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Thursday, May 27, 2010

सामाजिक चिंता का विषय होने चाहियें सगोत्रीय विवाह !


सारी दुनिया मानती है कि परमात्मा ने सबसे पहले एक स्त्री और एक पुरुष को स्वर्ग से धरती पर उतारा। हम उन्हें एडम और ईव, आदम और हव्वा तथा आदिमनु और इला (सतरूपा) के नाम से जानते हैं। उन्हीं की संतानें फलती–फूलती हुई आज धरती पर चारों ओर धमचक मचाये हुए हैं। उन्हीं की संतानाें ने अलग–अलग रीति–रिवाज और आचार–विचार बनाये। सभ्यता का रथ आगे बढ़ने के साथ–साथ रक्त सम्बन्धों से बंधे हुए लोग विभिन्न समाजों, संस्कृतियों, धमों‍र् और देशों में बंध गये। इस बंधने की प्रक्रिया में ही उनके दूर होने की प्रक्रिया भी छिपी थी। यही कारण है कि हर संस्कृति में अलग तरह की मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं में अंतर्विरोध भी हैं, परस्पर टकराव भी हैं और एक दूसरे से सीखने की ललक भी है।


भारतीय सनातन संस्कृति में सगोत्र विवाह न करने की परम्परा वैदिक काल से भी पुरानी है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि निकट रक्त सम्बन्धियों में विवाह होने से कमजोर संतान उत्पन्न होती है। सामाजिक स्तर पर भी देखें तो सगोत्रीय विवाह न करने की परम्परा से समाज में व्यभिचार के अवसर कम होते हैं। एक ही कुल और वंश के लोग मर्यादाओं में बंधे होने के कारण सदाचरण का पालन करते हैं जिससे पारिवारिक और सामाजिक जटिलताएं उत्पन्न नहीं होतीं तथा संस्कृति में संतुलन बना रहता है।


यही कारण है कि सदियों से चली आ रही परम्पराओं के अनुसार हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में जातीय खांपों की पंचायतें सगोत्रीय विवाह को अस्वीकार करती आई हैं तथा इस नियम का उल्लंघन करने वालों को कठोर दण्ड देती आई हैं। कुुछ मामलों में तो मृत्युदण्ड तक दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मृत्युदण्ड अथवा किसी भी तरह का दण्ड देने का अधिकार केवल न्यायिक अदालतों को है। फिर भी परम्परा और सामाजिक भय के चलते लोग, जातीय पंचायतों द्वारा दिये गये मृत्यु दण्ड के निर्णय को छोड़कर अन्य दण्ड को स्वीकार करते आये हैं।


इन दिनाें हरियाणा में सगोत्रीय विवाह के विरुद्ध आक्रोश गहराया है तथा कुछ लोग सगोत्रीय विवाह पर कानूनन रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। जबकि सगोत्रीय विवाह ऐसा विषय नहीं है जिसके लिये कानून रोक लगाई जाये। हजारों साल पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं के चलते यह विषय वैयक्तिक भी नहीं है कि जब जिसके जी में चाहे, वह इन मान्यताओं और परम्पराओं को अंगूठा दिखाकर सगोत्रीय विवाह कर ले। वस्तुत: यह सामाजिक विषय है और इसे सामाजिक विषय ही रहने दिया जाना चाहिये। इसे न तो कानून से बांधना चाहिये और न व्यक्ति के लिये खुला छोड़ देना चाहिये। सगोत्रीय विवाह का निषेध एक ऐसी परम्परा है जिसके होने से समाज को कोई नुक्सान नहीं है, लाभ ही है, इसलिये इस विषय पर समाज को ही पंचायती करनी चाहिये।


जातीय खांपों की पंचायतों को भी एक बात समझनी चाहिये कि देश में कानून का शासन है, पंच लोग किसी को किसी भी कृत्य के करने अथवा न करने के लिये बाध्य नहीं कर सकते। उन्हें चाहिये कि वे अपने गांव की चौपाल पर बैठकर सामाजिक विषयों की अच्छाइयों और बुराइयों पर विचार–विमर्श करें तथा नई पीढ़ी को अपनी परम्पराओं, मर्यादाओं और संस्कृति की अच्छाइयों से अवगत कराते रहें। इससे आगे उन्हें और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। जोर–जबर्दस्ती तो बिल्कुल भी नहीं।

हैलो सर ! मैं ढगला राम बोल रहा हूँ !

