राजस्थान का कोटा शहर! लाखों किशोर-किशोरियों का मन जहां कल्पनाओं की उड़ान भरकर पहुचंता है और कोटा की गलियों में खड़े कोचिंग सेंटरों को देखकर ठहर सा जाता है। कोटा के नाम से ही अभिभावकों के हृदय में गुदगुदी होने लगती है। उन्हें लगता है कि उनका बच्चा यदि एक बार किसी तरह कोटा पहुंच जाये तो फिर जीवन भर का आराम ही आराम। बच्चे के फ्यूचर और कैरियर दोनों के बारे में चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाये। यही कारण है कि देश भर से लगभग 35 हजार छात्र-छात्राऐं हर साल कोटा पहुंचकर अपना डेरा जमाते हैं। एक साल से लेकर तीन-चार साल तक वे मोटी-मोटी किताबों में सिर गाढ़ कर दिन-रात एक करते हैं। इन दो-तीन सालों में माता-पिता अपनी जमा पूंजी का बड़ा हिस्सा झौंकते हैं ताकि किसी तरह उनके बच्चे का भविष्य संवर जाये।
अंतत: वह दिन भी आता है और हर साल बहुत से बच्चों की वह आस पूरी होती है जिसकी लालसा में वे कोटा पहुंचते हैं। कुछ सौ बच्चे पीएमटी और सीपीएमटी परीक्षाओं में और कुछ सौ बच्चे आई आई टी परीक्षा में सफलता पाते हैं। बाकियों की उम्मीदों को करारा झटका लगता है। फिर भी बहुत से बच्चे डेंटल और ए आई ई ई ई जैसी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर जान बची तो लाखों पाये वाले भाव से कोटा छोड़ते हैं। हर साल 35 हजार छात्रों में से लगभग 5 हजार छात्र-छात्रा ही ऐसे होते हैं जिन्हें आशा जनक या संतोष जनक सफलता मिलती है। शेष 30 हजार छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ बुरी बीतती है। उन्हें ऐसा अनुभव होता है मानो सोने का सूरज प्राप्त करने की आशा में नीले आकाश में उड़ते हुए पंछी के पंख अचानक झुलस गये हों। उनके सपने-उनकी उम्मीदें, भविष्य को लेकर की गई कल्पनायें बिखर जाती हैं। काले दैत्य जैसी क्रूर सच्चाई असफलता के तीखे दंत चुभाने के लिये मुंह फाड़कर सामने आ खड़ी होती है।
तेरह-चौदह साल का मासूम किशोर तब तक सत्रह-अठारह साल का युवक बनने की तैयारी में होता है। वह असफलता का ठप्पा लेकर घर वापस लौटता है। माता-पिता ताने देते हैं। भाई-बहिन हंसते हैं। यार-दोस्त चटखारे ले-लेकर उसे छेड़ते हैं। जी-तोड़ परिश्रम के उपरांत भी असफल रहा युवक तिलमिला कर रह जाता है। उनमें से बहुत से युवक भटक जाते हैं। शराब और सिगरेट का सहारा लेते हैं। सिनेमा देखकर अपने मन की उदासी दूर करने का प्रयास करते हैं। बहुतों को किताबों से एलर्जी ही हो जाती है। ऐसे बहुत कम ही युवक होते हैं जिन्हें परिवार वाले ढाढ़स बंधाते हैं और फिर से कोई नई कोशिश करने के लिये प्रेरित करते हैं। कुछ माता-पिता ऐसे भी होते हैं जो बच्चे के कोटा रहने का खर्च उठाते-उठाते कंगाली के दरवाजे पर जा खड़े होते हैं। घर पर दो-चार लाख रुपये का कर्ज भी हो जाता है। इस कारण दूसरे बच्चों की सामान्य पढ़ाई में भी बाधा आती है। कई बार तो बच्चे की असफलता और परिवार में आई आर्थिक विपन्नता का पूरे परिवार पर इतना गहरा असर होता है कि माता-पिताओं के बीच विवाद उठ खड़े होते हैं। मामला परिवार के टूटने और तलाक के लिये कोर्ट तक जा पहुंचता है। इतना सब हमारे बीच हर साल घट रहा है किंतु अधिकांश माता-पिता बिना कोई आगा-पीछा सोचे-समझे अपने बच्चों को कोटा की तंग गलियों की ओर धकेल रहे हैं।

CHITRKOOT KA CHATAK
![Validate my Atom 1.0 feed [Valid Atom 1.0]](valid-atom.png)
अपने सपने अपने बच्चों में सभी देखते हैं, आपका कहना सही है, लेकिन मेरा सुझाव यह है माता पिता सिर्फ कोटा में भेज कर ही चुप हो जाते हैं, उन्हें नहीं पता होता के उनका पुत्र चाय की होटल पर खड़ा होकर मेच देख रहा है. आवश्यकता है उनकी मोनिटरिंग की, कई विद्यार्थी ऐसे भी हैं जो पदाई के नाम पर कोटा आते हैं और यहाँ आकर गेंग बना लेते हैं लूटपाट करते हैं चोरियां करते हैं.
ReplyDeleteकोटा आकर विद्यार्थी को यह समझाना होगा की उसके माता पिता ने खून पसीने की कमाई लगाकर उसे कोटा भेजा है, और यही बात माता पिता को भी सोचनी होगी. आखिर सिर्फ कोटा भेजने से तो कोई इंजीनियर डाक्टर नहीं बन जायेगा
कोटा एक बड़े ट्रेनिंग सेन्टर के शहर के रुप में तेजी से उभरा है. बच्चों को उनकी जिम्मेदारी और किस मुसीबत से उन्हें भेजा जा रहा है और किन आशाओं के साथ- यह अहसास कराना भी अभिभावकों का ही कर्तव्य है.
ReplyDeleteआदरणीय मेहराजी एवं उड़न तश्तरीजी,
ReplyDeleteटिप्पणी के लिये धन्यवाद। वस्तुत: आपने सही लिखा है। मेरा लेख भी अभिभावकों के लिये ही है। बच्चे तो कोरी स्लेट के समान हैं। उन्हें जो भी वातावरण, टास्क, आदर्श, लक्ष्य तथा सपने दिये जा रहे हैं, वे तो माता–पिता ही दे रहे हैं। यदि बच्चों की रुचि एवं वास्तविक क्षमता को नहीं समझकर उन्हें अंधे कुएँ में धकेल कर माता–पिता अपने काम–धंधे में व्यस्त रहेंगे तो परिणाम बहुत ही बुरे प्राप्त होंगे। एक बार पुन: धन्यवाद।
दैनिक जनसत्ता दिनांक 21 अप्रैल 2010 में आपकी यह पोस्ट संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में तंग गलियां शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई।
ReplyDeleteU all are lyers
ReplyDeleteFuck u
ReplyDelete