनाया, वे भी एक दिन हम पर यह कहकर हंसे थे– लोग कारों में चलते हैं किंतु उनमें बैलगाडि़यों में चलने की तमीज नहीं है। कबीर भी हम पर यह कहकर हँसते रहे थे– पानी में मीन पियासी, मोहे सुन–सुन आवत हाँसी ! किंतु कबीर को यह कहकर रोना भी पड़ा था– सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे, दुखिया दास कबीर है, जागै और रौवे। वस्तुत: देखा जाये तो विवेकानंद, जवाहरलाल नेहरू और कबीरदास एक ही बात पर हँस और रो रहे हैं और वह बात यह है कि हम केवल अपने सुख और स्वार्थों की पूर्ति तक ही सीमित होकर रह गये हैं। हमें कोई अंतर नहीं पड़ता इस बात से कि हमारे किसी कृत्य से समाज के दूसरे लोगों को कितनी चोट पहुंच रही है! ऋषियों की संतान होने का दावा करने वाले भारतीय, भौतिक उपलब्धियों के पीछे पागल होकर, एक दूसरे के पीछे लट्ठ लेकर भाग रहे हैं। इसी कारण हम विवेकानंद को एक जैसे दिखाई देते थे और इसी कारण कबीर हमें देखकर रातों को जागते और रोते थे। </span></span></p>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-65543300041195999372010-06-08T22:32:00.000-07:002010-06-08T22:34:03.878-07:00क्या अन्तर है वारेन हेस्टिंग्ज और वारेन एण्डरसन की कहानी में !<span style="color: rgb(51, 0, 153);font-size:130%;" >भारत के लोग वारेन हेस्टिंग्स और वारेन एण्डरसन, दोनों नामों से भली भांति (अथवा बुरी भांति!) परिचित हैं। वारेन हेस्टिंग्स भारत का पहला गवर्नर जनरल (ई.1772 से 1785) बना। ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भारत सरकार में बदलने का पूरा श्रेय (अथवा कलंक!) वारेन हेस्टिंग्स को जाता है। उसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दो चेहरे दिये। पहला चेहरा पिट्स इण्डिया एक्ट के रूप <span>में</span> था जिसमें कहा गया था कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत के किसी भी देशी राज्य को बलपूर्वक अपने क्षेत्र में नहीं मिलायेगी। इस चेहरे के नीचे दूसरा चेहरा छिपा था जो भारतीय क्षेत्राें पर छल–कपट से नियंत्रण करने और देशी राजाओं, नवाबों और बेगमों को पैरों तले रौंदकर अपने अधीन बनाने का काम करता था।<br /><br />वारेन हेस्टिंग्स की पूरी कहानी टिपीकल है। वह गरीब बाप का बेटा था। बचपन आवारागर्दी में गुजारा और बड़ा होकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी में बाबू बन गया। कम्पनी में घूसखोरी, भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता, दलाली तथा निजी व्यापार का बोलबाला था। अंग्रेज अधिकारी भारत से अथाह धन लूट कर इंगलैण्ड लौटते थे। पूरे यूरोप में निर्धन थॉमस पिट (ई. 1643–1726) का उदाहरण दिया जाता था जिसने भारत से इतना धन बटोरा था कि वह इंग्लैण्ड के उल्लेखनीय अरबपतियों में गिना जाने लगा था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी में बकायदा दलाल नियुक्त होते थे जो भारतीय राजाओं और नवाबों से सम्पर्क रखते थे और उन्हें महंगे उपहार, विदेशी शराब तथा गोरी वेश्याएं उपलब्ध करवाकर कम्पनी के व्यापारिक हित साधते थे। मौका मिलते ही अंग्रेज अधिकारी दोनों हाथों से पैसा बटोरते थे। वे खुल्लमखुल्ला रिश्वत, कमीशन, भेंट, उपहार, ग्रेटीट्यूड तथा टिप लेते और देते थे। वारेन हेसि्ंटग्स भी धन की इस लूट में शामिल हो गया और तरक्की करता हुआ कम्पनी का गवर्नर जनरल बन गया। उसका खजाना हीरों के हार और अंगूठियों, सोने चांदी के बरतनों तथा शेर–चीतों की खालों से भर गया। जब वह अपने देश वापस लौटा तो उस पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चला। हेस्टिंग्स ने स्वयं को गोली मारी किंतु बच गया। मुकदमे में भी वह बरी कर दिया गया।<br /><br />वारेन हेस्टिंग्ज की कहानी यहां पूरी हो जाती है किंतु वारेन एण्डरसन की कहानी उसके पूरे दो सौ साल बाद आरंभ होती है। वारेन हेस्टिंग्स अंग्रेज था जबकि वारेन एण्डरसन अमरीकी है, किंतु है उसी यूरोपीयन प्रजाति का वंशज। वारेन हेस्टिंग्स की ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत पर गुलामी लादी और भारत का रक्त चूसा जबकि वारेन एण्डरसन की यूनियन कार्बाइड कम्पनी ने विषैली गैस लीक करके 15 हजार लोगों को मौत की नींद सुलाया तथा 5 लाख लोगों को अपाहिज बना दिया। वारेन हेस्टिंग्स ने भारत से लूटे गये धन का हिसाब बताने से मना कर दिया और वारेन एण्डरसन ने यूनियन कार्बाइड से निकली जहरीली गैस का नाम बताने से मना किया। वारेन हेस्टिंग्स को भारत से लौटने के बाद अपने ही देशवासियों के मुकदमे का सामना करना पड़ा जबकि वारेन एण्डरसन अपने निजी चार्टर्ड प्लेन में बैठकर 25 साल से पूरी दुनिया में ऐश करता घूम रहा है। यही अंतर है वारेन हेस्टिंग्स और वारेन एण्डरसन की कहानी में।<br /><br /></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-38947591680880699232010-06-08T03:12:00.000-07:002010-06-08T03:13:26.986-07:00पन्द्रह हजार आत्माएँ उसे ढूंढ रही हैं !<span style="color: rgb(51, 0, 153);font-size:130%;" ><br />पिछले पच्चीस साल से वह अपनी कम्पनी के ट्रेेड सीक्रेट के साथ अपने निजी चार्टर्ड प्लेन में बैठकर उड़ रहा है। पन्द्रह हजार मृतकों की आत्माएं उसका पीछा कर रही हैं। भारत की खुफिया एजेंसियां उसे दुनिया के कोनों–कोचरों में ढूंढ रही हैं। 