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Tuesday, June 8, 2010

पन्द्रह हजार आत्माएँ उसे ढूंढ रही हैं !


पिछले पच्चीस साल से वह अपनी कम्पनी के ट्रेेड सीक्रेट के साथ अपने निजी चार्टर्ड प्लेन में बैठकर उड़ रहा है। पन्द्रह हजार मृतकों की आत्माएं उसका पीछा कर रही हैं। भारत की खुफिया एजेंसियां उसे दुनिया के कोनों–कोचरों में ढूंढ रही हैं। 5 लाख लोगों की तीन पीढि़यां उसे खोजते–खोजते थक गई हैं किंतु वह किसी के हाथ नहीं आ रहा। संसार का ऐसा कोई अखबार नहीं है जिसमें उसकी गुमशुदगी का इश्तहार छपवाया जा सके। जिस समय वह अपने निजी प्लेन में बैठकर दुनिया की आँखों से ओझल हुआ था, उस समय उसकी आयु 65 साल थी। अब वह 90 वर्ष का हो चुका है। उसका नाम एण्डरसन है।

यह वही एण्डरसन है जिसकीयूनियन कार्बाइड से निकली गैस ने 2–3 दिसम्बर 1984 की स्याह–सर्द रात में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 15 हजार लोगों को मौत की नींद सुलाया। डॉक्टरों ने उससे पूछा, हमें बताईये कि आपके प्लाण्ट से किन गैसों का रिसाव हुआ ताकि हम पाँच लाख घायलों का सही उपचार कर सकें और उनका जीवन बचा सके। उसने बेशर्मी से जवाब दिया, यह हमारी कम्पनी का ट्रेड सीक्रेट है! उसके बाद वह अपनी जमानत करवाकर अपने चार्टर्ड प्लेन में बैठकर अमरीका के किसी सुविधा सम्पन्न शहर को उड़ गया। तभी से हम कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे की तर्ज पर आँखें मल–मल कर अमरीका की ओर देख रहे हैं कि एक न एक दिन अमरीका उस 90 साल के एण्डरसन को पकड़कर भारत को सौंप देगा।

आपने टेलिविजन पर एक विज्ञापन देखा होगा, एक आदमी हवाई जहाज से उतर कर संदेश देता है– ह्यूमन राइट्स हैव नो बाउण्ड्रीज। जिस अमारीका को ह्यूमन राइट्स की चिंता हर समय सताती रहती है, उस अमरीका को भोपाल त्रासदी में मरे 15 हजार लोगों और 5 लाख घायलों के राइट्स का ध्यान क्यों नहीं आता! एण्डरसन अपने जिन भारतीय साथियों को भारत में छोड़ गया, उन्हें अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा सुखपूर्वक गुजार देने के बाद सीजेएम कोर्ट से 2–2 साल की कैद मिली है। इस फैसले ने देश में एक नई चर्चा को जन्म दिया है। लोगों को लगता है कि इन दोषियों के जीवन का शेष हिस्सा बड़ी अदालतों में इस निर्णय के विरुद्ध अपील खड़ी करके बीत जायेगा। उन पर एक–एक लाख रुपये का जुर्माना किया गया है। लोगों को यह भी लगता है कि इतने रुपये तो यूनियन कार्बाइड के अधिकारी साल भर में टॉयलेट में काम आने वाले टिश्यू पेपर पर खर्च कर देते हैं। यूनियन कार्बाइड के लिये पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लोगों को कम लगता है! जो लोग हाल ही में मंगलौर हवाई दुर्घटना में मरे थे, उनके परिजनों को 57–57 लाख का मुआवजा मिला।

एक दुखद किंतु विचित्र चर्चा यह भी है कि क्या भोपाल त्रासदी वाले लोग पुरानी रेट्स पर मरे थे और मंगलौर दुर्घटना के लोग नई रेट्स पर मरे हैं! जब दुनिया में प्रजातंत्र की आंधी आई थी तब यह कहावत चल निकली थी, प्रजातंत्र में सब बराबर हैं किंतु कुछ लोग ज्यादा बराबर हैं। आज की दुनिया में यह कहावत चल पड़ी है, सब इंसानों के ह्यूमन राइट्स बराबर हैं किंतु अपराधियों के ह्यूमन राइट्स अधिक बराबर हैं।

1 comment:

  1. आईये जानें ....मानव धर्म क्या है।

    आचार्य जी

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