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Monday, February 1, 2010

गांधी के नाम पर दे दे बाबा!

गांधी के नाम पर दे दे बाबा। रुपया नहीं पौण्ड चलेगा, गांधी के नाम पर ढोंग चलेगा। ये वे डेढ पंक्तियां हैं जो उस समय से मेरे मस्तिष्क में घूम रही है जब से मेरे मित्र द्वारका दास माथुर ने मुझे अपनी इंगलैण्ड यात्रा के कुछ संस्मरण सुनाये। गांधी हमारे राष्ट्रीय स्वातंत्र्य आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं में सबसे बड़ा कद रखते हैं, उन्हें हम राष्ट्रपिता कहकर सम्मान देते हैं तथा किसी को अपनी बात मनवानी हो तो उस बात को गांधी के हवाले से कहने का प्रयास करते हैं। गांधी के नाम की तुरप ठोकते ही सामने वाला अपने हाथ खड़े कर देता है। यह अलग बात है कि आज हम गांधी के बारे में बहुत ही कम जानते हैं!

भारत से बाहर गांधी को किसी और दृष्टि से देखा जाता रहा है। आजादी की लड़ाई के दिनों में वे लंदन के आंख की सबसे बड़ी किरकिरी थे। आजादी के बाद भारत से अलग हुए पाकिस्तान में वे खलनायक के रूप में देखे गये। नि:संदेह उस पाकिस्तान में आज का बांगलादेश भी पूर्वी पाकिस्तान के नाम से सम्मिलित था किंतु आज बांगलादेशी लोग गांधी के नाम को यूरोप के बाजार में किसी खूबी के साथ बेच रहे हैं, वह देखने और समझने वाली बात है। लंदन सहित यूरोप के कई शहरों में आज बांगलादेशियों ने बड़े-बड़े रेस्टोरेंट्स खोल रखे हैं जिनके बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा रहता है- गांधी रेस्टोरेंट।

जिस ब्रिटिश राजशाही से गांधी लगभग चार दशक तक लड़ते रहे। लंदन उन्हें भयभीत आंखों से देखा करता था। आज उसी लंदन में गांधी के नाम के रेस्त्रां खुले हुए हैं और धड़ल्ले से चल रहे हैं। एक बार को ऐसा लग सकता है कि यह बात लंदनवासियों के बड़े दिल का परिचायक है किंतु इसके पीछे कुछ और भी गहरी बात छिपी हुई है। आज तो गांधी की मृत्यु को तिरेसठ साल हो गये किंतु जब गांधी जीवित थे और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिये लंदन गये थे तो गांधी को सड़क पर चलते देखकर लंदन के अभिजात्य वर्ग की औरतें और पुरुष श्रद्धा मिश्रित कौतूहल से उनके पीछे चलने लगते थे। कैसे एक नंगे-बदन आदमी यूरोप की सर्दी को खादी की धोती से जीत लेता है! कैसे कोई आदमी बिना व्हिस्की और मांस के पेट भर लेता है! कैसे एक अधनंगी और मरियल सी देह के भीतर ऐसी मजबूत आत्मा निवास करती है जो संसार की सबसे बड़ी ताकत को चुनौती देती हुई लंदन तक चली आती है! आज भी बहुत से यूरोप वासियों के लिये गांधी एक कौतूहल हैं, एक विस्मयकारी जीवन शैली के प्रतिनिधि हैं।

यही कारण है कि लंदन के लोग गांधी के नाम से चल रहे रेस्टोरेंट्स में बड़े चाव से जानते हैं किंतु जैसे हम भारत में दूसरों को सम्मोहित और निरुत्तर करने के लिये गांधी के नाम का मिथ्या इस्तेमाल करते हैं, ठीक वैसे ही बांग्लादेशी भी गांधी के नाम पर लंदन वासियों को मूर्ख बनाते हैं। उन रेस्टोरेंट्स में मछली से लेकर गाय का मांस बिकता है, शराब परोसी जाती है और सूअर के मांस के पकोडे और सैण्डविच परोसे जाते हैं। इसीलिये मैंने लिखा है- रुपया नहीं पौण्ड चलेगा, गांधी के नाम पर ढोंग चलेगा।

4 comments:

  1. ये सब राजनीति के खेल हैं बस गाँधी को कौन याद करता है बस उसके नाम पर अपनी रोटियाँ सेक रहे हैं आभार्

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  2. रुपया नहीं पौण्ड चलेगा, गांधी के नाम पर ढोंग चलेगा। nice

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  3. रोचक जानकारी है, गाँधी के नाम पर इस देश के ढोंग को तो रोज ही देखते हैं लेकिन इंग्‍लेण्‍ड में भी ढोंग चालू है आश्‍चर्य का विषय है। मनुष्‍य पैसा कमाने के लिए कुछ भी कर सकता है।

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