5 लाख लोगों की तीन पीढि़यां उसे खोजते–खोजते थक गई हैं किंतु वह किसी के हाथ नहीं आ रहा। संसार का ऐसा कोई अखबार नहीं है जिसमें उसकी गुमशुदगी का इश्तहार छपवाया जा सके। जिस समय वह अपने निजी प्लेन में बैठकर दुनिया की आँखों से ओझल हुआ था, उस समय उसकी आयु 65 साल थी। अब वह 90 वर्ष का हो चुका है। उसका नाम एण्डरसन है।<br /><br />यह वही एण्डरसन है जिसकीयूनियन कार्बाइड से निकली गैस ने 2–3 दिसम्बर 1984 की स्याह–सर्द रात में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 15 हजार लोगों को मौत की नींद सुलाया। डॉक्टरों ने उससे पूछा, हमें बताईये कि आपके प्लाण्ट से किन गैसों का रिसाव हुआ ताकि हम पाँच लाख घायलों का सही उपचार कर सकें और उनका जीवन बचा सके। उसने बेशर्मी से जवाब दिया, यह हमारी कम्पनी का ट्रेड सीक्रेट है! उसके बाद वह अपनी जमानत करवाकर अपने चार्टर्ड प्लेन में बैठकर अमरीका के किसी सुविधा सम्पन्न शहर को उड़ गया। तभी से हम कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे की तर्ज पर आँखें मल–मल कर अमरीका की ओर देख रहे हैं कि एक न एक दिन अमरीका उस 90 साल के एण्डरसन को पकड़कर भारत को सौंप देगा।<br /><br />आपने टेलिविजन पर एक विज्ञापन देखा होगा, एक आदमी हवाई जहाज से उतर कर संदेश देता है– ह्यूमन राइट्स हैव नो बाउण्ड्रीज। जिस अमारीका को ह्यूमन राइट्स की चिंता हर समय सताती रहती है, उस अमरीका को भोपाल त्रासदी में मरे 15 हजार लोगों और 5 लाख घायलों के राइट्स का ध्यान क्यों नहीं आता! एण्डरसन अपने जिन भारतीय साथियों को भारत में छोड़ गया, उन्हें अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा सुखपूर्वक गुजार देने के बाद सीजेएम कोर्ट से 2–2 साल की कैद मिली है। इस फैसले ने देश में एक नई चर्चा को जन्म दिया है। लोगों को लगता है कि इन दोषियों के जीवन का शेष हिस्सा बड़ी अदालतों में इस निर्णय के विरुद्ध अपील खड़ी करके बीत जायेगा। उन पर एक–एक लाख रुपये का जुर्माना किया गया है। लोगों को यह भी लगता है कि इतने रुपये तो यूनियन कार्बाइड के अधिकारी साल भर में टॉयलेट में काम आने वाले टिश्यू पेपर पर खर्च कर देते हैं। यूनियन कार्बाइड के लिये पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लोगों को कम लगता है! जो लोग हाल ही में मंगलौर हवाई दुर्घटना में मरे थे, उनके परिजनों को 57–57 लाख का मुआवजा मिला।<br /><br />एक दुखद किंतु विचित्र चर्चा यह भी है कि क्या भोपाल त्रासदी वाले लोग पुरानी रेट्स पर मरे थे और मंगलौर दुर्घटना के लोग नई रेट्स पर मरे हैं! जब दुनिया में प्रजातंत्र की आंधी आई थी तब यह कहावत चल निकली थी, प्रजातंत्र में सब बराबर हैं किंतु कुछ लोग ज्यादा बराबर हैं। आज की दुनिया में यह कहावत चल पड़ी है, सब इंसानों के ह्यूमन राइट्स बराबर हैं किंतु अपराधियों के ह्यूमन राइट्स अधिक बराबर हैं।<br /><br /></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-72559302154291087392010-05-27T22:40:00.000-07:002010-05-27T22:45:14.934-07:00सामाजिक चिंता का विषय होने चाहियें सगोत्रीय विवाह !<span style="font-size:130%;color:#336666;"></span><br /><p><span style="font-size:130%;color:#336666;">सारी दुनिया मानती है कि परमात्मा ने सबसे पहले एक स्त्री और एक पुरुष को स्वर्ग से धरती पर उतारा। हम उन्हें एडम और ईव, आदम और हव्वा तथा आदिमनु और इला (सतरूपा) के नाम से जानते हैं। उन्हीं की संतानें फलती–फूलती हुई आज धरती पर चारों ओर धमचक मचाये हुए हैं। उन्हीं की संतानाें ने अलग–अलग रीति–रिवाज और आचार–विचार बनाये। सभ्यता का रथ आगे बढ़ने के साथ–साथ रक्त सम्बन्धों से बंधे हुए लोग विभिन्न समाजों, संस्कृतियों, धमोंर् और देशों में बंध गये। इस बंधने की प्रक्रिया में ही उनके दूर होने की प्रक्रिया भी छिपी थी। यही कारण है कि हर संस्कृति में अलग तरह की मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं में अंतर्विरोध भी हैं, परस्पर टकराव भी हैं और एक दूसरे से सीखने की ललक भी है। </span></p><p><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#336666;">भारतीय सनातन संस्कृति में सगोत्र विवाह न करने की परम्परा वैदिक काल से भी पुरानी है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि निकट रक्त सम्बन्धियों में विवाह होने से कमजोर संतान उत्पन्न होती है। सामाजिक स्तर पर भी देखें तो सगोत्रीय विवाह न करने की परम्परा से समाज में व्यभिचार के अवसर कम होते हैं। एक ही कुल और वंश के लोग मर्यादाओं में बंधे होने के कारण सदाचरण का पालन करते हैं जिससे पारिवारिक और सामाजिक जटिलताएं उत्पन्न नहीं होतीं तथा संस्कृति में संतुलन बना रहता है।</span></span></p><p><br /><span style="font-size:130%;color:#336666;">यही कारण है कि सदियों से चली आ रही परम्पराओं के अनुसार हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में जातीय खांपों की पंचायतें सगोत्रीय विवाह को अस्वीकार करती आई हैं तथा इस नियम का उल्लंघन करने वालों को कठोर दण्ड देती आई हैं। कुुछ मामलों में तो मृत्युदण्ड तक दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मृत्युदण्ड अथवा किसी भी तरह का दण्ड देने का अधिकार केवल न्यायिक अदालतों को है। फिर भी परम्परा और सामाजिक भय के चलते लोग, जातीय पंचायतों द्वारा दिये गये मृत्यु दण्ड के निर्णय को छोड़कर अन्य दण्ड को स्वीकार करते आये हैं।