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Friday, April 30, 2010

भारतीय स्त्रियों की परम्परा तो कुछ और ही है !


उसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बदला लेना था! उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन चाहिये था! वह किसी पाकिस्तानी गुप्तचर से प्रेम करती थी! ये वे तीन कारण हैं जो इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में नियुक्त भारतीय महिला राजनयिक ने एक–एक करके बताये हैं जिनके लिये उसने अपने देश की गुप्त सूचनायें शत्रुओं के हाथ में बेच दीं! ये सारे उत्तर एक ही ओर संकेत करते हैं कि यह महिला राजनयिक अत्यंत महत्वाकांक्षी है और दूसरों की अपेक्षा अधिक महत्व प्राप्त करने के लिये उसने भारत की सूचनायें शत्रुओं को दी हैं।

प्रेम! राष्ट्रभक्ति! और बदला! भावनाओं के इस त्रिकोण में भारतीय स्त्रियों की परम्परा अलग रही है। राजस्थान के इतिहास की तीन घटनायें इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। पहली घटना 1314 ईस्वी की है जब जालोर के चौहान शासक कान्हड़देव के मंत्री वीका ने राजा कान्हड़देव से अपने अपमान का बदला लेने के लिये अल्लाउद्दीन खिलजी को दुर्ग के गुप्त मार्ग का पता दे दिया। जब मंत्री वीका की पत्नी हीरादेवी को यह ज्ञात हुआ तो उसने उसी क्षण अपने पति की हत्या कर दी और राजा को अपने पति की गद्दारी के बारे में सूचित किया। हीरादेवी ने अपना देश बचाने के लिये अपना पति बलिदान कर दिया।

दूसरी घटना 1536 ईस्वी की है। दासी पुत्र वणवीर 19 वर्षीय महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करके स्वयं मेवाड़ की गद्दी पर बैठ गया। उस समय विक्रमादित्य का छोटा भाई उदयसिंह 15 साल का था। जब वणवीर राजकुमार उदयसिंह को मारने के लिये उसके महल में गया तो उदयसिंह की धाय पन्ना ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। वणवीर ने पन्ना के बेटे को उदयसिंह जानकर उसकी हत्या कर दी। पन्ना उदयसिंह को महलों से लेकर भाग गयी। पन्ना ने मातृभूमि के भविष्य को बचाने के लिये अपने पुत्र का बलिदान कर दिया।
तीसरी घटना 1658 ईस्वी की है। औरंगजेब ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमती से बलपूर्वक विवाह करने का प्रयास किया। इस पर चारूमती ने मेवाड़ के महाराणा राजसिंह को लिखा कि या तो आप आकर मुझसे विवाह कर लें या फिर मैं अपने प्र्राण त्याग दूंगी। इस पर महाराणा ने अपने सरदारों को सेना सहित किशनगढ़ कूच करने का आदेश भिजवाया। जिस दिन सलूम्बर के ठाकुर के पास यह संदेश पहुँचा, उस दिन ठाकुर अपना विवाह करके आया था और उस दिन उसकी सुहागरात थी किंतु ठाकुर ने उसी समय युद्ध के लिये कूच कर दिया और अपनी सोलह वर्षीय हाड़ी रानी से स्मृति चिह्न मांगा। रानी ने अपना सिर काटकर ठाकुर को भेजा और कहलवाया कि इस भेंट को पाने के बाद युद्धक्षेत्र में आपका ध्यान देश की आन, बान और शान बचाने में लगेगा न कि अपनी षोडषी रानी के रूप लावण्य में। हाड़ी रानी ने अपने देश की आन, बान और शान के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया।

ये तीनों घटनायें बताती हैं कि राष्ट्र रूपी देवता की आराधना के समक्ष निजी हित–अनहित और महत्वाकांक्षायें कुछ भी नहीं। महत्व तो इतिहास की उन स्त्रियों को मिला जिन्होंने राष्ट्र रूपी देवता के पूजन के लिये पति, पुत्र और स्वयं के बलिदान दिये। उनके नाम आज सैंकड़ों साल बाद भी इतिहास के पन्नों में अमर हैं। भारतीय राजनयिक ने शत्रु के हाथों गुप्त सूचनायें भेजकर राष्ट्र रूपी देवता को कुपित किया है। भारतीय स्त्रियों की यह परम्परा नहीं है।

4 comments:

  1. ऐसी भारतीय नारियों को हमारा सलाम...

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  2. I think you should not categorize criminals into man and woman

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  3. "महत्व तो इतिहास की उन स्त्रियों को मिला जिन्होंने राष्ट्र रूपी देवता के पूजन के लिये पति, पुत्र और स्वयं के बलिदान दिये। उनके नाम आज सैंकड़ों साल बाद भी इतिहास के पन्नों में अमर हैं।" - इतिहास साक्षी है कि स्त्रियाँ भी देशभक्ति या कर्तव्यपरायणता में कभी पीछे नहीं रहीं - आलेख के लिए धन्यवाद्

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  4. भूली क्यॊ इतिहास यह्, सन्तति अपनी आज.
    दॆश भक्ति पर कर रही,क्यॊ गद्दारी राज .
    क्यॊ गद्दारी राज ? चॆतना लानी हॊगी .
    इतिहासो की बात पुन: समझानी हॊगी.
    बलिदानॊ का दॆश चदॆगा वर्ना सूली.
    अपना स्वाभिमान ,अगर नव पीदी भूली.

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