मोबाइल की घण्टी बजती है। साहब गहरी नींद में हैं। बड़ी मुश्किल से आज नींद लेने का समय मिला है। पिछली दो रातों से जिले भर के गांवों के दौरे पर थे। दिन–दिन भर चलने वाली बैठकें, जन समस्याएं, ढेरों शिकायती पत्र, लम्बे चौड़े विचार–विमर्श और फिर रात में बैठकर सैंकड़ों रिपोर्टें पढ़कर उन पर टिप्पणियां करते–करते हालत पतली हो जाती है। रात को भी देर से ही बिस्तर पर आ पाते हैं। उस पर ये मोबाइल की घण्टी। वे मन में झुंझलाते हैं किंतु हैलो बोलते समय पूरी तरह शांत रहते हैं।
हैलो सर ! मैं ढगला राम बोल रहा हूँ ! दूसरे छोर से आवाज आती है।
कहाँ से ? साहब की नींद अब तक काफी उड़ चुकी है।
सर, मैं सरपंच पति हूँ।
जी बताइये, क्या सेवा कर सकता हूँ ? मन की खीझ को छिपाकर साहब जवाब देते हैं।
हमारे गांव में तीन दिन से पानी नहीं आ रहा और अभी बिजली भी नहीं आ रही।
अच्छा ! आपने अपने क्षेत्र के बिजली और पानी विभागों के जेइएन्स से बात की क्या?
नहीं की।
क्यों?
उनसे बात करने का कोई फायदा नहीं है, पानी वाले जेईएन कहेंगे कि पाइप लाइन फूटी हुई है प्रस्ताव एसई आॅफिस भेज रखा है और बिजली वाले कहेंगे कि पीछे से गई हुई है।
तो अपने क्षेत्र के सहायक अभियंताओं से बात करें।
उनसे भी बात करने का कोई फायदा नहीं है।
क्यों?
वो कहेंगे कि जेइन से बात करो।
तो आप अपने क्षेत्र के अधिशासी अभियंता या अधीक्षण अभियंता से बात करते। जलदाय विभाग और बिजली विभाग के किसी भी अफसर से बात करते। आपने सीधे ही मुझे फोन लगा दिया।
सर मैंने सोचा कि आप जिले के मालिक हैं। सारे विभाग आपके नीचे हैं, इसलिये आपसे ही कह देता हूँ, अब जिसको कहना हो, आप ही कहिये। हमारे यहां तो अभी बिजली चालू होनी चाहिये और कल सुबह पानी आना चाहिये। यदि आप सुनवाई नहीं करते हैं तो मैं मंत्रीजी को फोन लगाता हूँ।
इतनी रात में! कितने बजे हैं अभी?
रात के दो बज रहे हैं।
लोगों को सोने तो दो, दिन निकल जाये तब बात करना।
आप लोग तो वहां एसी में आराम से सो रहे हैं, आपको मालूम है हम कितनी तकलीफ में हैं। कल सुबह पानी आ जायेगा या मैं मंत्रीजी को फोन लगाऊँ ?
अरे यार...... अच्छा सुबह बात करना, सुबह ही कुछ हो सकेगा।
सुबह–वुबह कुछ नहीं। आप जवाब हाँ या ना में दीजिये।
साहब झुंझलाकर फोन काट देते हैं, उनकी इच्छा होती है कि फोन को स्विच आॅफ करके सो जायें किंतु कर नहीं पाते, कौन जाने कबएमरजेंसी कॉल आ जाये। वे फिर से सोने का प्रयास करते हैं किंतु सो नहीं पाते। वैसे भी ब्लड प्रेशर और शुगर के पेशेंट हैं। काफी देर करवटें बदलने के बाद मोबाइल में टाइम देखते हैं। चार बजने वाले हैं। वे उठकर मार्निंगवाक के लिये तैयार होते हैं। अभी वे पैण्ट पहनते ही हैं कि मोबाइल फिर से बजता है।
सर! मैं कोजाराम बोलता हूँ। हमारे यहाँ ........।
साहब मोबाइल हाथ में लेकर घर से बाहर निकल लेते हैं। जब से मोबाइल फोन आया है, साहब की रात इसी तरह कटती है।

Tuesday, May 25, 2010

जिन्दगी हमेशा के लिये उनका चालान काट चुकी है !


