तृन धरि ओट कहति बैदेही, सुमिरि अवधपति राम सनेही।
यह उदाहरण बताता है कि स्त्री के शील तथा समाज के चरित्र की रक्षा तभी हो सकती है जब स्त्रियां अपने पारिवारिक दायित्वों से ध्यान न हटायें तथा पराये पुरुष से संवाद करते समय मर्यादा बनाये रखें। अन्यथा भारतीय संस्कृति, बुराई से अपनी रक्षा नहीं कर पायेगी और अपनी लड़ाई हार जायेगी।
Monday, March 22, 2010
ऐसे तो हम लड़ाई हार जायेंगे
यदि धन खो जाये तो समझिये कि कुछ नहीं खोया, स्वास्थ्य खो जाये तो समझिये कि कुछ खो गया किंतु चरित्र खो जाये तो समझिये कि सर्वस्व खो गया। इस समय भारतीय समाज के भीतर इस कहावत से ठीक उलटा काम हो रहा है। लोग अपने स्वास्थ्य और चरित्र को बेचकर पैसा बटोरने में लगे हैं। विगत कुछ दिनों में हुए सैक्स रैकेट्स के खुलासे इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारतीय समाज अपना स्वास्थ्य और चरित्र दोनों खो रहा है। एयर होस्टेस, महंगे कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियां और हाई–फाई कहलाने वाले घरों की विवाहिता औरतें सैक्स रैकेट्स में सम्मिलित होकर पैसा कमा रही हैं। अभी तो चारित्रिक पतन का यह कैंसर कुछ स्थानों पर दिखाई दिया है किंतु यदि यह कैंसर भारतीय समाज में और अधिक फैल गया तो भारत अपना सर्वस्व गंवा देगा। हमारा आजादी लेना व्यर्थ चला जायेगा। हमारे सद्ग्रंथ व्यर्थ हो जायेंगे, भारत की धरती पर गंगा–यमुना का होना निरर्थक हो जायेगा, हमारी संस्कृति को पलीता लग जायेगा और हम संसार में एक पतित चरित्र वाले नागरिकों के रूप में जाने जायेंगे। हमारी संस्कृति में चरित्र के महत्व को आंकने के लिये बहुत सी बातें कही गई हैं जिनमें से एक यह भी है कि यदि राजा रामचंद्र रावण से युद्ध हार जाते तो कोई अनर्थ नहीं हो जाता, युद्ध में हार–जीत तो चलती ही रहती है किंतु यदि सीता मैया रावण से हार जातीं तो पूरी वैदिक संस्कृति, आर्य गौरव और सनातन मूल्य परास्त हो जाते। भारतीय स्त्रियों ने अपने शील की रक्षा करने के लिये बड़े–बड़े बलिदान दिये हैं। आज भारतीय महिलाओं से कोई बलिदान नहीं मांग रहा। उसकी आवश्यकता भी नहीं है किंतु हाई–फाई कहलाने वाली सोसाइटी की शिक्षित महिलाओं में इतना तेज तो बचना ही चाहिये कि वे पैसा कमाने के लिये अपने शील का सौदा करके वेश्यावृत्ति की तरफ न जायें !यह सही है कि समाज के चरित्र को बचाने का सारा ठेका महिलाओं ने नहीं ले रखा, पुरुष भी उसके लिये पूरे जिम्मेदार हैं किंतु आज महिला मुक्ति के नाम पर कुछ संस्थाएं संगठित रूप से इस दिशा में काम कर रही हैं कि पुरुष महिलाओं को सुरक्षा एवं संरक्षण न दें। भारतीय संस्कृति में समाज की व्यवस्था इस प्रकार की गई थी कि महिला विवाह से पहले पिता के संरक्षण में, पिता के न रहने पर भाई के संरक्षण में, विवाह हो जाने पर पति के संरक्षण में और विधवा होने पर पुत्र के संरक्षण में रहती आई है किंतु तथाकथित नारी मुक्ति संगठन इस व्यवस्था को पुरुष प्रधान व्यवस्था बताकर महिलाओं को पुरुषों से तथाकथित तौर पर मुक्त करवाने में लगी हुई हैं। ऐसी भ्रमित औरतें जो अपने परिवार के प्रति अपने दायित्व बोध को त्यागकर आधुनिक बनने का भौण्डा प्रयास करती हैं, बड़ी सरलता से सैक्स रैकेटों में फंस जाती हैं। अपने पिता, भाई, पति और पुत्र के संरक्षण में रहना अच्छा है कि समाज और धर्म के ठेकेदारों के चंगुल में फंसकर वेश्यावृत्ति के गहरे गड्ढे में जा धंसना अच्छा है?जब अशोक वाटिका में सीताजी को अपने परिवार का संरक्षण उपलब्ध नहीं था तब वे अपने हृदय में श्रीराम का ध्यान रखकर, तिनके की आड़ लेकर रावण के दुष्टता और धूर्तता भरे प्रस्तावों का प्रतिकार करती थीं–
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CHITRKOOT KA CHATAK
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पुरुष और नारी दोनों को एक साथ कुकृत्य के खिलाफ सामने आना है. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .श्रेष्ठ आलेख .
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
धन्यवाद पाण्डेयजी,
ReplyDeleteवस्तुत: यह लड़ाई हम सबकी है किंतु यह संसार काम के वशीभूत है इस कारण कुछ लोग असंयमित होकर अमर्यादित आचरण करते हैं। शारीरिक दृष्टि से पुरुष कठोर तथा महिला सुकोमल है। इस कारण अमर्यादित पुरुष सुकोमल चित्त महिलाओं पर मौका देखकर जाल बिछाते हैं। जब तक उस महिला के परिजनों को इस दुष्कृत्य की जानकारी होती है तब तक बहुत कुछ बुरा हो चुका होता है। इसलिये महिलाओं को यह बात बार–बार बतानी आवश्यक है कि वे अपने आप को मानसिक तौर पर भले ही पुरुषों के बराबर समझकर अपना जीवन यापन करें किंतु इस सच्चाई से कभी मुंह न मोड़ें कि शारीरिक दृष्टि से वे पुरुषों से कमजोर हैं और दुष्ट प्रकृति के पुरुष उनकी इस कमजोरी को निशाना बनाकर उनकी हानि कर सकते हैं। जगज्जननी सीताजी भले ही मानसिक, चारित्रिक और अध्यात्मिक दृष्टि से रावण से लाखों गुना अधिक मजबूत होंगी किंतु दुष्ट रावण केवल शारीरिक बल का उपयोग करके उनको उठाकर ले गया। आवश्यकता इस बात की है कि सीताएं रावण के हाथों में पड़ने से बचें न कि रामजी की बराबरी का दावा करने के लिये समाज के भीतर निरर्थक संघर्ष को जन्म दें।
इससे सीताजी और रामजी दोनों ही कमजोर हो जायेंगे। फलत: दुष्ट रावण की जीत हो जायेगी। यदि रावण को सदैव के लिये बैकफुट पर रखना है तो नितांत आवश्यक है कि रामजी और सीताजी दोनों एक दूसरे से प्रेम करें, दोनों एक दूसरे के लिये समर्पित रहें और वस्तुत: दोनों अलग शरीरों में निवास करते हुए भी एक आत्मा बन कर रहें। – डॉ. मोहनलाल गुप्ता