</span></p><p><span style="font-size:130%;color:#336666;"><br />इन दिनाें हरियाणा में सगोत्रीय विवाह के विरुद्ध आक्रोश गहराया है तथा कुछ लोग सगोत्रीय विवाह पर कानूनन रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। जबकि सगोत्रीय विवाह ऐसा विषय नहीं है जिसके लिये कानून रोक लगाई जाये। हजारों साल पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं के चलते यह विषय वैयक्तिक भी नहीं है कि जब जिसके जी में चाहे, वह इन मान्यताओं और परम्पराओं को अंगूठा दिखाकर सगोत्रीय विवाह कर ले। वस्तुत: यह सामाजिक विषय है और इसे सामाजिक विषय ही रहने दिया जाना चाहिये। इसे न तो कानून से बांधना चाहिये और न व्यक्ति के लिये खुला छोड़ देना चाहिये। सगोत्रीय विवाह का निषेध एक ऐसी परम्परा है जिसके होने से समाज को कोई नुक्सान नहीं है, लाभ ही है, इसलिये इस विषय पर समाज को ही पंचायती करनी चाहिये। </span></p><p><br /><span style="font-size:130%;color:#336666;">जातीय खांपों की पंचायतों को भी एक बात समझनी चाहिये कि देश में कानून का शासन है, पंच लोग किसी को किसी भी कृत्य के करने अथवा न करने के लिये बाध्य नहीं कर सकते। उन्हें चाहिये कि वे अपने गांव की चौपाल पर बैठकर सामाजिक विषयों की अच्छाइयों और बुराइयों पर विचार–विमर्श करें तथा नई पीढ़ी को अपनी परम्पराओं, मर्यादाओं और संस्कृति की अच्छाइयों से अवगत कराते रहें। इससे आगे उन्हें और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। जोर–जबर्दस्ती तो बिल्कुल भी नहीं। </span></p>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-51503775996981622322010-05-27T05:05:00.000-07:002010-05-27T05:13:32.719-07:00हैलो सर ! मैं ढगला राम बोल रहा हूँ !<span style="font-size:130%;"><span style="color:#660000;">मोबाइल की घण्टी बजती है। साहब गहरी नींद में हैं। बड़ी मुश्किल से आज नींद लेने का समय मिला है। पिछली दो रातों से जिले भर के गांवों के दौरे पर थे। दिन–दिन भर चलने वाली बैठकें, जन समस्याएं, ढेरों शिकायती पत्र, लम्बे चौड़े विचार–विमर्श और फिर रात में बैठकर सैंकड़ों रिपोर्टें पढ़कर उन पर टिप्पणियां करते–करते हालत पतली हो जाती है। रात को भी देर से ही बिस्तर पर आ पाते हैं। उस पर ये मोबाइल की घण्टी। वे मन में झुंझलाते हैं किंतु हैलो बोलते समय पूरी तरह शांत रहते हैं।<br />हैलो सर ! मैं ढगला राम बोल रहा हूँ ! दूसरे छोर से आवाज आती है।<br />कहाँ से ? साहब की नींद अब तक काफी उड़ चुकी है।<br />सर, मैं सरपंच पति हूँ।<br />जी बताइये, क्या सेवा कर सकता हूँ ? मन की खीझ को छिपाकर साहब जवाब देते हैं।<br />हमारे गांव में तीन दिन से पानी नहीं आ रहा और अभी बिजली भी नहीं आ रही।<br />अच्छा ! आपने अपने क्षेत्र के बिजली और पानी विभागों के जेइएन्स से बात की क्या?<br />नहीं की।<br />क्यों?<br />उनसे बात करने का कोई फायदा नहीं है, पानी वाले जेईएन कहेंगे कि पाइप लाइन फूटी हुई है प्रस्ताव एसई आॅफिस भेज रखा है और बिजली वाले कहेंगे कि पीछे से गई हुई है।<br />तो अपने क्षेत्र के सहायक अभियंताओं से बात करें।<br />उनसे भी बात करने का कोई फायदा नहीं है।<br />क्यों?<br />वो कहेंगे कि जेइन से बात करो।<br />तो आप अपने क्षेत्र के अधिशासी अभियंता या अधीक्षण अभियंता से बात करते। जलदाय विभाग और बिजली विभाग के किसी भी अफसर से बात करते। आपने सीधे ही मुझे फोन लगा दिया।<br />सर मैंने सोचा कि आप जिले के मालिक हैं। सारे विभाग आपके नीचे हैं, इसलिये आपसे ही कह देता हूँ, अब जिसको कहना हो, आप ही कहिये। हमारे यहां तो अभी बिजली चालू होनी चाहिये और कल सुबह पानी आना चाहिये। यदि आप सुनवाई नहीं करते हैं तो मैं मंत्रीजी को फोन लगाता हूँ।<br />इतनी रात में! कितने बजे हैं अभी?<br />रात के दो बज रहे हैं।<br />लोगों को सोने तो दो, दिन निकल जाये तब बात करना।<br />आप लोग तो वहां एसी में आराम से सो रहे हैं, आपको मालूम है हम कितनी तकलीफ में हैं। कल सुबह पानी आ जायेगा या मैं मंत्रीजी को फोन लगाऊँ ?<br />अरे यार...... अच्छा सुबह बात करना, सुबह ही कुछ हो सकेगा।<br />सुबह–वुबह कुछ नहीं। आप जवाब हाँ या ना में दीजिये।<br />साहब झुंझलाकर फोन काट देते हैं, उनकी इच्छा होती है कि फोन को स्विच आॅफ करके सो जायें किंतु कर नहीं पाते, कौन जाने कबएमरजेंसी कॉल आ जाये। वे फिर से सोने का प्रयास करते हैं किंतु सो नहीं पाते। वैसे भी ब्लड प्रेशर और शुगर के पेशेंट हैं। काफी देर करवटें बदलने के बाद मोबाइल में टाइम देखते हैं। चार बजने वाले हैं। वे उठकर मार्निंगवाक के लिये तैयार होते हैं। अभी वे पैण्ट पहनते ही हैं कि मोबाइल फिर से बजता है।<br />सर! मैं कोजाराम बोलता हूँ। हमारे यहाँ ........।<br />साहब मोबाइल हाथ में लेकर घर से बाहर निकल लेते हैं। जब से मोबाइल फोन आया है, साहब की रात इसी तरह कटती है।</span></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-73665958097674335972010-05-25T23:05:00.000-07:002010-05-25T23:07:39.976-07:00जिन्दगी हमेशा के लिये उनका चालान काट चुकी है !