भारतीय रेलवे संसार की चौथे नम्बर की सबसे बड़ी रेलवे है। लाखों यात्री प्रतिदिन भारत भर में फैले रेलवे स्टेशनों पर पहुंचते हैं। परम्परागत रूप से भारतीय लोग घर का बना हुआ भोजना खाना और अपने स्वयं के बिस्तरों में सोना पसंद करते हैं। इसलिये स्वाभाविक ही है कि विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारतीयों के पास यात्रा के दौरान सामान अधिक होता है किंतु पूरे भारत में बूढ़ों, बीमारों, बच्चों, औरतों और यहाँ तक कि गर्भवती औरतों को भी रेलवे स्टेशनों पर भारी सामान ढोते हुए देखा जा सकता है। बहुत कम लोग हैं जो कुली की सेवाएं प्राप्त करते हैं। अधिकतर यात्री मन ही मन कुलियों के द्वारा मांगे जाने वाले भारी भरकम पारिश्रमिक से डरे हुए होते हैं। विवशता होने तथा अन्य कोई उपाय नहीं होने की स्थिति में ही वे कुली को आवाज लगाने का दुस्साहस करते हैं। धनी लोगों की बात छोड़ दें। उन्हें कुलियों द्वारा मांगे जाने वाले पारिश्रमिक से डर नहीं लगता।
रेलवे ने कुलियों द्वारा एक फेरे में ढोये जाने वाले सामान का भार तथा उसके पारिश्रमिक की दर निर्धारित कर रखी है जो कि समय-समय पर बढ़ती रहती है। शायद ही कोई कुली रेलवे द्वारा निर्धारित दर पर सामान ढोता है। अक्सर वे दो गुने से लेकर पांच गुने तक पैसे मांगते हैं। यात्रियों को कुलियों से मोलभाव करना पड़ता है और प्राय: कुली द्वारा मांगे गये पारिश्रमिक पर ही समझौता करना पड़ता है या फिर मन मारकर बोझ स्वयं उठाना पड़ता है। जो लोग कुली करते हैं, उन्हें कुलियों को भुगतान करते समय उनसे वाक्युध्द करना पड़ता है। इस दौरान कुलियों का झुण्ड जमा हो जाता है और वे मिलकर यात्री के साथ बुरा व्यवहार करते हैं और यात्री को अपमान का घूंट पीना पड़ता है। यात्री को कुली की ही इच्छा पूरी करनी पड़ती है। बहुत कम कुली ऐसे हैं जो यात्रियों से गरिमामय व्यवहार करते हैं।
कुलियों का काम कैसा है और उसमें कितनी कमाई है, इसका अनुमान लगाने के लिये एक ही उदाहरण पर्याप्त है। दो-तीन साल पहले रेलवे ने कुलियों को प्रस्ताव दिया कि वे चाहें तो रेलवे में गेंगमैन की पक्की नौकरी पर लग जायें। इस प्रस्ताव से कुलियों की बांछें खिल गईं। उन्होंने रेलवे स्टेशनों पर भांगड़ा किया और गैंगमैन बन गये। रेलवे की पक्की नौकरी में मोटा वेतन, निशुल्क यात्रा पास, निशुल्क चिकित्सा और रेलवे क्वार्टर जैसी सुविधायें मिलती हैं जो प्राय: दूसरे विभागों के कर्मचारियों को उपलब्ध नहीं हैं। इन्हीं सुविधाओं के लिये कुलियों ने गैंगमैन बनना स्वीकार किया था किंतु जब उन्हें गैंगमैन का काम करने को दिया गया तो उनकी ऑंखों के सामने दिन में ही तारे प्रकट हो गये। दूर-दूर तक बिछे हुए रेलवे ट्रैक पर भरी धूप में गैंती-हथौड़े चलाने का काम वे नहीं कर सके। उन्हें तो रेलवे स्टेशनों पर लगे शेड की छाया, कूलरों का ठण्डा पानी, पंखों की हवा, यात्रियों से वसूले जाने वाले मोटे पारिश्रमिक की याद आने लगी और अब देश भर में हजारों कुली अपने पुराने काम पर लौटना चाहते हैं। इसका अर्थ यह है कि कुली का काम और उसकी कमाई गैंगमैनों की तुलना में अच्छी है।
रेलवे को चाहिये कि वह कुलियों की मनमानी को रोकने के लिये कुली के कुर्ते पर तथा रेलवे स्टेशन पर कई स्थानों पर कुलियों की भाड़ा दर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखे क्योंकि कुली अपनी मनमानी केवल इसलिये करते हैं कि लोगों को उनकी वास्तविक भाड़ा दर ज्ञात नहीं होती। रेलवे स्टेशनों पर बार-बार की जाने वाली घोषणाओं में भी कुली की भाड़ा दरों को बताया जाना चाहिये। कुलियों की इस मनमानी के बीच एक अच्छी सूचना भी है। जोधपुर रेलवे स्टेशन पर एक कुली गाड़ियों पर यह आवाज लगाता हुआ घूमता है- कुली कर लो, केवल बीस रुपये में।
Friday, April 16, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ये २० रुपये वाला कुली हरेक स्टेशन पर कब मिलेगा ? इंतजार है ...
ReplyDelete