यदि भारतीय राजनयिक माधुरी गुप्ता ने मोहनलाल भास्कर की जीवनी पढ़ ली होती तो आज वह सीखचों के पीछे न बंद होती। मोहनलाल 1965 के भारत-पाक युध्द में पाकिस्तान के आणविक केन्द्रों की जानकारी एकत्रित करने के लिये गुप्त रूप से पाकिस्तान गये थे। ये वे दिन थे जब जुल्फिाकर अली भुट्टो ने यू एन ओ में यह वक्तव्य देकर पाकिस्तानियों के मन में भारतीयों के विरुध्द गहरा विष भर दिया था कि वे दस हजार साल तक भारत से लड़ेंगे। मोहनलाल पाकिस्तान में इस कार्य के लिये जाने वाले अकेले न थे, उनका पूरा नेटवर्क था। दुर्भाग्य से उनके ही एक साथी ने रुपयों के लालच में पाकिस्तानी अधिकारियों के समक्ष मोहनलाल का भेद खोल दिया और वे पकड़ लिये गये।
मोहनलाल पूरे नौ साल तक लाहौर, कोटलखपत, मियांवाली और मुलतान की जेलों में नर्क भोगते रहे। पाकिस्तान के अधिकारी चाहते थे कि मोहनलाल पाकिस्तानी अधिकारियों को उन लोगों के नाम-पते बता दें जो भारत की तरफ से पाकिस्तान में रहकर कार्य कर रहे हैं। पाकिस्तानी अधिकारियों के लाख अत्याचारों के उपरांत भी मोहनलाल ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी। पाकिस्तान की जेलों में मोहनलाल को डण्डों, बेंतों और कोड़ों से पीटा जाता था। उन्हें नंगा करके उन पर जेल के सफाई कर्मचारी छोड़ दिये जाते थे जो उन पर अप्राकृतिक बलात्कार करते थे। एक सफाई कर्मचारी उन पर से उतर जाता तो दूसरा चढ़ जाता था। छ:-छ: फौजी इकट्ठे होकर उन्हें जूतों, बैल्टों और रस्सियों से पीटते थे। इस मार से मोहनलाल बेहोश हो जाते थे फिर भी मुंह नहीं खोलते थे।
मोहनलाल को निर्वस्त्र करके उल्टा लटकाया जाता और उनके मलद्वार में मिर्चें ठूंसी जातीं। उन्हें पानी के स्थान पर जेल के सफाई कर्मचारियों और कैदियों का पेशाब पिलाया जाता। जेल के धोबियों से उनके कूल्हों, तलवों और पिण्डलियों पर कपड़े धोने की थापियां बरसवाई जातीं। इतने सारे अत्याचारों के उपरांत भी मोहनलाल मुंह नहीं खोलते थे और यदि कभी खोलते भी थे तो केवल पाकिस्तानी सैनिक अधिकारियों के मुंह पर थूकने के लिये। इस अपराध के बाद तो मोहनलाल की शामत ही आ जाती। उन्हें पीट-पीटकर बेहोश कर दिया जाता और होश में लाकर फिर से पीटा जाता। उनकी चमड़ी उधड़ जाती जिससे रक्त रिसने लगता। उनके घावों पर नमक-मिर्च रगड़े जाते और कई दिन तक भूखा रखा जाता। फिर भी मोहनलाल का यह नियम था कि जब भी पाकिस्तान का कोई बड़ा सैनिक अधिकारी उनके निकट आता, वे उसके मुँह पर थूके बिना नहीं मानते थे।
पैंसठ का युध्द समाप्त हो गया। उसके बाद इकहत्तार का युध्द आरंभ हुआ। वह भी समाप्त हो गया किंतु मोहनलाल की रिहाई नहीं हुई। जब हरिवंशराय बच्चन को मोहनलाल के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने भारत सरकार से सम्पर्क करके उनकी रिहाई करवाई। उसके बाद ही भारत के लोगों को मोहनलाल भास्कर की अद्भुत कथा के बारे में ज्ञात हुआ। काश! माधुरी ने भी मोहनलाल भास्कर की जीवनी पढ़ी होती तो उसे भी अवश्य प्रेरणा मिली होती कि भारतीय लोग अपने देश से अगाध प्रेम करते हैं और किसी भी स्थिति में देश तथा देशवासियों से विश्वासघात नहीं करते।

CHITRKOOT KA CHATAK
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गुप्ता जी, मोहनलाल भास्कर ने तो देश के लिए भरी जवानी में एक दुश्मन देश में जिंदगी को दांव पर लगाया था. ऐसे सैकड़ों भास्कर गुमनामी के अंधेरों में दफ़न हैं. लेकिन माधुरी के तो दोनों हाथों में लड्डू थे. वह पाकिस्तान से माल समेट रही थी और वही सेटल होने की सोच रही थी. पकडे जाने पर भी वह भारत की जेल में बंद है जहाँ आम कैदी को भले कोई न पूछे लेकिन इस तरह के "ख़ास" कैदियों की देखभाल के लिए मानवाधिकार आयोग बड़ा सतर्क रहता है. उस पर सरकारी गोपनीयता कानून को भंग करने के अलावा कोई अन्य दोष सिद्ध कर पाना भी कठिन होगा सो वह ज्यादा से ज्यादा सात साल ही अन्दर रहेगी वह भी मौज में......
ReplyDeleteयह भारत है जहाँ गद्दारों की फसल भी आज गाजर घास सी लहलहा रही है!!
कहाँ मोहन लालजी कहाँ माधुरी ...पढ़ भी लेती तो क्या होता ...
ReplyDeleteआदरणीय निशाचरजी और वाणी गीतजी,
ReplyDeleteसंभवत: आप ही सही कर रहे हैं। जिन्हें अधिक खाने को मिलता है, पेट भी उन्हीं का अधिक खाली रहता है। हम सब जानते हैं कि भारत के साथ गद्दारी होती रही है, अपनों के द्वारा भी और उनके द्वारा भी जिन्हें हम अपना मित्र समझते हैं, और उनके द्वारा भी जिनपर हम उपकार करते रहे हैं किंतु देशवासियों के बीच अपने इतिहास के सुनहरे पन्नों को पढ़कर सुनाने के अतिक्ति हमारे पास क्या उपाय है। क्योंकि विश्वासघात की बुरी भावना को कानूनों से नहीं अपितु अच्छे लोगों के आचरणों को बार-बार लोगों के बीच में लाने से ही कुचला जा सकता है। गद्दारी की गाजर घास लहलहाती है तो काट कर फैंकी भी जाती है।
- डॉ. मोहनलाल गुप्ता
भूली क्यॊ इतिहास यह्, सन्तति अपनी आज.
ReplyDeleteदॆश भक्ति पर कर रही,क्यॊ गद्दारी राज .
क्यॊ गद्दारी राज ? चॆतना लानी हॊगी .
इतिहासो की बात पुन: समझानी हॊगी.
बलिदानॊ का दॆश चदॆगा वर्ना सूली.
अपना स्वाभिमान ,अगर नव पीदी भूली.