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Monday, September 6, 2010

उन्होंने अब भी अपनी मानसिकता नहीं बदली है !

उन्होंने अब भी अपनी मानसिकता नहीं बदली है !
आज से बहुत बरस पहले भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जगन्नाथपुरी के मंदिर में देव विग्रहों के दर्शनार्थ गईं। मंदिर के पुजारियों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। पुजारियों के अनुसार केवल हिन्दू धर्मावलम्बियों को ही मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार था जबकि एक पारसी से विवाह करने के कारण, पुजारियों की दृष्टि में वे हिन्दू नहीं रही थीं, पारसी हो गई थीं। वे देश की प्रधानमंत्री थीं, फिर भी उन्होंने किसी से कोई वाद–विवाद नहीं किया। वे मंदिर के बाहर से शांतिपूर्वक दिल्ली लौट गईं। श्रीमती गांधी ने कभी इस घटना की आलोचना नहीं की, न कहीं इस बात की चर्चा तक की।

कुछ बरसों बाद उनके प्रिय पुत्र संजय गांधी का दुखद निधन हुआ। संजय की अस्थियाँ विसर्जन के लिये प्रयागराज इलाहाबाद ले जाई गईं। गंगाजी में अस्थि विसर्जन के अधिकार एवं अस्थि विसर्जन के बाद मिलने वाली दान–दक्षिणा की राशि को लेकर पण्डों ने झगड़ा किया। एक ओर भारत की प्रधानमंत्री शोक के सागर में गोते लगा रही थीं और दूसरी ओर पण्डे अस्थि विसर्जन की दक्षिणा में बड़ी राशि के लिये लड़ रहे थे! पण्डों का यह आचरण देखकर श्रीमती इंदिरा गांधी क्षुब्ध हो गईं। उन्हें समझ में आ गया कि जो पण्डे भारत की प्रधानमंत्री के पुत्र की अस्थि विसर्जन पर इतना बड़ा वितण्डा खड़ा कर सकते हैं, वे भारत की निरीह, भोलीभाली और धर्मप्राण जनता के साथ कितनी कठोरता करते होंगे! उस दिन तो उन्होंने पण्डों से कुछ नहीं कहा किंतु उन्होंने मन ही मन एक निश्चय किया कि वे भारत की धर्मप्राण जनता को पण्डों के इस झगड़े से बचाने के लिये कुछ करेंगी।


इस घटना के कुछ समय बाद भारत के समस्त तीर्थों पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को उनकी इच्छानुसार पूजन, अर्चन, तर्पण और पिण्डदान आदि की पूरी तरह से सैद्धांतिक और व्यवहारिक छूट को सुनिश्चित किया गया। पण्डाें से स्पष्ट कह दिया गया कि यदि जजमान न चाहे तो किसी पण्डे को उसके पास फटकने तक की आवश्यकता नहीं। कोई पण्डा किसी जजमान पर यह जोर नहीं डालेगा कि उसके पूर्वजों का वंशानुगत पण्डा कौनसा है। पूजन, तर्पण के बाद जजमान अपनी श्रद्धा, आस्था और इच्छा के आधार पर ही दान–दक्षिणा दे सकेगा। किसी पण्डे को यह अधिकार नहीं कि वह निश्चित राशि की मांग दान–दक्षिणा या शुल्क के रूप में कर सके।

इन आदेशों की पालना पूरे देश में मजबूत इरादों के साथ की गई जिससे भारत की कोटि–कोटि धर्मप्राण जनता ने राहत की सांस लीं किंतु चार सितम्बर को पुष्कर में जो कुछ हुआ, उसने मुझे इस इतिहास का स्मरण करवा दिया। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधराराजे की उपस्थिति में पुष्कर के पण्डों ने झगड़ा किया कि पुष्करजी में श्रीमती राजे को पूजा करवाने का अधिकार किन पण्डों को है ! इस झगड़े से श्रीमती राजे इतनी क्षुब्ध हुईं कि वे बिना पूजा किये ही लौट गईं। क्या पण्डे इस बात कभी सोचते हैं कि देश की सनातन धर्म व्यवस्था ने धार्मिक तीर्थ, पण्डों की दुकानों के रूप में नहीं खोले हैं अपितु श्रद्धालुओं की आस्था की अभिव्यक्ति के लिये स्थापित किये हैं। पण्डों को चाहिये कि वे पूरे हिन्दू समाज से क्षमा मांगें कि जो कुछ उन्होंने श्रीमती राजे की उपस्थिति में किया, उसे आज के बाद किसी अन्य श्रद्धालु के साथ नहीं दोहरायेंगे।

Wednesday, September 1, 2010

उनके भाग्य में तालिबानियों की सहायता लेना ही लिखा है !

