यह आलेख मैंने कुछ समय पूर्व लिखा था। जिसे दैनिक नवज्योति ने मेरे ब्लॉग में प्रकाशित किया था। जो पाठक इसे नहीं पढ़ पाये थे, उनकी सुविधा के लिये मैं इसे फिर से इस ब्लॉग में प्रकाशित कर रहा हूँ।
राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशक डॉ। अमरसिंह राठौड़ अपनी विगत जोधपुर यात्रा के दौरान नगर के प्रबुद्ध नागरिकों, बुद्धिजीवियों, मीडिया प्रतिनिधियों और उद्योगपतियों को सम्बोधित कर रहे थे। अपने उद्बोधन में उन्होंने एक बड़ी जोरदार बात कही कि आज हमारे देश को सर्वाधिक चिंता संभावना सेठ और राखी सावंत की है। उन्होंने लोगों से सवाल पूछा कि संभावना सेठ और राखी सावंत का सामाजिक सरोकार क्या है? आखिर उन पर अखबारों और मैगजीनों के लाखों पृष्ठ खर्च किये जा चुके हैं। इस देश के करोड़ों नागरिकों ने उन्हें टी वी के विभिन्न चैनलों पर देखते हुए न जाने कितने घण्टे खराब कर दिये हैं। ऐसा है क्या उन दोनों में जो देश की इतनी सम्पत्ति, संसाधन और समय उनकी अधनंगी तस्वीरों, उनके फूहड़ कारनामों और उनके अरुचिकर संवादों पर न्यौछावर कर दिये गये!
डॉ। अमरसिंह ने यह भी पूछा कि आज हमारा सरोकार समाज की दो चार उन औरतों से ही क्यों रह गया है जो कपड़े पहनना नहीं चाहतीं, उस बड़े समाज से क्यों नहीं है जिसमें औरतों के पास पहनने के लिये कपड़े ही नहीं हैं। ऐसा लगता है जैसे हमारा सरोकार सिने तारिकाओं की अधनंगी तस्वीर, क्रिकेट के मैच और भ्रष्टाचार की चटखारे भरी खबर के अतिरिक्त और किसी चीज से नहीं रह गया है। माना कि देश में भ्रष्टाचार और अपराध भी हैं जिन्हें नहीं होना चाहिये किंतु हर समय उन्हीं की बातें करने से लोगों में हताशा फैलती है। देश में ईमानदार, मेहनतकश और देशभक्त लोग भी तो हैं, वे भी हमारी चर्चाओं में सम्मिलित होने चाहिये। देश में सामाजिक समस्याऐं भी तो हैं। सिनेमा, क्रिकेट, भ्रष्टाचार और अपराध के साथ उन पर भी बात होनी चाहिये।
डॉ। राठौड़ की बातों को पारदर्शी करके देखना हो तो दीपक महान का वक्तव्य भी जान लेना चाहिये। दीपक सामाजिक विषयों की डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक हैं। उन्होंने जयपुर में हुए देश के सबसे बड़े अग्निकाण पर टिप्पणी की है कि जब तक समाज अपने दायित्व को भूलकर आईपीएल, बिगबॉस और शादियों में सीमित होकर रहेगा, इस तरह के हादसे होते रहेंगे। डॉ. राठौड़ के उद्बोधन में जो व्यग्रता है उसे इस अग्निकाण्ड के परिप्रेक्ष्य में भलीभांति समझा जा सकता है।
संभावना सेठ और राखी सावंत समाज के जिस वर्ग से सम्बन्ध रखती हैं, उस वर्ग की औरतों को मुँह अंधेरे उठकर नगर की सड़कों पर कचरा नहीं बीनना पड़ता। यदि उन्हें यह काम दे दिया जाये तो वे कर भी नहीं सकेंगी किंतु जो औरतें आज मुँह अंधेरे कचरा बीन रही हैं, उन्हें यदि क्रीम पाउडर से पोतकर संभावना सेठ और राखी सावंत का काम दे दिया जाये तो इसमें कोई संदेह नहीं कि दो–चार दिन के प्रशिक्षण के बाद उनके लिये वह कोई बड़ा काम नहीं होगा।
डॉ. राठौड़ के भाषण को मैं अपनी दृष्टि से देखता हूँ तो मुझे लगता है कि संभावना सेठ और राखी सावंत इस युग की ऐसी व्यावसायिक मजबूरियां हैं जो लिज हर्ले और दीपा मेहता की तरह समाज को अपने शरीर के अधनंगेपन और व्यर्थ के लटके–झटके में उलझाये रखने में माहिर हैं। वे मीडिया में सुर्खियां बनकर छायी रहती हैं, जिनके बल पर वे भारतीय संस्कृति को ताल ठोक कर चुनौती देती हैं और अधनंगेपन के सम्मोहन में बंधा भारतीय समाज उनके लिये बड़े बाजार का कार्य करता है। इस सम्मोहन का परिणाम यह होता है कि कुछ ही दिनों में वे सैंकड़ों करोड़ रुपयों की स्वामिनी बन जाती हैं और टी. वी. के पर्दे के सामने बैठा आम भारतीय छोटे पर्दे की चकाचौंध और अधनंगी देह के सम्मोहन में खोया रहता है।
Tuesday, January 19, 2010
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exactly हमारा सरोकार समाज की दो चार उन औरतों से ही क्यों रह गया है जो कपड़े पहनना नहीं चाहतीं, उस बड़े समाज से क्यों नहीं है जिसमें औरतों के पास पहनने के लिये कपड़े ही नहीं हैं।
ReplyDeleteउठो जागोजी ने बेहतर शब्दों में बात कही। जाने क्यों हमारा सरोकार नकारात्मक तत्वों तक सीमित होकर रह जाता है। अधिकतर लोग उनकी बातों में आकर उन्हें समाज का अग्रणी समझने लगते हैं और उनका अनुकरण करते हैं जबकि विरोधियों की बात दबा दी जाती है। जिन औरतों के पास कपड़े पहनने के लिये नहीं हैं, उनके लिये किसी के पास न तो समय है, न पैसा, न चिंतन और न भावना। आभार।
ReplyDeleteआदरणीय मनोजकुमार जी का भी धन्यवाद।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता