पाश्चात्य दार्शनिकों का मानना है कि बच्चे जिस समय दुनिया में जन्म लेते हैं उस समय उनका मस्तिष्क एककोरी स्लेट के समान होता है जिसमें कोई संदेश नहीं लिखा हुआ होता। बच्चा धरती पर आने के बाद संदेशों कोपढ़ना सीखता है, उन्हें अपने मस्तिष्क में स्टोर करता है, उनका विश्लेषण करता है और फिर स्वयं उन संदेशों द्वारासंचालित होने लगता है। भारतीय के अनुसार बच्चों का मस्तिष्क कोरी स्लेट के समान नहीं होता, उसमें कूछ कूटसंदेश विकार, आकार और संस्कार के रूप में भरे हुए होते हैं। उदाहरण के रूप में हम जन्म लेकर धरती पर खड़ेहोते हुए बकरी के बच्चे को देख सकते हैं। बकरी का बच्चा जन्म लेने के पांच सात मिनट बाद ही मां के स्तनों कीतरफ बढ़ने लगता है और थोड़े ही प्रयास में दूध पीने में सफल हो जाता है। ऐसा कैसे संभव हो पाता है?
इस घटना को इस तरह समझा जा सकता है कि बकरी का बच्चा अपने साथ तीन कूट संदेश लेकर धरती पर आताहै। पहला है विकार जिसके कारण उसे भूख का अनुभव होता है, दूसरा है आकार जिसके बल पर वह यह जान पाताहै कि दूध कहां मिलेगा और कितनी ऊंचाई पर मिलेगा, तीसरा कूट संदेश है संस्कार, जिसके बल पर बकरी काबच्चा यह जाना पाता है कि दूध को मां के स्तन से निकालकर पेट तक कैसे पहुंचाया जायेगा।
अब यदि बकरी के बच्चे की दूध पीने की प्रक्रिया में कोई बाधा उत्पन्न की जाये तो बकरी का बच्चा अपने आप कोदूसरी परिस्थिति में ढालने का प्रयास करेगा। यदि उसकी मां को बच्चे के जन्मते ही वहां से हटा कर बच्चे के मुंह मेंदूध की बोतल का निपल लगा दिया जाये तो बकरी का बच्चा कुछ अभ्यास के बाद दूध की बोतल से दूध पीना सीखजायेगा और वह अपनी मां को भूल जायेगा।
संसार में समस्त प्राणियों के बच्चे लगभग इसी प्रक्रिया से इस संसार से अपना तारतम्य बैठाते हैं। जिस समय वेकोई नया विचार ग्रहण करते हैं उस समय उन्हें यह ज्ञात नहीं होता कि वह विचार अच्छा है या बुरा किंतुपरिस्थिति, अभ्यास और अनुभव उसे निर्णय लेना सिखा देते हैं कि क्या ग्रहण किया जाये और क्या त्याग दियाजाये।
आजकल हमारे देश में कुछ ऐसे देशी-विदेशी चैनलों का प्रसारण आरंभ हुआ है जो दुनिया के अन्य देशों कीभाषाओं में बनने वाली फिल्मों की हिन्दी भाषा में डबिंग करके उन्हें भारत में प्रसारित करते हैं। ऐसे चैनलों मेंयूटीवी बिंदास, सैट मैक्स तथा स्टार गोल्ड आदि के नाम लिये जा सकते हैं। इन चैनलों पर प्रसारित होने वालीफिल्मों में गंदे, फूहड़ और अश्लील संवादों का हिन्दी अनुवाद अत्यंत चतुराई से किया जाता है जिनमें वर्जित शब्दोंका प्रयोग तो नहीं किया जाता किंतु उन शब्दों का संकेत अभद्रता और अश्लीलता की ओर होता है। उदाहरण देखें- तेरी फट गयी क्या? वो मुझे रोज चेपती है। मैं तेरी मारूंगा। तेरी चॉप हो गयी। यहां क्या घण्टा दिखेगा। तेरी मांका...। यद्यपि इन शब्दों को यहाँ लिखते समय मुझे शर्म आ रही है किंतु इन्हें लिखे बिना मैं अपनी बात कैसे समझासकता हूँ!
बच्चों को नहीं मालूम कि ये संवाद किस पृष्ठभूमि से लिये गये हैं और उनके वास्तविक अर्थ क्या हैं? वे तो बसबार-बार सुने हुए शब्दों को दोहराते हैं। बाद में ये संवाद जीवन भर के लिये उनकी भाषा का हिस्सा बन जायेंगे।बहुचर्चित फिल्म मुन्ना भाई एम बी बी एस में भी कुछ ऐसे ही आधे उधूरे और गंदे वाक्य बोले गये थे। ये संवादऔर किसी ने नहीं अपितु स्वयं फिल्म के नायक संजय दत्त ने बोले थे।
एक दिन मेरी पुत्री ने अंग्रेजी में इतनी गंदी गाली बोली कि मैं हैरान रह गया। वह उस गाली का अर्थ नहीं जानतीथी। मैं उसे केवल इतना ही कह सका कि यह गंदी गाली है, शब्दों के अर्थ जाने बिना उन्हें नहीं बोलना चाहिये। उसनेमुझसे पूछा कि इसका अर्थ क्या है ? मैं केवल इतना ही कह सका कि यह गंदी गाली है। तुम्हें नहीं बोलनी चाहिये।यदि आज हमने अपने बच्चों की भाषा पर ध्यान नहीं दिया तो भारतीय समाज को उसके गंभीर परिणाम भुगतनेपड़ेंगे।
Saturday, January 23, 2010
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आपसे पूर्णतया सहमत हूँ, जिस तरह से हमारे समाज में परिवर्तन हो रहा है वह बहुत ही दुखदायक है हमारे समाज के लिए और हमारे संस्कृति के लिए, इससे बडा दुख तब और भी होता है जब कुछ कुछ गलत धारणा वाले लोग इस तरह के परिवर्तन को विकास का नाम देते हैं , आपको पढकर बढिया लगा, ऐसे ही लिखते रहें, शुभकामनायें ।
ReplyDeleteपूर्णतया सहमत हूँ !!
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कह रहे हैं। ये छोटे-बड़े पर्दे सब की बुद्धि पर पर्दा डाले जा रहे हैं। अब तो लगता है कि बसों, रेल गाड़ियों की तरह फिल्मों, सीरियलों में चेतावनी आने लगेगी, अपने बच्चों की जिम्मेदारी आपकी है।
ReplyDeletesahi likha aapne..
ReplyDeleteआदरणीय श्री मिथिलेश दुबेजी, श्रीप्रवीण त्रिवेदीजी, श्रीगगन शर्माजी तथा एक बिना पहचान के टिप्पणी करने वाले महानुभाव।
ReplyDeleteआपने मेरे लेखन के प्रति जो शुभकामनायें व्यक्त की हैं, उनके लिये मैं आपका आभारी हूँ।