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Sunday, January 3, 2010

बड़े लोगों का झगड़ा है थ्री ईडियट्स

मैं बड़े लोगों के झगड़े में नहीं पड़ता क्योंकि बड़े लोग जानबूझकर झगड़ा पैदा करते हैं। वे उन झगड़ों में फूंक मार-मार कर लाल-लाल ऑंच सुलगाते हैं और उस ऑंच पर अपनी ब्रेड-बटर सेकते हैं। जब ब्रेड-बटर सिक जाती है तो ये झगड़े बिना किसी अंत के चुपचाप नेपथ्य में चले जाते हैं। थ्री ईडियट्स ऐसे ही कुछ बड़े लोगों का झगड़ा है जो कि पूरा का पूरा फैब्रीकेटेड लगता है।

झगड़े का सार इस प्रकार से है- चेतन भगत नामक एक अंग्रेजी भाषा के लेखक ने ''फाइव पॉइन्ट समवन'' शीर्षक से एक उपन्यास लिखा। जितना नीरस शीर्षक इस उपन्यास का है, शायद ही इससे पहले किसी उपन्यास का रहा होगा। इस किताब का मुखपृष्ठ चेतन भगत की पत्नी ने डिजाइन किया है। इससे अधिक नीरस डिजाइन आपने अपने जीवन में नहीं देखा होगा। कवर डिजाइन पर एक छोटी सी बोतल और एक जूता बनाया गया है तथा एक छोटी सी लाइन लिखी गई है- ''व्हाट नॉट टू डू एट आई आई टी।'' इससे पूर्व उन्होंने ''टू स्टेट्स'' नामक उपन्यास पर ''व्हाट नॉट टू डू एट आई आई एम'' अंकित किया था।

जैसा कि भारत में लिखे गये अंग्रेजी साहित्य के साथ होता आया है, यह उपन्यास एक विशेष योजना के माध्यम से एक विशेष पाठक वर्ग में प्रचारित किया गया। प्रचारकों ने इस उपन्यास के मुखपृष्ठ पर आई.आई.टी. शब्द का उपयोग करके अंग्रेजी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को अपना लक्ष्य बनाया। थोड़ी सी अवधि के बाद इस पुस्तक के जो नये संस्करण आये उनके मुखपृष्ठों पर इस पुस्तक के ''बैस्ट सेलर बुक'' होने का दावा किया गया और प्रचारित किया गया कि इस पुस्तक ने भारत में पाठकों की संख्या को दो गुना कर दिया है।

जब यह पुस्तक युवा वर्ग में अच्छी खासी लोकप्रिय हो गई तो विधु विनोद चौपड़ा का ध्यान इस ओर गया। उन्होंने चेतन भगत को रुपये देकर इसकी कहानी के राइट्स खरीद लिये। फिल्म भी बन गई किंतु इसके रिलीज होने के तीन दिन बाद चेतन भगत ने झगड़ा खड़ा किया गया कि उन्हें इस फिल्म में लेखक होने का श्रेय नहीं दिया गया। फिल्म के निर्देशक राजकुमार हिरानी कह रहे हैं कि चेतन भगत की पुस्तक ''फाइव प्वाइंट समवन'' और फिल्म ''थ्री ईडियट्स'' की कहानी में केवल पांच प्रतिशत ही समानता है जबकि चेतन भगत कह रहे हैं कि इन दोनों कहानियों में सत्तार प्रतिशत समानता है। राजकुमार हिरानी दर्शकों से अपील कर रहे हैं कि अब आप ही फैसला करें कि वास्तव में कितनी कहानी मिलती है।

इधर एक संस्था ने यह भी झगड़ा खड़ा करने का प्रयास किया है कि वैसे तो यह एक अच्छी फिल्म है किंतु इसमें रैगिंग को ग्लोरीफाई किया गया है। अजीब बात है, जो फिल्म कॉलेज स्टूडैण्ट्स को रैगिंग के रोचक तरीके सिखाती है, उसे अच्छी फिल्म कैसे कहा जा सकता है! कुल मिलाकर ये सारे झगड़े बड़े लोगों के हैं जो फिल्म को प्रोमोट करने के लिये खड़े किये जा रहे हैं। यह ठीक वैसा ही भौण्डा प्रचार प्रयास है जैसा कुछ समय पहले अंग्रेजी लेखक विक्रम सेठ द्वारा स्कूली लड़कियों के सामने मंच पर बैठकर शराब पीने के बाद उसकी माँ ने यह कहकर झगड़े को बढ़ावा दिया था कि कुछ लोग चाय-कॉफी पीते हैं, मेरा बेटा शराब पीता है, इसमें बुरा क्या है। इस झगड़े ने विक्रम सेठ का नाम भारत के उन हिन्दी भाषी गांवों में पहुंचा दिया था, जहां तक वह कभी नहीं पहुंच सकता था।

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