चीन और अमरीका दो ऐसे देश हैं जो हर तरह से एक दूसरे के विपरीत खड़े हैं। चीन दुनिया के धुर पूरब में तो अमरीका धुर पश्चिम में। चीन धर्म विरोधी तो अमरीका धर्म निरपेक्ष, फिर भी चीन का शासक केवल बौद्ध धर्म का अनुयायी ही हो सकता है तो अमरीका में केवल ईसाई धर्म का। चीन साम्यवादी अर्थात् श्रम आधारित सामाजिक रचना के सिद्धांत पर खड़ा है तो तो अमरीका पूंजीवादी अर्थात् भोग आधारित सामाजिक संरचना का रचयिता है। चीन में मानवाधिकार वाले प्रवेश भी नहीं कर सकते जबकि अमरीका मानवाधिकारों के नाम पर पूरी दुनिया पर धौंस जमाता है।
दोनों देशों में यदि कोई समानता है तो यह कि दोनों देश पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। वर्चस्व की इस दौड़ में अमरीका चीन से भयभीत है जबकि चीन के चेहरे पर भय की शिकन तक नहीं।
इतने सारे विरोधाभासों के उपरांत भी दोनों देश पाकिस्तान से विकट प्रेम करते हैं और भारत से शत्रुतापूर्ण अथवा शत्रुता जैसी कार्यवाही करने में नहीं हिचकिचाते। 1962 में चीन, चीनी हिन्दी भाई–भाई का नारा लगाते हुए अपने सेनाएं लेकर भारत पर टूट पड़ा था तो 1971 में अमरीका पाकिस्तान के पक्ष में अपनी नौसेना का सातवां बेड़ा हिन्द महासागर में ले आया था। आज भी स्थितियां न्यूनाधिक मात्रा में वैसी ही हैं। अमरीका और चीन दोनों ही पाकिस्तान में आई बाढ़ में सहायता के लिये बढ़–चढ़कर भागीदारी निभा रहे हैं। मीडिया में आ रही रिपोर्टों को सच मानें तो पाकिस्तान ने चीन को पीओके गिफ्ट कर दिया है। चीन के सात से ग्यारह हजार सैनिक पीओके में खड़े हैं और अमरीका पाकिस्तान को अरबों रुपये की युद्ध सामग्री उपलब्ध करवा रहा है।
पड़ौसी होने के नाते भारत भी पाकिस्तान में आई बाढ़ में सहायता राशि भेजना चाहता था किंतु पहले तो पाकिस्तान ने सहायता लेने से ही मना कर दिया और बाद में अमरीकी हस्तक्षेप के उपरांत उसने भारत से कहा कि भारत को सहायता सामग्री यूएनओ के माध्यम से भेजनी चाहिये।
अमरीका और चीन की पाकिस्तान के साथ विचित्र दोस्ती और पाकिस्तान के द्वारा भारत के साथ किया जा रहा उपेक्षापूर्ण व्यवहार देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई लंगड़ा सियार दो ऐसे झगड़ालू शेराें से दोस्ती करके जंगल के दूसरे जीवों पर आंखें तरेर रहा है जो शेर आपस में एक दूसरे के रक्त के प्यासे हैं। यह दोस्ती तब तक ही सुरक्षित है जब तक कि दोनों शेर अपने खूनी पंजे फैलाकर एक दूसरे पर झपट नहीं पड़ते।
अंतत: पाकिस्तान को एक दिन यह निर्णय लेना ही है कि वह पाकिस्तान में अमरीकी सैनिक अड्डों की स्थापना के लिये अपने आप को समर्पित करता है या फिर चीनी सैनिक अड्डों के लिये ! या फिर इतिहास एकदम नये रूप में प्रकट होने जा रहा है, आधे पाकिस्तान में अर्थात् अफगानिस्तान की सीमा पर अमरीकी सैनिक अड्डे होंगे और आधे पाकिस्तान में अर्थात् भारतीय सीमा पर चीनी सैनिक अड्डे होंगे और पूरा पाकिस्तान इन दोनों शेरों के खूनी पंजों की जोर आजमाइश के लिये खुला मैदान बन जायेगा जैसे पहले कभी अमरीका और रूस के बीच अफगानिस्तान बन गया था!
Monday, August 30, 2010
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