Thursday, February 11, 2010
बच्चों को विकलांग बना सकता है डी जे !
विवाह एक पारिवारिक आयोजन है किंतु आधुनिक जीवन शैली में आम आदमी के व्यक्तिगत सम्पर्कों में हुए कईगुना विस्तार के कारण भारतीय विवाह सार्वजनिक मेले की तरह दिखाई देने लगे हैं जिनमें हजारों नर–नारीसम्मिलित होते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जो केवल पारिवारिक विवाह आयोजनों में भाग लेते हैं। अधिकतर लोगसामाजिकता के निर्वहन के लिये बड़ी संख्या में परिचितों, सम्बन्धियों और सहकर्मियों के परिवारों में होने वालेविवाहों में सम्मिलित होते हैं। इन वैवाहिक आयोजनों में सैंकड़ों तरह की असुविधाओं के बीच डी जे सबसे बड़ीमुसीबत के रूप में उभरा है। लगभग सारे विवाह समारोहों में इस आधुनिक कानफोडू़ वाद्ययंत्र को बजाया जाता है।
मनुष्य के लिये 50 डेसीबल्स तक की अधिकतम ध्वनि सहन करने योग्य होती है। मुझे पक्का तो नहीं पता किंतुमेरा अनुमान है कि इस वाद्ययंत्र की ध्वनि तीव्रता 500 डेसीबल तक होती होगी। इस ध्वनि पर आदमी का शरीरही नहीं, आत्मा तक कांप उठती है जिससे आने वाली पीढि़यां स्थाई रूप से विकलांग हो सकती हैं।
हमारे घर में दिन के समय अधिकतम 30 से 35 डेसीबल तक तथा रात्रि में 25 डेसीबल तक ध्वनि होनी चाहिये।यदि हमारे घर में सड़क पर चलने वाले वाहनों की आवाज आती है, या जोर से टेलिविजन चलता है या पास में कोईमशीन चलती है तो ध्वनि का स्तर बढ़ जाता है जिससे हम कई तरह की समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं। मस्तिष्कमें तनाव उत्पन्न होता है, चिड़चिड़ाहट बढ़ती है और घर के सदस्यों में झगड़ा होने लगता है। अधिक समय तकशोर में रहने से आदमी बहरा होने लगता है। उसका रक्तचाप बढ़ जाता है। रक्त में शर्करा बढ़ने लगती है। हृदय कीधड़कन बढ़ जाती है। शरीर से खनिज पदार्थ पसीने के रूप में बाहर निकलने लगते हैं। खाना हजम नहीं होता। कार्यकी क्षमता घट जाती है। आदमी की एकाग्रता नष्ट हो जाती है और वह किसी काम पर ध्यान केन्द्रित करने योग्यनहीं रह जाता। उसे कुछ याद नहीं रहता। इन सब बातों का अंतिम परिणाम यह होता है कि आदमी स्थायी तौर परबीमार हो जाता है। इसीलिये अस्पतालों और विद्यालयों के आसपास हॉर्न बजाना मना होता है और मंदिरों केआसपास पेड़ लगाये जाते हैं।
अब तक धरती पर जो भी मशीनें बनी हैं उनमें सुपर सोनिक वायुयानों की ध्वनि सबसे अधिक है। इस शोर में यदिकोई व्यक्ति कुछ दिनों तक लगातार रहे तो वह स्थायी रूप से पागल हो सकता है। अधिक ध्वनि से आदमी कीप्रजनन क्षमता कम हो जाती है। गर्भवती माताओं में गर्भपात की शिकायत बढ़ जाती है तथा मानसिक रूप सेविकलांग बच्चे पैदा हो सकते हैं। आजकल अस्पतालों में विकलांग एवं मंद बुद्धि बच्चों के जन्म की घटनाएं तेजीसे बढ़ रही हैं।
भारत ही नहीं दुनिया भर की संस्कृतियों में शांति को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। शांत वातावरण में रहने सेहमारी वैचारिक और आध्यात्मिक शक्ति में वद्धि होती है। भीतर की शक्ति बढ़ाने के लिये मौन रखा जाता है। पूजापाठ के अंत में शांति पाठ किया जाता है। जीते जी ही नहीं, आदमी के मरने के बाद भी उसकी आत्मा की शांति केलिये प्रार्थना की जाती है। कब्रों पर जाकर फूल चढ़ाये जाते हैं तथा उन पर आर. आई. पी. अर्थात् रेस्ट इन पीसलिखा जाता है। यह कैसी विडम्बना है कि इन सब बातों को जानते हुए भी हम डी जे को गले से लगाये हुए हैं !
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बहुत ज्ञानवर्द्धक आलेख लिखा आपने .. प्राचीन काल में संगीत कर्णप्रिय हुआ करती थी .. पर आज के युवाओं को शोरप्रिय संगीत पसंद आने लगी है .. इसका दुष्परिणाम आनेवाली पीढी को तो झेलना ही होगा !!
ReplyDeleteधन्यवाद संगीताजी
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