<span style="color: rgb(51, 0, 153);font-size:130%;" ><br />वाहनों से खचाखच भरी सड़कें। दु्रत गति से दौड़ती मोटर साइकिलें, बेतहाशा भागती कारें, पगलाई हुई सी लोडिंग टैक्सियां, बेचैन आत्माओं की तरह भटकते थ्री व्हीलर और इन सबके बीच सर्र–सर्र निकलते साइकिल सवार। जिधर देखो अफरा–तफरी का माहौल। मानो कायनात में जलजला आ गया हो, कहीं आग लग गई हो या शहर पर एलियन्स का हमला हो गया हो। कहाँ जा रहे हैं ये सब लोग इतनी हड़बड़ाहट में! क्या हो जायेगा इतनी तेज दौड़कर! कोई रेस हो रही है क्या? लगभग हर तीसरी मोटर साइकिल पर तीन आदमी सवार हैं किसी–किसी पर तो चार भी! बच्चे अलग से। अधिकतर दुपहिया वाहन चालकों के सिर पर हेलमेट नहीं हैं। कार चालकों को सीट बैल्ट बांधने से परहेज है। वे चौराहों पर से निकलते समय भी वाहन धीमा नहीं करते और मोबाइल पर बातें कर रहे होते हैं।<br /><br />ऐसा ही रोज का माहौल आज भी रिक्तियां भैंरूजी चौराहे पर था। एक आदमी अपनी मोटर साइकिल पर तीन सवारियों सहित, बिना हैलमेट बांधे और कान पर मोबाइल फोन लगाये तेजी से पाली की तरफ से आया। मोटी स्थूल काया। कानों में सोने के लूंग। महंगा मोबाइल फोन। देह पर पढ़े–लिखे लोगों जैसी अच्छी तरह इस्तरी की हुई पैण्ट शर्ट। उसे रेलवे की खतरनाक पुलिया की तरफ जाना था। अचानक उसकी दृष्टि चौराहे के निकट खड़े यातायात पुलिस कर्मियों पर पड़ी। उन्होंने चार–पांच मोटर साइकिलें पकड़ रखी थीं। कुछ मोटर साइकिलें, वाहन जब्त करने वाली क्रेन से बंधी थीं। उसने कसकर ब्रेक दबाये। पीछे तेजी से भागती चली आ रही मोटर साइकिल ने भी ब्रेक मारे किंतु टक्कर तो होनी ही थी, सो होकर रही। पीछे बैठी सवारियों के चोट लगना स्वाभाविक था, सो लगी ही किंतु यहाँ चोट की परवाह किसे थी! कहावत तो यह है कि गधा, गधे की लात से नहीं मरता किंतु मोटर साइकिल की टक्कर से मोटर साइकिल वाले मरते हुए देखे गये हैं। कानों में लूंग वाले मोटर साइकिल चालक ने चाहा कि वह मुड़कर पीछे की तरफ भाग जाये किंतु इससे पहले कि वह ऐसा कर पाता, ट्रैफिक पुलिस के सिपाही ने दौड़कर उसे धर दबोचा। मारे गये गुलफाम! आ गया ऊँट पहाड़ के नीचे!<br /><br />अभी उसका चालान कट ही रहा था कि दो तीन मोटर साइकिलें धड़धड़ाती हुई आ पहुँचीं। उनका भी नजारा पहले वाली मोटर साइकिल जैसा। एक बोलेरो वाला मोबाइल पर बात करता हुआ सौ की स्पीड से निकला। अब इतने ट्रैफिक पुलिसकर्मी कहाँ से आते! सो ये लोग नसीब वाले निकले और पुलिसकर्मियों के ठीक पास से होकर भाग छूटे। पुलिसकर्मी चालान काटकर बोला, यहाँ दस्तखत करो। वह बगलें झांकने लगा। अरे सोच क्या रहा है, दस्तखत कर! मुझे दस्तखत करने नहीं आते, अंगूठा लगाऊंगा। पुलिसकर्मी को विश्वास नहीं हुआ, लगता तो पढ़ा लिखा है, झूठ बोलता है! पुलिसकर्मी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा। नहीं, झूठ नहीं बोल रहा, वह हकलाया।<br /><br />मैं भी वहीं खड़ा काफी देर से तमाशा देख रहा था। सौ–सौ जूते खाय, तमाशा घुसकर देखें वाली आदत जो ठहरी। अचानक सामने एक विकलांग आता हुआ दिखाई दिया। उसके दोनों पैर खराब थे, वह सड़क पर हाथों के सहारे घिसट रहा था। उसे देखकर सिर घूम गया। अचानक खयाल आया कि इस दुनिया में एक ओर ऐसे लोग हैं जो बेतहाशा भागकर जाने कहां पहुंचना चाहते हैं और एक ओर ऐसे लोग भी हैं जिन्हें कुदरत ने पांव ही नहीं दिये। जिन्दगी जैसे हमेशा के लिये उनका चालान काट चुकी है।<br /><br /></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-62457285206123759482010-04-30T21:04:00.000-07:002010-04-30T21:06:01.130-07:00काश माधुरी ने मोहनलाल की जीवनी को पढ़ लिया होता !<span style="font-size:130%;color:#000066;"></span><br /><p><span style="font-size:130%;color:#000066;">यदि भारतीय राजनयिक माधुरी गुप्ता ने मोहनलाल भास्कर की जीवनी पढ़ ली होती तो आज वह सीखचों के पीछे न बंद होती। मोहनलाल 1965 के भारत-पाक युध्द में पाकिस्तान के आणविक केन्द्रों की जानकारी एकत्रित करने के लिये गुप्त रूप से पाकिस्तान गये थे। ये वे दिन थे जब जुल्फिाकर अली भुट्टो ने यू एन ओ में यह वक्तव्य देकर पाकिस्तानियों के मन में भारतीयों के विरुध्द गहरा विष भर दिया था कि वे दस हजार साल तक भारत से लड़ेंगे। मोहनलाल पाकिस्तान में इस कार्य के लिये जाने वाले अकेले न थे, उनका पूरा नेटवर्क था। दुर्भाग्य से उनके ही एक साथी ने रुपयों के लालच में पाकिस्तानी अधिकारियों के समक्ष मोहनलाल का भेद खोल दिया और वे पकड़ लिये गये। </span></p><p><span style="font-size:130%;color:#000066;"><br />मोहनलाल पूरे नौ साल तक लाहौर, कोटलखपत, मियांवाली और मुलतान की जेलों में नर्क भोगते रहे। पाकिस्तान के अधिकारी चाहते थे कि मोहनलाल पाकिस्तानी अधिकारियों को उन लोगों के नाम-पते बता दें जो भारत की तरफ से पाकिस्तान में रहकर कार्य कर रहे हैं। पाकिस्तानी अधिकारियों के लाख अत्याचारों के उपरांत भी मोहनलाल ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी। पाकिस्तान की जेलों में मोहनलाल को डण्डों, बेंतों और कोड़ों से पीटा जाता था। उन्हें नंगा करके उन पर जेल के सफाई कर्मचारी छोड़ दिये जाते थे जो उन पर अप्राकृतिक बलात्कार करते थे। एक सफाई कर्मचारी उन पर से उतर जाता तो दूसरा चढ़ जाता था। छ:-छ: फौजी इकट्ठे होकर उन्हें