वाहनों से खचाखच भरी सड़कें। दु्रत गति से दौड़ती मोटर साइकिलें, बेतहाशा भागती कारें, पगलाई हुई सी लोडिंग टैक्सियां, बेचैन आत्माओं की तरह भटकते थ्री व्हीलर और इन सबके बीच सर्र–सर्र निकलते साइकिल सवार। जिधर देखो अफरा–तफरी का माहौल। मानो कायनात में जलजला आ गया हो, कहीं आग लग गई हो या शहर पर एलियन्स का हमला हो गया हो। कहाँ जा रहे हैं ये सब लोग इतनी हड़बड़ाहट में! क्या हो जायेगा इतनी तेज दौड़कर! कोई रेस हो रही है क्या? लगभग हर तीसरी मोटर साइकिल पर तीन आदमी सवार हैं किसी–किसी पर तो चार भी! बच्चे अलग से। अधिकतर दुपहिया वाहन चालकों के सिर पर हेलमेट नहीं हैं। कार चालकों को सीट बैल्ट बांधने से परहेज है। वे चौराहों पर से निकलते समय भी वाहन धीमा नहीं करते और मोबाइल पर बातें कर रहे होते हैं।

ऐसा ही रोज का माहौल आज भी रिक्तियां भैंरूजी चौराहे पर था। एक आदमी अपनी मोटर साइकिल पर तीन सवारियों सहित, बिना हैलमेट बांधे और कान पर मोबाइल फोन लगाये तेजी से पाली की तरफ से आया। मोटी स्थूल काया। कानों में सोने के लूंग। महंगा मोबाइल फोन। देह पर पढ़े–लिखे लोगों जैसी अच्छी तरह इस्तरी की हुई पैण्ट शर्ट। उसे रेलवे की खतरनाक पुलिया की तरफ जाना था। अचानक उसकी दृष्टि चौराहे के निकट खड़े यातायात पुलिस कर्मियों पर पड़ी। उन्होंने चार–पांच मोटर साइकिलें पकड़ रखी थीं। कुछ मोटर साइकिलें, वाहन जब्त करने वाली क्रेन से बंधी थीं। उसने कसकर ब्रेक दबाये। पीछे तेजी से भागती चली आ रही मोटर साइकिल ने भी ब्रेक मारे किंतु टक्कर तो होनी ही थी, सो होकर रही। पीछे बैठी सवारियों के चोट लगना स्वाभाविक था, सो लगी ही किंतु यहाँ चोट की परवाह किसे थी! कहावत तो यह है कि गधा, गधे की लात से नहीं मरता किंतु मोटर साइकिल की टक्कर से मोटर साइकिल वाले मरते हुए देखे गये हैं। कानों में लूंग वाले मोटर साइकिल चालक ने चाहा कि वह मुड़कर पीछे की तरफ भाग जाये किंतु इससे पहले कि वह ऐसा कर पाता, ट्रैफिक पुलिस के सिपाही ने दौड़कर उसे धर दबोचा। मारे गये गुलफाम! आ गया ऊँट पहाड़ के नीचे!

अभी उसका चालान कट ही रहा था कि दो तीन मोटर साइकिलें धड़धड़ाती हुई आ पहुँचीं। उनका भी नजारा पहले वाली मोटर साइकिल जैसा। एक बोलेरो वाला मोबाइल पर बात करता हुआ सौ की स्पीड से निकला। अब इतने ट्रैफिक पुलिसकर्मी कहाँ से आते! सो ये लोग नसीब वाले निकले और पुलिसकर्मियों के ठीक पास से होकर भाग छूटे। पुलिसकर्मी चालान काटकर बोला, यहाँ दस्तखत करो। वह बगलें झांकने लगा। अरे सोच क्या रहा है, दस्तखत कर! मुझे दस्तखत करने नहीं आते, अंगूठा लगाऊंगा। पुलिसकर्मी को विश्वास नहीं हुआ, लगता तो पढ़ा लिखा है, झूठ बोलता है! पुलिसकर्मी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा। नहीं, झूठ नहीं बोल रहा, वह हकलाया।

मैं भी वहीं खड़ा काफी देर से तमाशा देख रहा था। सौ–सौ जूते खाय, तमाशा घुसकर देखें वाली आदत जो ठहरी। अचानक सामने एक विकलांग आता हुआ दिखाई दिया। उसके दोनों पैर खराब थे, वह सड़क पर हाथों के सहारे घिसट रहा था। उसे देखकर सिर घूम गया। अचानक खयाल आया कि इस दुनिया में एक ओर ऐसे लोग हैं जो बेतहाशा भागकर जाने कहां पहुंचना चाहते हैं और एक ओर ऐसे लोग भी हैं जिन्हें कुदरत ने पांव ही नहीं दिये। जिन्दगी जैसे हमेशा के लिये उनका चालान काट चुकी है।