सर्वोच्च न्यायालय ने 1978 में दिये गये एक निर्णय में एक अत्यंत महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि एक नागरिक को हाड़–मांस की तरह जीवित रहने का अधिकार नहीं है, उसके जीवन के अधिकार में यह सम्मिलित है कि उसे दोनों समय रोटी मिले और चौबीसों घण्टे सम्मान मिले। इस तरह की टिप्पणियां ऐतिहासिक होती हैं, जो लम्बे समय तक स्मरण रखी जाती हैं तथा राष्ट्रीय जन जीवन को दिशा देती हैं। कल पूना में एक महाविद्यालय के लगभग पांच सौ छात्र–छात्राओं को अर्धरात्रि में एक गांव में शराब पार्टी करते हुए पकड़ा गया तथा देश के कई महानगरों में कतिपय सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने फ्रैण्डशिप डे मना रहे युवक युवतियों को पीटा, तो मुझे सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी बरबस स्मरण हो आई।
पूना में पुलिस ने महाविद्यालयी छात्र–छात्राओं पर वाद स्थापित किया है क्योंकि उन्होंने देर रात पार्टी करने तथा निर्धारित समय के बाद माइक बजाने की पूर्वानुमति नहीं ली। पुलिस के अनुसार इन छात्र–छात्राओं का इतना ही अपराध है ! पुलिस ने कुछ सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं पर भी वाद स्थापित किये क्योंकि नागरिकों की पिटाई करना अपराध है। दोनों ही प्रकरणों में विधि सम्मत कार्यवाही की गई है किंतु जब मैं सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी पर विचार करता हूँ तो मुझे लगता है कि जहां एक ओर देश के हर नागरिक को चौबीसों घण्टे सम्मान उपलब्ध रहने की अपेक्षा की गई है, वहीं दूसरी ओर इन दोनों ही प्रकरणों में सवा सौ करोड़ नागरिकों के आत्म सम्मान को गहरी ठेस पहुंचाई गई है।
जिन अभिभावकों ने अपने संतानों को सुदूर किसी अनजान गांव में शराब पार्टी में सम्मिलित देखा होगा, उनका सिर अपने पड़ौसियों, सम्बन्धियों, मित्रों तथा परिचितों के समक्ष किस तरह से झुका होगा, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इस पार्टी में सम्मिलित महाविद्यालयी छात्राओं के परिधान ऐसे थे जिन्हें देखकर फिल्मी तारिकाएं भी लजा जायें, पूरा समाज लजा लाये। हेमामालिनी, रेखा और जयाप्रदा आदि विख्यात तारिकाएं फिल्मी पर्दे पर भले ही कैसे ही वस्त्र पहनती रही हों किंतु वे सार्वजनिक स्थलों पर अत्यंत शालीन वस्त्रों में आती हैं। नरगिस दत्त सदैव सिर पर पल्लू लेकर चलती थीं किंतु आज की छात्राओं ने फिल्मी परिधानों को जीवन की वास्तविकता समझ लिया है।
शराब की खुली बोतलें, अधनंगी युवतियां, अर्धरात्रि का समय और सुदूर ग्रामीण क्षेत्र! इस परिवेश से अनुमान लगाया जा सकता है कि पार्टी में युवक क्या कर रहे होंगे ! वहाँ व्यभिचार नहीं तो कम से कम अद्र्धव्यभिचार जैसी स्थिति अवश्य रही होगी। यह भी स्मरण दिला देना प्रासंगिक होगा कि विगत कुछ वर्षों में विद्यालयी एवं महाविद्यालीय छात्राओं में गर्भपात करवाने का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। जब पूरे समाज से अपेक्षा की जा रही हो कि वह नागरिकों को चौबीसों घण्टे सम्मान उपलब्ध करवायेगा तब यह कैसी विडम्बना है कि अपने ही बच्चे उस सम्मान को खुरच कर नष्ट करने पर तुले हुए हैं !
यह सही है कि एक नागरिक के द्वारा दूसरे नागरिक की पिटाई करना अपराध है किंतु क्या पूना की शराब पार्टी के परिप्रेक्ष्य में ऐसा नहीं लगता है कि यदि सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता, पथभ्रष्ट युवाओं को फ्रैण्डशिप डे तथा वेलेण्टाइन डे के नाम पर सार्वजनिक रूप से मर्यादाओं का उल्लंघन करने पर उन्हें प्रताडि़त करते हैं तो वे समाज के सम्मान की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं तथा युवाओं को व्यभिचार के मार्ग पर बढ़ने से रोक रहे हैं!

CHITRKOOT KA CHATAK
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nice post
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट।
ReplyDeleteइस माहौल में हर अभिभावक डरा हुआ है आजकल
ReplyDeleteकही एक सीमा रेखा तो तय करनी ही होगी ...!