जूतों, बैल्टों और रस्सियों से पीटते थे। इस मार से मोहनलाल बेहोश हो जाते थे फिर भी मुंह नहीं खोलते थे। </span></p><p><span style="font-size:130%;color:#000066;"><br />मोहनलाल को निर्वस्त्र करके उल्टा लटकाया जाता और उनके मलद्वार में मिर्चें ठूंसी जातीं। उन्हें पानी के स्थान पर जेल के सफाई कर्मचारियों और कैदियों का पेशाब पिलाया जाता। जेल के धोबियों से उनके कूल्हों, तलवों और पिण्डलियों पर कपड़े धोने की थापियां बरसवाई जातीं। इतने सारे अत्याचारों के उपरांत भी मोहनलाल मुंह नहीं खोलते थे और यदि कभी खोलते भी थे तो केवल पाकिस्तानी सैनिक अधिकारियों के मुंह पर थूकने के लिये। इस अपराध के बाद तो मोहनलाल की शामत ही आ जाती। उन्हें पीट-पीटकर बेहोश कर दिया जाता और होश में लाकर फिर से पीटा जाता। उनकी चमड़ी उधड़ जाती जिससे रक्त रिसने लगता। उनके घावों पर नमक-मिर्च रगड़े जाते और कई दिन तक भूखा रखा जाता। फिर भी मोहनलाल का यह नियम था कि जब भी पाकिस्तान का कोई बड़ा सैनिक अधिकारी उनके निकट आता, वे उसके मुँह पर थूके बिना नहीं मानते थे।</span></p><p><span style="font-size:130%;color:#000066;"><br />पैंसठ का युध्द समाप्त हो गया। उसके बाद इकहत्तार का युध्द आरंभ हुआ। वह भी समाप्त हो गया किंतु मोहनलाल की रिहाई नहीं हुई। जब हरिवंशराय बच्चन को मोहनलाल के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने भारत सरकार से सम्पर्क करके उनकी रिहाई करवाई। उसके बाद ही भारत के लोगों को मोहनलाल भास्कर की अद्भुत कथा के बारे में ज्ञात हुआ। काश! माधुरी ने भी मोहनलाल भास्कर की जीवनी पढ़ी होती तो उसे भी अवश्य प्रेरणा मिली होती कि भारतीय लोग अपने देश से अगाध प्रेम करते हैं और किसी भी स्थिति में देश तथा देशवासियों से विश्वासघात नहीं करते।<br /> </span></p>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-91884059840173553692010-04-30T05:08:00.001-07:002010-04-30T05:08:58.211-07:00भारतीय स्त्रियों की परम्परा तो कुछ और ही है !<span style="color: rgb(102, 0, 0);font-size:130%;" ><br />उसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बदला लेना था! उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन चाहिये था! वह किसी पाकिस्तानी गुप्तचर से प्रेम करती थी! ये वे तीन कारण हैं जो इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में नियुक्त भारतीय महिला राजनयिक ने एक–एक करके बताये हैं जिनके लिये उसने अपने देश की गुप्त सूचनायें शत्रुओं के हाथ में बेच दीं! ये सारे उत्तर एक ही ओर संकेत करते हैं कि यह महिला राजनयिक अत्यंत महत्वाकांक्षी है और दूसरों की अपेक्षा अधिक महत्व प्राप्त करने के लिये उसने भारत की सूचनायें शत्रुओं को दी हैं।<br /><br />प्रेम! राष्ट्रभक्ति! और बदला! भावनाओं के इस त्रिकोण में भारतीय स्त्रियों की परम्परा अलग रही है। राजस्थान के इतिहास की तीन घटनायें इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। पहली घटना 1314 ईस्वी की है जब जालोर के चौहान शासक कान्हड़देव के मंत्री वीका ने राजा कान्हड़देव से अपने अपमान का बदला लेने के लिये अल्लाउद्दीन खिलजी को दुर्ग के गुप्त मार्ग का पता दे दिया। जब मंत्री वीका की पत्नी हीरादेवी को यह ज्ञात हुआ तो उसने उसी क्षण अपने पति की हत्या कर दी और राजा को अपने पति की गद्दारी के बारे में सूचित किया। हीरादेवी ने अपना देश बचाने के लिये अपना पति बलिदान कर दिया।<br /><br />दूसरी घटना 1536 ईस्वी की है। दासी पुत्र वणवीर 19 वर्षीय महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करके स्वयं मेवाड़ की गद्दी पर बैठ गया। उस समय विक्रमादित्य का छोटा भाई उदयसिंह 15 साल का था। जब वणवीर राजकुमार उदयसिंह को मारने के लिये उसके महल में गया तो उदयसिंह की धाय पन्ना ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। वणवीर ने पन्ना के बेटे को उदयसिंह जानकर उसकी हत्या कर दी। पन्ना उदयसिंह को महलों से लेकर भाग गयी। पन्ना ने मातृभूमि के भविष्य को बचाने के लिये अपने पुत्र का बलिदान कर दिया।<br />तीसरी घटना 1658 ईस्वी की है। औरंगजेब ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमती से बलपूर्वक विवाह करने का प्रयास किया। इस पर चारूमती ने मेवाड़ के महाराणा राजसिंह को लिखा कि या तो आप आकर मुझसे विवाह कर लें या फिर मैं अपने प्र्राण त्याग दूंगी। इस पर महाराणा ने अपने सरदारों को सेना सहित किशनगढ़ कूच करने का आदेश भिजवाया। जिस दिन सलूम्बर के ठाकुर के पास यह संदेश पहुँचा, उस दिन ठाकुर अपना विवाह करके आया था और उस दिन उसकी सुहागरात थी किंतु ठाकुर ने उसी समय युद्ध के लिये कूच कर दिया और अपनी सोलह वर्षीय हाड़ी रानी से स्मृति चिह्न मांगा। रानी ने अपना सिर काटकर ठाकुर को भेजा और कहलवाया कि इस भेंट को पाने के बाद युद्धक्षेत्र में आपका ध्यान देश की आन, बान और शान बचाने में लगेगा न कि अपनी षोडषी रानी के रूप लावण्य में। हाड़ी रानी ने अपने देश की आन, बान और शान के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया।<br /><br />ये तीनों घटनायें बताती हैं कि राष्ट्र रूपी देवता की आराधना के समक्ष निजी हित–अनहित और महत्वाकांक्षायें कुछ भी नहीं। महत्व तो इतिहास की उन स्त्रियों को मिला जिन्होंने राष्ट्र रूपी देवता के पूजन के लिये पति, पुत्र और स्वयं के बलिदान दिये। उनके नाम आज सैंकड़ों साल बाद भी इतिहास के पन्नों में अमर हैं। भारतीय राजनयिक ने शत्रु के हाथों गुप्त सूचनायें भेजकर राष्ट्र रूपी देवता को कुपित किया है। भारतीय स्त्रियों की यह परम्परा नहीं है।<br /><br /></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-71707091146341716342010-04-29T02:30:00.001-07:002010-04-29T02:33:04.414-07:00उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता !<span style="font-size:130%;color:#330033;"> पाकिस्तानी दूतावास में द्वितीय सचिव स्तर की महिला राजनयिक को गोपनीय सूचनाएं पाकिस्तान के हाथों बेचने के आरोप में पकड़ा गया। भारतीय एजेंसियों के अनुसार यह तिरेपन वर्षीय महिला राजनयिक, भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ के इस्लामाबाद प्रमुख से महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त करती थी तथा उन्हें पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आई एस आई को बेचती थी। कुछ और अधिकारी भी इस काण्ड में संदेह के घेरे में हैं! इस समाचार को पढ़कर विश्वास नहीं होता! सारे जहां से अच्छा! मेरा भारत महान! इण्डिया शाइनिंग! हम होंगे कामयाब! माँ तुझे सलाम! इट हैपन्स ओन्ली इन इण्डिया! जैसे गीतों और नारों को गाते हुए कभी न थकने वाले भारतीय लोग, क्रिकेट के मैदानों में मुंह पर तिरंगा पोत कर बैठने वाले भारतीय लोग और सानिया मिर्जा को कंधों पर बैठा कर चक दे इण्डिया गाने वाले भारतीय लोग क्या अपने देश को इस तरह शत्रुओं के हाथों बेचेंगे! संभवत: ये गीत और नारे अपने आप को धोखा देने के लिये गाये और बोले जाते हैं!</span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;">आखिर इंसान के नीचे गिरने की कोई तो सीमा होती होगी! पाकिस्तान के लिये गुप्त सूचनायें बेचने और शत्रु के लिये गुप्तचरी करने वाले इन भारतीयों के मन में क्या एक बार भी यह विचार नहीं आया कि जब उनकी सूचनाओं के सहारे पाकिस्तान के आतंकवादी या सैनिक भारत की सीमाओं पर अथवा भारत के भीतर घुसकर हिंसा का ताण्डव करेंगे तब उनके अपने सगे सहोदरे भी मौत के मुख में जा पड़ेंगे! रक्त के सम्बन्धों से बंधे वे माता–पिता, भाई–बहिन, बेटे–बेटी और पोते–पोती भी उन रेलगाडि़यों में यात्रा करते समय या बाजार में सामान खरीदते समय या स्कूलों में पढ़ते समय अचानक ही मांस के लोथड़ों में बदल जायेंगे, जिनके लिये ये भारतीय राजनयिक और गुप्तचर अधिकारी पैसे लेकर सूचनायें बेच रहे थे!</span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;">कौन नहीं जानता कि हमारी सीमाओं पर सबकुछ ठीक–ठाक नहीं चल रहा! पाकिस्तान की सेना और गुप्तचर एजेंसियों ने सीमा पर लगी तारबंदी को एक तरह से निष्फल कर दिया है। तभी तो सितम्बर 2009 में पाकिस्तान की ओर से राजस्थान की सीमा में भेजी गई बारूद और हथियारों की दो बड़ी खेप पकड़ी जा चुकी हैं जिनमें 15 किलो आर डी एक्स, 4 टाइमर डिवाइस, 8 डिटोनेटर, 12 विदेशी पिस्तौलें तथा 1044 कारतूस बरामद किये गये। इस अवधि में जैसलमेर और बाड़मेर से कम से कम एक क्विंटल हेरोइन बरामद की गई है। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;">अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पार से लाये जा रहे हथियार और गोला बारूद का बहुत बड़ा हिस्सा देश के विभिन्न भागों में पहुंचता है। पिछले कुछ सालों में दिल्ली, बंगलौर, पूना, जयपुर और बम्बई सहित कई नगर इस गोला बारूद के दंश झेल चुके हैं। हाल ही में बंगलौर में क्रिकेट के मैदान में आरडीएक्स की भारी मात्रा पहुंच गई और वहां दो बम विस्फोट भी हुए। क्यों भारतीय सपूत अपने देश की सरहदों की निगहबानी नहीं कर पा रहे हैं ? जिस समय मुम्बई में कसाब अपने आतंकवादी साथियों के साथ भारत की सीमा में घुसा और ताज होटल में घुसकर पाकिस्तानी आतंकियों ने जो भीषण रक्तपात किया उस समय भी हमारे देश की सीमाओं पर देश के नौजवान सिपाही तैनात थे फिर भी कसाब और उसके साथी अपने गंदे निश्चयों को कार्य रूप देने में सफल रहे! </span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;">सीमा की चौकसी की असफलता हमारे बहादुर सिपाहियों की मौत के रूप में हमारे सामने आती है। अभी कुछ दिनों पहले एक आंकड़ा समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था जिसमें कहा गया था कि राजस्थान ने कारगिल के युद्ध में 67 जवान खोये किंतु कारगिल का युद्ध समाप्त होने के बाद राजस्थान के 410 सपूतों ने भारत की सीमाओं पर प्राण गंवाये। इन आंकड़ों को देखकर मस्तिष्क में बार–बार उठते हैं– कहाँ गये वो लोग जिनकी आँखें इस मुल्क की सरहद की निगहबान हुआ करती थीं! कहाँ गये वे लोग जिन्होंने ये गीत लिखा था– उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता, जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें! </span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-61290401097943696692010-04-25T19:24:00.000-07:002010-04-25T19:25:49.288-07:00मेरी भैंस ने आई पी एल कर दिया रे!