हम भारतीय लोग धरती, गौ, गंगा, गीता, गायत्री और पराई स्त्री को माता मानते हैं। इन सब माताओं से बढ़कर यदि कोई और भी है जिसे हम माता का सम्मान देते हैं तो वह है भारत माता। भारत माता पर उसकी सारी संतानें बलिदान होने का स्वप्न देखती हैं फिर भी यह कैसी विडम्बना है कि हमारी समस्त माताओं की तरह भारत माता भी चारों ओर संकटों से घिरी हुई है और वह बुरी तरह उदास है। उसकी उदासी का कोई एक कारण नहीं है। भारत में एक तिहाई लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं अर्थात् लगभग 40 करोड़ लोगों को 2100 कैलारी ऊर्जा अर्थात् दो जून की रोटी आसानी से नसीब नहीं होती फिर भी भारत माता के कुछ ताकतवर बेटों ने 25 लाख करोड़ रुपये स्विस बैंकों में ले जाकर छिपा दिये हैं। एक माता कैसे सुखी हो सकती है जब उसके कुछ बेटे तो भूखे मरें और कुछ बेटे अय्याशी भरी जिंदगी बिताने के लिये देश की सम्पत्ति को चुराकर दूसरे देशों में छिपा आयें !
एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये के नकली नोट लाकर भारत में खपा दिये हैं। इस कारण हर भारतीय हर समय आशंकित रहता है कि उसकी जेब में पड़े हुए नोट नकली न हों, कहीं कभी पुलिस उसे नकली नोट रखने या चलाने के अपराध में गिरफ्तार न कर ले! सोचिये जिस माता के बेटों को हर समय अपने धन की सुरक्षा करने की चिंता रहती हो, वह माता कैसे सुखी रह सकती है!
भारत के लोग संत–महात्माओं और बाबाओं के प्रवचन सुनने के लिये लालायित रहते हैं। उनके प्रवचनों के माध्यम से अपने लिये मोक्ष का मार्ग खोजते हैं। इसलिये टी वी चैनलों पर इन बाबाओं के प्रवचनों में उमड़ने वाली विशाल भीड़ दिखाई देती है। इतने सारे लोगों को एक साथ एकत्रित देखकर आंखें हैरानी से फटी रह जाती हैं। इन्हें देखकर लगता है कि जब इतने सारे लोग धर्म चर्चा में भाग लेंगे तो देश में सुख–शांति स्वत: ही व्याप्त हो जायेगी किंतु हैरानी होती है यह देखकर कि संत–महात्माओं के भक्त कहलाने वाले ये लोग अचानक ही वहशी हो उठते हैं और चलती हुई ट्रेनों को आधी रात में रोककर उनमें आग लगा देते हैं। स्टेशनों और जंगलों में पड़े बच्चे भूख से बिलबिलाते हैं। यह कैसी भक्ति? यह कैसा उन्माद? भला ऐसे हिंसक बच्चों को देखकर कौन माता उदास नहीं होगी?
भारत माता की एक उदासी हरियाणा को लेकर भी है। हरियाणा में शिक्षा विभाग ने महिलाओं को एक तिहाई सीटों पर आरक्षण दिया। कुछ दिन बाद उन महिलाओं के बारे में एक सर्वेक्षण किया गया। पता लगा कि उन समस्त महिला शिक्षकों ने अपने ही विभाग में नियुक्त पुरुष शिक्षकों अथवा अन्य सरकारी कर्मचारियों से विवाह कर लिये। इनमें से एक भी महिला ऐसी नहीं थी जिसने किसी बेरोजगार युवक से विवाह किया हो। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ने जितने लोगों को नौकरी दी उनमें से 60 प्रतिशत नौकरियां केवल 30 प्रतिशत घरों में ही चूल्हा जला रही हैं। जिन 30 प्रतिशत घरों में और चूल्हे जल सकते थे उन घरों में किसी को रोजगार नहीं पहुंचा और वहां दो वक्त का चूल्हा भी नहीं जल रहा। अब भला भारत माता क्यों उदास न हो!
AAP SAHI KAH RAHE HAI.
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
"हरियाणा में शिक्षा विभाग ने महिलाओं को एक तिहाई सीटों पर आरक्षण दिया।.........ऐसी नहीं थी जिसने किसी बेरोजगार युवक से विवाह किया हो।".....
ReplyDeleteइससे तो यही लगता है कि हर कोई मौके कि तलाश में रहता है और जब उसे अच्छा मौका मिलता है फिर वी अपने पुरानी हकीकत को भूल जाता है
udaasi to honi hi hai.
ReplyDeleteek maarmik lekh...
kunwar ji,
बहुत ही सोचनीय और रिसर्च की हुई रिपोर्ट ,,सुन्दर आलेख
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
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