जब नदी में बाढ़ आती है तो नदी के किनारों पर रहने वाली चींटियों के झुण्ड बहकर नदी में चले आते हैं जहाँ मछलियाँ उन्हें खा जाती हैं। कुछ समय बाद जब नदी सूख जाती है तो मछलियां मरने लगती हैं और नदी के किनारों पर रहने वाली चींटियाँ उन्हीं मछलियों को खा जाती हैं जिन्हाेंने एक दिन चींटियों को खाया था। यह है काल का प्रताप! पात्र वही हैं किंतु काल के बदलते ही भक्षक भक्ष्य हो जाता है। एक और उदाहरण देखें। जब आदमी जंगल में जाता है तो उसे जानवर घेर लेते हैं किंतु जब जानवर बस्ती में आता है तो उसे आदमी घेर लेते हैं। पात्र वही हैं किंतु देश बदलते ही पात्रों की भूमिका बदल जाती है।
सामान्यत: देश, काल और पात्र मिलकर परिस्थितियों का निर्माण करते हैं किंतु प्राय: देश और काल, पात्रों को अधिक प्रभावित करते हैं। भारत सरकार ने समाचार पत्रों में भारत तथा उसके पड़ौसी देशों में पैट्रोलियम पदार्थों के भाव प्रकाशित करवाये हैं जिनके अनुसार एलपीजी गैस सिलैण्डर का भाव पाकिस्तान में 577 रुपये, बांगलादेश में 537 रुपये, श्रीलंका में 822 रुपये, नेपाल में 782 रुपये तथा भारत में 345 रुपये प्रति सिलैण्डर है और कैरोसिन का भाव पाकिस्तान में 36 रुपये, बांगलादेश में 29 रुपये, श्रीलंका में 21 रुपये, नेपाल में 39 रुपये तथा भारत में 12.32 रुपये प्रति लीटर है।
ये पांचों देश दक्षिण एशिया में स्थित हैं। इन पांचों देशों में लोकतंत्र है। पांचों देश गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से त्रस्त हैं। पांचों देश अंग्रेजों के पराधीन रहे हैं। पांचों ही देशों में जनता का अपने धर्म पर अटूट विश्वास है। पांचाें ही देशों की जलवायु गर्म है। पांचों देशों में जनसंख्या ठूंस-ठूंस कर भरी हुई है। फिर क्या कारण है कि इन पांचों देशों में पैट्रोलियम पदार्थों के भावों में इतना अंतर है!
सारे तत्व लगभग एक से होने पर भी देशों का अंतर समझे जाने योग्य है। भारत को हमारे ऋषियों ने अकारण ही महान नहीं कहा है। दूसरे देशों से तुलना करने पर भारत की विलक्षणता स्वत: सिध्द होती है। देश को यह महानता, राष्ट्रीय अनुशासन, सांस्कृतिक विलक्षणता और राष्ट्रप्रेम से प्राप्त होती है किंतु जैसे-जैसे प्रजा के जीवन में उच्छृंखलता आती है, लोग संस्कृति को भूलकर अपने देश की अपेक्षा पूंजी से प्रेम करने लगते हैं तो देश की महानता नष्ट हो जाती है। हमारे पड़ौसियों की महानता इसीलिये नष्ट हुई है। वहाँ की प्रजाएँ अपने देश से प्रेम नहीं करतीं और न ही राष्ट्रीय अनुशासन में बंधे रहना चाहती हैं। उनमें अशिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई और निर्धनता चरम पर है। वहाँ से जनसंख्या का पलायन भारत की ओर होता रहा है। भारत अपनी प्रजा पर गर्व कर सकता है और कहा जा सकता है कि जब तक भारत की प्रजा राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीय अनुशासन में आबध्द रहेगी, तब तक राष्ट्र हमारे लिये सुखकारी बना रहेगा। अन्यथा चींटियों को मछलियों का स्थान लेने में अधिक समय नहीं लगता।
Monday, June 28, 2010
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भारत सरकार को इन देशों के रूपये की कीमत भी साथ लिखनी चाहिए थी !!
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