इस बार फिर ब्रजभूमि जाना हुआ। वही ब्रजभूमि जिसकी धूल का स्पर्श करने के लिये सहस्रों वर्षों से भारत के कौने-कौने से श्रध्दालु आते हैं। वही ब्रजभूमि जिसके स्मरण मात्र से विष्णु भक्तों का रोम-रोम पुलकित हो जाता है। वही ब्रजभूमि जिसकी पावन धरा का स्पर्श करने के लिये स्वयं यमुनाजी हजारों किलोमीटर की यात्रा करके पहुंचती हैं और ब्रज की धूल में लोट-लोट कर स्वयं को धन्य अनुभव करती हैं। वही ब्रजभूमि जिसे काशीवास के बराबर महत्व मिला हुआ है किंतु खेद है मुझे! ऐसी पवित्र ब्रजभूमि में पहुंचकर इस बार मुझे कोई प्रसन्नता नहीं हुई। प्रसन्नता तो दूर मेरे रोम-रोम में कष्ट का संचार हो गया।
कभी चराते होंगे किशन कन्हाई यमुनाजी के कछार में गौऐं! कभी करते होंगे वे जगज्जननी राधारानी का शृंगार करील कुंजों में छिपकर! कभी उठाया होगा उन्होंने गिरिराज इन्द्र का मान मर्दन करने के लिये! कभी मारा होगा उन्होंने कंस को मथुरा में! कभी नाची होगी मीरां वृंदावन की कुंज गलियों में! कभी गाये होंगे हरिदास निधि वन में! कभी रोये होंगे सूर और रैदास गौघाट पर बैठकर। कभी किया होगा भगवान वल्लभाचार्य ने वैष्णव धर्म का उध्दार जतिपुरा में! कभी लुटाये होंगे राज तीनों लोकों के रहीम और रसखान ने इस ब्रजभूमि पर! किंतु आज का ब्रज विशेषकर मथुरा और वृंदावन, भीड़ भरी बदबूदार गलियों वाले गंदे नगरों से अधिक कुछ भी नहीं है।
पूरे देश से लाखों लोग प्रतिदिन मथुरा और वृंदावन पहुंचते हैं। उन्हें भी मेरे ही समान निराशा का सामना करना पड़ता है जब वे देखते हैं कि यमुनाजी का श्याम जल अब पूरी तरह कोलतार जैसा काला, गंदा और बदबूदार हो गया है। उसमें आचमन और स्नान करना तो दूर रहा, कोई लाख चाहकर भी यमुनाजी के जल को स्पर्श नहीं कर सकता। देश भर से पहुंचे ये लाखों लोग वृंदावन में गंदगी, भीड़ और शोर पैदा करते हैं। शांति तो जैसे मथुरा और वृंदावन से पूरी तरह से मुंह छिपाकर कोसों दूर भाग गई है।
मथुरा में भगवान की जन्मभूमि तथा द्वारिकाधीश का मंदिर मुख्य हैं। जन्मभूमि के दर्शनों के लिये कड़ी सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है। भयभीत कर देने वाले कठोर चेहरों के तीन-तीन सुरक्षाकर्मी एक ही व्यक्ति को तीन-तीन बार टटोलते हैं। पूरे शरीर पर वे अपने मोटे, खुरदुरे हाथ चमड़ी पर गड़ा-गड़ाकर फेरते हैं जिसके कारण शरीर पर झुरझुरी सी दौड़ जाती है। वे पैण्ट-शर्ट की जेबों को तो टटोलते ही हैं, साथ ही आदमी की जांघों के बीच भी छानबीन करते हैं जिससे उनके हाथ आदमी के जननांगों से छूते हैं। जब उन्हें पूरी तसल्ली हो जाती है कि आदमी इस जांच से पूरी तरह तिलमिला गया है, तब कहीं जाकर वे छोड़ते हैं। महिला दर्शनार्थियों की ऐसी ही जांच महिला सुरक्षाकर्मियों द्वारा की जाती है। यह सुरक्षा जांच आदमी की गरिमा को ठेस पहुंचाती है जिसे कुछ तथाकथित वीआईपी को छोड़कर शेष सब को झेलना पड़ता है किंतु कहीं कोई प्रतिरोध नहीं होता।
वृंदावन में मंदिरों की संख्या बहुत अधिक है फिर भी वहाँ रंगजी का मंदिर और बांके बिहारी का मंदिर मुख्य है। बांके बिहारी के मंदिर में तिल धरने को भी स्थान नहीं मिलता। अवकाश के दिन तो पूरी दिल्ली जैसे वहां उमड़ पड़ती है। वृंदावन के बंदर आदमी की ऑंखों पर से चश्मा उतार कर ले भागते हैं और तभी वापस करते है जब उन्हें कुछ खाने को दे। मथुरा और वृंदावन में चारों ओर ब्रजवासी पेड़े वाले के नाम से कई दुकानें खुली हुई हैं जिनमें खराब स्वाद के पेड़े बिकते हैं। दुकानों पर पानी मिला हुआ दूध बिकता है जिसमें पीला रंग मिलाकर उसे गाय का असली दूध जैसा दिखाने का प्रयास किया जाता है। ऐसी ब्रजभूमि अब किसी को आनंद नहीं देती।
Monday, April 19, 2010
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