<span style="font-size:130%;color:#336666;">आजकल ब्लॉग लेखन का भी एक अच्छा खासा धंधा चल पड़ा है। अंग्रेजी की तरह हिन्दी भाषा में भी कई तरह के रोचक ब्लॉग उपलब्ध हैं। एक ब्लॉग पर मुझे एक मजेदार कार्टून दिखाई पड़ा। इस कार्टून में एक भैंस गोबर कर रही है और पास खड़ा उसका मालिक जोर-जोर से चिल्ला रहा है- मेरी भैंस ने आई पी एल कर दिया रे! इस वाक्य को पढ़कर अचानक ही हंसी आ जाती है किंतु यदि क्षण भर ठहर कर सोचा जाये कि भैंस का मालिक भैंस द्वारा गोबर की जगह आई पी एल करने से सुखी है कि दुखी तो बुध्दि चकरा कर रह जाती है!</span><br /><br /><span style="font-size:130%;color:#336666;">इस देश में हर आदमी कह रहा है कि आई पी एल जैसी वारदात फिर कभी न हो किंतु वास्तव में तो वह केवल इतना भर चाह रहा है कि आई पी एल जैसी वारदात कोई और न कर ले। करोड़ों लोग हैं जो बाहर से तो आई पी एल को गालियाँ दे रहे हैं किंतु भीतर ही भीतर उनके मन में पहला, दूसरा और तीसरा लड्डू फूट रहा है काश यह सुंदर कन्या मेरे घर में रात्रिभर विश्राम कर ले अर्थात् एक बार ही सही, आई पी एल कर दिखाने का अवसर उसे भी मिल जाये।</span><br /><br /><span style="font-size:130%;color:#336666;">कौन नहीं चाहेगा कि देश में भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु पैदा हों और इस देश के लिये कुछ अच्छा करते हुए वे फांसी के फंदे पर झूल जायें। फिर भी अपने बेटे को कोई भगतसिंह, सुखदेव या राजगुरु नहीं बनने देता। अपने घर में तो वे धीरू भाई अम्बानी, ललित मोदी, राखी सावंत, सानिया मिर्जा, शाहरुक खान या महेन्द्रसिंह धोनी जैसी औलाद के जन्म की कामना करेगा ताकि घर में सोने-चांदी और रुपयों के ढेर लग जायें। </span><br /><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#336666;">कभी-कभी तो लगता है कि देश में बहुत सारे लोग आई पी एल जैसे मोटे शिकार कर रहे हैं। मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष केतन देसाई के घर से एक हजार आठ सौ पचास करोड़ रुपये नगद और डेढ़ टन सोना निकला है तथा अभी ढाई हजार करोड़ रुपये और निकलने की आशंका है। यह घटना भी अपने आप में किसी आई पी एल से कम थोड़े ही है! केतन देसाई की गैंग ने करोड़ों रुपये लेकर मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने, थोड़े दिन बाद उसकी कमियां ढूंढकर मान्यता हटाने और दो करोड़ रुपये लेकर मान्यता वापस बहाल करने का खेल चला रखा था। रिश्वत बटोरने के इस महाआयोजन के लिये केतन देसाई ने भी आई पी एल की तर्ज पर बड़े-बड़े अफसरों और उनके निजी सचिवों की टीमों को बोलियां लगाकर खरीदा था। </span></span><br /><br /><span style="font-size:130%;color:#336666;">अभी कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश में कुछ आई ए एस अफसरों के घरों से करोड़ों रुपये नगद, सोने चांदी के बर्तन और हीरे जवाहरत पकड़े गये थे। एक काण्ड में तो मियां-बीवी दोनों ही शामिल थे। दोनों ही प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी थे और उनकी भैंसें जमकर आईपीएल अर्थात् सोने का गोबर करती थीं। अब कोई दो-चार या दस-बीस भैंसें हों तो गिनायें। अब तो स्थान-स्थान पर भैंसें आई पी एल कर रही हैं। सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य किसी-किसी भैंस का आई पी एल ही चौरोहे पर आकर प्रकट होता है!</span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-25383783042315158212010-04-24T19:22:00.000-07:002010-04-24T19:25:42.426-07:00हिन्दुस्तान रो रहा है!<span style="font-size:130%;color:#330033;"></span><br /><p><span style="font-size:130%;color:#330033;">आईपीएल को आज भले ही सैक्स (नंगापन), स्लीज (बेशर्मी) और सिक्सर्स (छक्कों) का खेल कहा जा रहा हो किंतु वास्तव में यह स्त्री, शराब और सम्पत्तिा का खेल है। जिन लोगों ने आई पी एल खड़ी की, उन लोगों ने स्त्री, शराब और सम्पत्तिा जुटाने के लिये मानव गरिमा को नीचा दिखाया तथा भारतीय संस्कृति को गंभीर चुनौतियां दीं। केन्द्रीय खेल मंत्री एम. एस. गिल आरंभ से ही आई पी एल के मैदान में चीयर गर्ल्स के अधनंगे नाच तथा शराब परोसने के विरुध्द थे। राजस्थान सरकार ने जयपुर में चीयर गर्ल्स को अधनंगे कपड़ों में नाचने की स्वीकृति नहीं दी और न ही खेल के मैदान में शराब परोसने दी। </span></p><span style="font-size:130%;color:#330033;"><p><br />जिस समय पूरे विश्व को मंदी, बेरोजगारी और निराशा का सामना करना पड़ा, वहीं हिन्दुस्तान में सबकी आंखों के सामने आईपीएल पनप गया। अरबों रुपयों के न्यारे-वारे हुए। सैंकड़ों करोड़ रुपये औरतों और शराब के प्यालों पर लुटाये गये। सैंकड़ाें करोड़ रुपये प्रेमिकाओं पर न्यौछावर किये गये। सैंकड़ों करोड़ का सट्टा हुआ। सैंकड़ों करोड़ का हवाला हुआ और सैंकड़ों करोड़ रुपयों में क्रिकेट खिलाड़ियों की टीमें बोली लगकर ऐसे बिकीं जैसे भेड़ों के झुण्ड बिकते हैं। शिल्पा शेट्टी जैसी फिल्मी तारिकायें सिल्वर स्क्रीन से उतर कर खेल के मैदानों में छा गईं। विजय माल्या जैसे अरब पतियों के पुत्र और सौतेली पुत्रियां आई पी एल की पार्टियों में ललित मोदी और कैटरीना कैफ जैसे स्त्री-पुरुषों से लिपट-लिपट कर उन्हें चूमने लगे।</p><p><br />जिस समय पूरा विश्व मंदी की चपेट में था, तब भारत में महंगाई का दैत्य गरज रहा था। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह कैसे संभव है कि जब पूरी दुनिया मंदी की मार से जूझ रही है, भारत में दालों के भाव सौ रुपये किलो को छू रहे हैं! चीनी आसमान पर जा बैठी। दूध 32 रुपये किलो हो गया। मिठाइयों में जहर घुल गया। रेलवे स्टेशनों पर दीवार रंगने के डिस्टेंपर से बनी हुई चाय बिकने लगी। जाने कब और कैसे जनता की जेबों में एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के नकली नोट आ पहुंचे। </p><p><br />आज हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि भारत के धन के तीन टुकड़े हुए। एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये तो नकली नोटों के बदले आतंकवादियों और तस्करों की जेबों में पहुंचे। पच्चीस लाख करोड़ रुपये स्विस बैंकों में जमा हुए और हजारों करोड़ रुपये (अभी टोटल लगनी बाकी है) आई पी एल के मैदानों में दिखने वाली औरतों के खातों में पहुंच गये। ये ही वे तीन कारण थे जिनसे भारत में महंगाई का सुनामी आया। एक तरफ जब देश में आई पी एल का अधनंगा नाच चल रहा था, तब दूसरी तरफ भारत का योजना विभाग यह समझने में व्यस्त था कि भारत में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या कितनी है ताकि राज्यों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज का आवंटन किया जा सके। योजना आयोग की तेंदुलकर समिति ने भारत में बीपीएल परिवारों की संख्या 38 प्रतिशत बताई है किंतु कुछ राज्यों में यह 50 प्रतिशत तक हो सकती है। आई पी एल देखने वालों की जानकारी के लिये बता दूं कि बीपीएल उसे कहते हैं जिसे जीवन निर्वाह के लिये 24 घण्टे में 2100 कैलोरी ऊर्जा भी नहीं मिलती। यही कारण है कि आई पी एल और बीपीएल के बीच हिन्दुस्तान आठ-आठ ऑंसू रो रहा है।</span></p>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8831209107961341463.post-86159295714210530012010-04-21T01:22:00.000-07:002010-04-21T01:34:26.757-07:00धरती के भगवानो! क्या औरत के बिना दुनिया चल सकती है!<span style="font-size:130%;"><span style="color:#330099;">अहमदाबाद में कचरे की पेटी में पड़े हुए 15 कन्या भ्रूण मिले। कुछ भ्रूण कुत्ते खा चुके थे, वास्तव में संख्या 15 से कहीं अधिक थी। ये तो वे भ्रूण थे जो रास्ते पर रखी कचरे की पेटी में फैंक दिये जाने के कारण लोगों की दृष्टि में आ गये। यह कार्य तो पता नहीं चोरी–चोरी कब से चल रहा होगा! टी वी के पर्दे पर इस हृदय विदारक दृश्य को देखकर आत्मा कांप उठी।<br /><span class=""></span><br />यह कैसी दुनिया है जिसमें हम रह रहे हैं! ये कौनसा देश है जिसकी दीवारों पर मेरा भारत महान लिखा हुआ रहता है किंतु कचरे के ढेरों में कन्याओं के भ्रूण पड़े मिलते हैं!क्या इसमें कोई संदेह है कि ये भ्रूण उन्हीं माताओं के गर्भ में पले हैं जिनकी सूरत में संतान भगवान का चेहरा देखती है! क्या इसमें भी कोई संदेह है कि ये गर्भपात उन्हीं पिताओं की सहमति और इच्छा से हुए हैं जिन्हें कन्याएं भगवान से भी अधिक सम्मान और प्रेम देती हैं! क्या इसमें भी कोई संदेह है कि ये गर्भपात उन्हीं डॉक्टरों ने करवाये है जिन्हें धरती पर भगवान कहकर आदर दिया जाता है!<br /><span class=""></span><br />देश में हर दिन कचरे के ढेर पर चोरी–चुपके फैंक दिये जाने वाले सैंकड़ों कन्या भ्रूण धरती के भगवानों से चीख–चीख कर पूछते हैं कि क्या औरतों के बिना यह दुनिया चल सकती है! इस सृष्टि में जितने भी प्राणी हैं उन्होंने अपनी माता के गर्भ से ही जन्म लिया है। भगवानों के अवतार भी माताओं के गर्भ से हुए हैं। जब माता ही नहीं होगी, तब संतानों के जन्म कैसे होंगे। यदि हर घर में लड़के ही लड़के जन्म लेंगे तो फिर लड़कों के विवाह कैसे होंगे। जिस वंश बेल को आगे बढ़ाने के लिये पुत्र की कामना की जाती है, उस पुत्र से वंश बेल कैसे बढ़ेगी यदि उससे विवाह करने वाली कोई कन्या ही नहीं मिलेगी!<br /><span class=""></span><br />आज भारत का लिंग अनुपात पूरी तरह गड़बड़ा गया है। उत्तर भारत में यह कार्य अधिक हुआ है। लाखों लोगों ने अपनी कन्याओं को गर्भ में ही मार डाला। दिल्ली, पंजाब और हरियाणा देश के सर्वाधिक समृद्ध, शिक्षित और विकसित प्रदेश माने जाते हैं, इन्हीं प्रदेशों में गर्भपात का जघन्य अपराध सर्वाधिक हुआ। मध्य प्रदेश और राजस्थान भी किसी से पीछे नहीं। जब से लोगों के मन में धर्म का भय समाप्त होकर पैसे का लालच पनपा है और ईश्वरीय कृपा के स्थान पर पूंजी और टैक्नोलोजी पर भरोसा जमा है, तब से औरत चारों तरफ से संकट में आ गई है।<br /><span class=""></span><br />पिताओं और पतियों के मन में चलने वाला पैसे का गणित, औरतों के जीवन के लिये नित नये संकट खड़े कर रहा है। एक तरफ तो औरतों को पढ़ने और कमाने के लिये घर से बाहर धकेला जा रहा है। दूसरी ओर सनातन संस्कारों और संस्कृति से कटा हुआ समाज औरतों को लगातार अपना निशाना बना रहा है। यही कारण है कि न्यूज चैनल और समाचार पत्र महिलाओं के यौन उत्पीड़न, बलात्कार और कन्या भ्रूण हत्याओं के समाचारों से भरे हुए रहते हैं। आरक्षण, क्षेत्रीयता और भाषाई मुद्दों पर मरने मारने के लिये तुले रहने की बजाय हमें अपने समाज को सुरक्षित बनाने पर ध्यान देना चाहिये, इसी में सबका भला है।</span></span>Dr. Mohanlal Guptahttp://www.blogger.com/profile/14804752307502533855noreply@blogger.com0