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Wednesday, March 31, 2010

क्या अंतर है दो घंटे और दो साल की रिलेशनशिप में !


लिव इन रिलेशनशिप वाला फण्डा अपन की समझ में नहीं आया। वैसे भी अंग्रेजी नाम वाली चीजें आवश्यक तो नहीं कि भारतीयों को समझ में आयें और उन्हें अनुकूल भी जान पड़ें। लिव इन रिलेशनशिप का अर्थ है बिना विवाह किये स्त्री–पुरुष एक साथ रहें। एक–दो दिन, या दो चार साल, या दस बीस साल या जीवन भर। इस दौरान वे कभी भी एक दूसरे को टाटा या गुड बाय कहकर किसी और के साथ लिव इन रिलेशनशिप आरंभ कर सकते हैं। इस दौरान उन्हें संतान भी हो सकती है। अर्थात् विवाह किये बिना वह सब कुछ हो सकता है जो अब तक विवाह करने के बाद होता आया है।

यदि कोई स्त्री–पुरुष दो घण्टे की लिव इन रिलेशनशिप में रहें। उसके बाद अलग हो जायें। फिर वे दोनों किसी अन्य स्त्री पुरुष के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहें। क्योंकि उन पर पाबंदी तो है नहीं कि कम से कम कितनी अवधि की रिलेशनशिप में रहना आवश्यक है और अधिक से अधिक कितने लोगों के साथ रिलेशनशिप में रहा जा सकता है। दो घण्टे की लिव इन रिलेशनशिप में यदि स्त्री–पुरुष शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा क्योंकि लिव इन रिलेशनशिप को कानून ने स्वीकार कर लिया है। यदि वे स्त्री पुरुष इस तरह की दो–दो घण्टे वाली रिलेशनशिप में कई लोगों के साथ रहें तो उन स्त्री–पुरुषों और वेश्यावृत्ति करने वालों में क्या अंतर है, यह मेरी समझ में नहीं आया। एक तरफ तो देश में वेश्यावृत्ति अपराध है और दूसरी तरफ बिना विवाह किये शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट है। तो क्या इसका यह अर्थ समझा जाये कि जो काम थोड़ी अवधि के लिये किया जाये तो वेश्यावृत्ति माना जाये और यदि वही काम लम्बी अवधि के लिये किया जाये तो उसे पवित्र कर्म माना जाये!

थोड़ा और आगे चलते हैं। आज भारत में विवाहिता स्त्रियों को उस स्थिति में अपने पति से भरण–पोषण का व्यय प्राप्त करने का अधिकार है जब पति अपनी पत्नी को बिना उसके किसी अपराध के त्याग दे। या एक विवाहिता स्त्री को छोड़कर किसी दूसरी औरत को अपना ले। या अपनी पत्नी पर अत्याचार करके उसका जीना दूभर कर दे। किंतु लिव इन रिलेशनशिप में स्त्री को अपने पुरुष पार्टनर के द्वारा त्यागे जाने पर उस पार्टनर से भरण पोषण पाने का अधिकार नहीं होगा। अर्थात् जब उस पुरुष पार्टनर का मन चाहेगा वह मुंह उठाकर किसी दूसरी स्त्री के साथ लिव इन रिलेशनशिप के लिये रवाना हो जायेगा। टाटा गुडबाय कहने की भी आवश्यकता नहीं होगी। अब उस स्त्री के हाथ में कुछ भी नहीं होगा, न पार्टनर, न जीवन यापन के लिये पैसा, न रूप सम्पदा की वह पिटारी जिसके बल पर उसने लिव इन रिलेशनशिप की शुरुआत की थी। उसके पास होगी उम्र की लम्बी ढलान और छोड़ी हुई स्त्री का ठप्पा।

लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली औरत यदि स्वयं कमाती हो तो उसे अपने भोरण पोषण के लिये किसी का मुंह देखने की आवश्यकता नहीं होगी किंतु तब भी इतना तो अवश्य होगा कि उम्र के उस ढलान पर कोई भी पुरुष उसके साथ रहने के लिये उत्सुक नहीं होगा। अब उस स्त्री को अपना शेष जीवन अकेले रहकर काटना होगा। क्योंकि अधिक संभावनायें इसी बात की होंगी कि लिव इन रिलेशनशिप में बच्चे नहीं होंगे और एक बार किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह चुकी स्त्री से विवाह करने को भी शायद ही कोई पुरुष तैयार होगा। अर्थात् हर तरह से औरत घाटे में रहेगी। संभवत: इसी को कहते हैं नारी मुक्ति आंदोलनों का चरम! जय हो!

3 comments:

  1. लिव इन रिलेशनशिप के दुष्प्रभावों पर अच्छी नजर रखी है आपने ....!!

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  3. लिव-इन-रीलेसनशिप कोई नई बात तो नहीं है, हां इसे कानुनी अम्ली जामा पहनाना नयी पहल जरूर है, लिव-इन-रीलेसनशिप में पुरुष साथी स्त्री संगिनी के साथ कोई जोर-जबरदस्ती तो नहीं करता,और ना ही स्त्री पुरुष के साथ... दोनो ही परस्पर सामंजस्य से अपनी-अपनी जरुरतो के मुताबिक साथ-साथ रहते है, जिस रिश्ते में कोई जवाबदेही ही नही उसके तुटने का गम या मालाल क्यो... और जबकी सम्लैन्गिकता को अनुमती मिल गयी है तो लिव-इन-रीलेसनशिप पर हो हौवा क्यो....

    क्या बाकायदा शादी कि हुई स्त्री तलाक के बाद का जीवन सुखपूर्वक गुजार पाती है???

    अरे भई, जब लुड़का-लुडकी राजी तो क्या करे पाज़ी... !

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