पाकिस्तान में बाढ़ आई। खैबर, पख्तूनिस्तान, सिंध, बलूचिस्तान और पंजाब सहित विशाल क्षेत्र इससे प्रभावित हुआ और पाकिस्तान का पांचवा हिस्सा पानी में डूब गया। अनुमान है कि 2 हजार लोग मरे, 10 लाख घर नष्ट हुए और 2 करोड़ लोग या तो घायल हो गये या घर विहीन हो गये। बाढ़ से कुल 43 बिलियन अमरीकी डॉलर अर्थात् 34,400 खरब पाकिस्तानी रुपये का नुक्सान हुआ जिससे पाकिस्तान की लगभग एक चौथाई इकॉनोमी बर्बाद हो गई। जिस समय यह सब हो रहा था, पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी यूरोप के होटलों में मौज कर रहे थे जिससे नाराज पाकिस्तानियों ने उन पर लंदन में जूता फैंककर मारा। जरदारी के स्थान पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री एस. एम. कुरैशी बाढ़ के विरुद्ध मोर्चा संभाला।
कुरैशी ने पाकिस्तान की बाढ़ को मानवता की सबसे बड़ी त्रासदी बताकर सारे संसार के समक्ष सहायता की गुहार लगाई। उन्होंने ओमान की राजधानी मस्कट पहुंचकर अपनी झोली फैलाई और गल्फ देशों से कहा कि मुसीबत की इस घड़ी में उदार होकर पाकिस्तान की मदद करें। एशियन डिवलपमेंट बैंक, वल्र्ड बैंक एवं यूएनडीपी जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थायें पहले से ही पाकिस्तान को बाढ़ से निबटने के लिये सहायता उपलब्ध करवा रही थीं। यह तो ज्ञात नहीं कि इस गुहार के बाद गल्फ देशों ने पाकिस्तान की कितनी सहायता की किंतु यह बात बस जानते हैं कि अमरीका और चीन पाकिस्तान की मदद के लिये बेचैन हो गये। यूनाइटेड नेशन्स ने पाकिस्तान को पहली खेप में 460 मिलियन अमरीकी डॉलर की सहायता भेजी।यूनाइटेड नेशन्स के अधिकारी यह देखकर हैरान हैं कि जनता को बहुत ही धीमी गति से सहायता प्राप्त हो रही है। जबकि पाकिस्तान में 1 करोड़ लोग बाढ़ का पानी पीने को विवश हैं जिससे वहां महामारी फैलने की आशंका है।
भारत ने भी पड़ौसी होने का धर्म निभाते हुए पाकिस्तान को सहायता देने का प्रस्ताव भेजा किंतु गल्फ देशों के समक्ष झोली फैलाकर गिड़गिड़ाने वाले पाकिस्तान ने भारत से सहायता लेने से मना कर दिया। भारत ने यूएनाओ से प्रार्थना की कि वह पाकिस्तान से कहे कि वह भारत से मदद ले ले। इस पर पाकिस्तान ने भारत से कह दिया कि वह अपनी मदद यूएनओ के माध्यम से भेजे।
अब रिपोर्टें आ रही हैं कि पाकिस्तानी सरकार राहत कार्य में पूरी तरह असफल रही है। इस स्थिति का लाभ उठाकर तालिबानी लड़ाके बाढ़ पीडि़तों की सहायता के लिये आगे आये हैं। रिपोर्टें कहती हैं कि जब तालिबानी लड़ाके जनता को दवा और भोजन देते हैं तो तब उन्हें तालिबानी संगठन में सम्मिलित होने का आदेश भी देते हैं। बहुत से लोग नहीं चाहते कि तालिबान का साया भी उनके बच्चों पर पड़े किंतु भोजन और दवाएं लेना उनकी मजबूरी है इसलिये वे लड़ाकों की बात सुनने से भी इन्कार नहीं कर सकते। अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार हजारों तालिबानी बड़ी तेजी से आतंकवादियों की भर्ती कर रहे हैं और इन क्षेत्रों में कार्यरत विदेशी एजेंसियों को डण्डे के जोर पर खदेड़ा जा रहा है। पाकिस्तानी जनता को सरकारी सहायता के स्थान पर तालिबानी सहायता लेनी पड़ रही है। संभवत: उनके भाग्य में तालिबानियों की सहायता लेना ही लिखा है।