भारतीय संस्कृति में दो ऐसी बातें कही गई हैं जो भारतीय संस्कृति की विलक्षणता को उसकी समग्रता में प्रकट करती हैं। पहली तो यह कि महाराज परीक्षित ने कलियुग को स्वर्ण में निवास करने के आदेश दिये और दूसरी यह कि देवताओं ने लक्ष्मी से गाय के गोबर में निवास करने का वरदान मांगा। ये दोनों बातें संकेत करती हैं कि मानव सभ्यता तभी फलेगी–फूलेगी जब लोग स्वर्ण अर्थात् धन इकट्ठा करने के पीछे नहीं दौड़ेंगे अपितु श्रम को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर गाय की सहायता से समृद्धि प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।
गोबर में लक्ष्मी निवास करने की मान्यता का गहरा अर्थ है। गाय के गोबर से फसलों की वृद्धि के लिये खाद, घरों को लीपने के लिये शुद्ध सात्विक परिमार्जक और चूल्हे में जलाने के लिये ईंधन प्राप्त होता है। गोबर हमें तभी प्राप्त हो सकता है, जब गाय हमारे पास होगी। और जब गाय हमारे पास होगी तो उसके दूध से मानव सभ्यता पुष्ट होगी तथा उसके बछड़े, बैल बनकर खेत में हल जोतेंगे और बैलगाडि़यों में जुतकर आदमी का बोझा उठाने में हाथ बंटायेंगे। इतना ही नहीं, गायों के मरने के बाद उनके चमड़े से जूते बनेंगे जो मानव के पैरों की रक्षा करेंगे।
कहा भी गया है कि यदि भारतीय गायें केवल गोबर के लिये पाली जायें तो भी वे महंगा सौदा नहीं हैं। कुछ लोगों की तो यहां तक मान्यता रही है कि गायों से कुछ पाने के लिये उन्हें न पाला जाये अपितु उनकी सेवा करने के उद्देश्य से उन्हें पाला जाये। वस्तुत: गाय को माता मानने, गौसेवा करने और गौरक्षा करते हुए प्राण उत्सर्ग करने की भावना रखने का एक ही अर्थ है और वह है मानव सभ्यता को श्रम आधारित बनाये रखना। गाय के गोबर को पंचगव्य माना जाता था। मुख शुद्धि और धार्मिक संस्कारों में गाय का गोबर अनिवार्य रूप से प्रयुक्त होता था। गाय के गोबर की जो महिमा मैंने बताने का प्रयास किया है वह तब की बात है जब गायों को खाने के लिये अच्छी वनस्पति मिलती थी और गायों से पीले–सुनहरे रंग का गोबर मिलता था। जंगल में गिरकर सूखा हुआ गोबर अरिणये अर्थात् अरण्य से प्राप्त कहलाता था। उसे पवित्र मानकर हुक्के में रखा जाता था। यज्ञ करने के लिये भी गाय के गोबर को पवित्र समिधा के रूप में देखा जाता था।
अब तो गायें शहर में रहकर कचरा, कागज, पॉलीथीन की थैलियां यहाँ तक कि मैला खा रही हैं जिसके कारण उनका गोबर काला और गहरे हरे रंग का होता है। इस गोबर में से बदबू आती है और वह पानी की तरह बहता है। आज आदमी ने गायों को इस योग्य छोड़ा ही नहीं है कि वे अच्छा गोबर दे सकें किंतु आज के वैज्ञानिक युग में पैसे के पीछे अंधे होकर भाग रहे आदमी को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिये कि गोबर की जितनी आवश्यकता कल थी, उससे अधिक आवश्यकता आज है। वैज्ञानिकों का कहना है कि परमाणु विकीरण से केवल गोबर ही प्राणियों की रक्षा कर सकता है। ईश्वर न करे किसी दिन परमाणु बमों का जखीरा मानव सभ्यता के विरुद्ध प्रयुक्त हो या कोई परमाणु रियेक्टर फट जाये किंतु दुर्भाग्य से यदि कभी भी ऐसा हुआ तो केवल वही लोग स्वयं को विकीरण से बचा सकेंगे जो अपने शरीर पर गाय का गोबर पोत लेंगे किंतु उस दिन हर आदमी के घर में स्वर्ण अर्थात् कलियुग तो होगा किंतु गोबर अर्थात् लक्ष्मी ढूंढे से भी नहीं मिलेगी।

CHITRKOOT KA CHATAK
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जागरूक करने वाला लेख .....बहुत बढ़िया ........गाय की हालत शहरों दयनीय है ......
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